नागपंचमी पर काशी में नागकूप के दर्शन की मान्यता, महर्षि पतंजलि का है तपस्थली

अखाड़ों में दंगल, डम्बल, गदा, जोड़ी, नाल, मलखम्भ की होगी प्रतियोगिता, शुरूआत नागदर्शन और पूजन से

नागपंचमी पर काशी में नागकूप के दर्शन की मान्यता, महर्षि पतंजलि का है तपस्थली

वाराणसी, 01 अगस्त । श्रावण मास की पंचमी अर्थात नागपंचमी इस बार मंगलवार यानी दो अगस्त को मनायी जायेगी। इस बार उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र व शिव योग भी मिल रहा है, जो देश और समाज के लिए मंगलकारी है। इस पर्व को लेकर लोगों में खासा उत्साह है।

घरों में महिलाएं जहां पूजन अर्चन के साथ पकवान बनाने की तैयारियां कर रही हैं। वहीं, नगर के अखाड़ों में पहलवान कुश्ती प्रतियोगिता, डम्बल, गदा, जोड़ी, नाल, मलखम्भ प्रतियोगिता की तैयारी में डटे हैं। पिछले दो वर्षो से वैश्विक महामारी कोरोना के चलते शारीरिक दमखम के सार्वजनिक प्रदर्शन से वंचित रहे पहलवान और प्रशिक्षु इस बार पूरे उत्साह के साथ कई दिनों से अभ्यास भी कर रहे हैं। काशी में नागपंचमी पर्व पर शारीरिक दमखम के प्रदर्शन का सैकड़ों वर्ष का इतिहास रहा है।

काशी में दंगल की परंपरा गोस्वामी तुलसीदास ने की थी शुरू

मान्यता है कि नागपंचमी पर्व पर काशी में दंगल की परंपरा की शुरूआत गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। मुगलकाल काल में मुगलों से लोहा लेने और सनातन धर्म की रक्षा के लिए युवाओं को अखाड़े में उतार उन्हें बलशाली बनाया जाता था।


काशी में नियमित ओम नम:शिवाय प्रभात फेरी निकालने वाली संस्था शिवाराधना समिति के संस्थापक और कुश्ती प्रेमी डॉ मृदुल मिश्र बताते हैं कि काशी में युवाओं को बलशाली बनाने के लिए गोस्वामी तुलसीदास ने तुलसी घाट पर अखाड़ा स्वामीनाथ की खुद स्थापना की थी। इस अखाड़े से कई नामी गिरामी पहलवान निकले।

डॉ मिश्र बताते हैं कि काशी में अखाड़ों की समृद्ध परम्परा रही है। पंडाजी का अखाड़ा, राज मन्दिर अखाड़ा, अखाड़ा शकूर खलीफ़ा, औघड़नाथ तकिया अखाड़ा, बेनियाबाग स्थित रामसिंह अखाड़ा,जग्गू सेठ अखाड़ा, मुहल्ला बड़ागणेश अखाड़ा, बबुआ पाण्डेय अखाड़ा, अखाड़ा अशरफी सिंह-भदैनी, कल्लू कलीफा-मदनपुरा, इशुक मास्टर-मदनपुरा, शकूर मजीद, छत्तातले-दालमण्डी, मस्जिद में जिलानी, बचऊ चुड़िहारा-चेतगंज, गंगा-चेतगंज, वाहिद पहलवान-अर्दली बाज़ार, चुन्नी साव-राजघाट चुँगी ,रामकुंड अखाड़ा से पहलवान तैयार होते रहे हैं। इन अखाड़ों को बनाने का उद्देश्य रहा है युवाओं को बलशाली और चरित्रवान बनाना। नागपंचमी पर्व पर युवाओं के दमखम के प्रदर्शन को देख अन्य युवा भी बलशाली बनने के लिए प्रेरित होते हैं।

महिलाएं नागदेवता का पूजन कर सुख-समृद्धि की करती हैं कामना

डॉ मिश्र बताते हैं कि काशी में नागपंचमी पर्व पर लोग सुबह मंदिरों और शिवालयों में महादेव और नागदेवता को दूध और लावा चढ़ा कर अपनी आस्था प्रकट करते हैं। उन्होंने बताया कि सनातन धर्म के जिस व्यक्ति के कुंडली में कालसर्प दोष, सर्प श्राप हो वह इस दिन भगवान शिव की पूजा के साथ-साथ सर्प देवता की पूजा कर इस दोष से मुक्त हो जाता है। घरों में भी महिलाएं नागदेवता का पूजन कर उनके चित्र को दरवाजे पर लगाकर उन्हें दूध लावा अर्पित कर सुख समृद्धि की कामना करती हैं। नागदेवता को दही, दूध, अक्षत, जल, पुष्प, नैवैद्य आदि अर्पित करने से वर्ष भर परिवार पर सर्प देवता व भगवान शिव की कृपा बनी रहती है।

नागकूप पर महर्षि पतंजलि ने की थी तपस्या

डॉ मृदुल बताते हैं कि काशी में पर्व पर महुअर, शास्त्रार्थ, नागकूप के दर्शन की मान्यता है। जैतपुरा स्थित नागकूप पर महर्षि पतंजलि ने तपस्या की थी। महर्षि पतंजलि के इस तपस्थली का उल्लेख स्कंद पुराण में है। महर्षि पतंजलि शेषावतार भी माने जाते हैं। नाग पंचमी पर हर साल उनकी जयंती इस स्थान पर मनाई जाती है। जयंती पर नागकुआं पर शास्त्रार्थ का आयोजन होता है।

नाग पंचमी के दिन सर्प रूप में आते हैं महर्षि पतंजलि

काशी में मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन स्वयं महर्षि पतंजलि सर्प रूप में आते हैं और बगल में नागकूपेश्वर भगवान की परिक्रमा करते हैं। इसके बाद शास्त्रार्थ में बैठते हैं और शास्त्रार्थ में शामिल विद्वानों और बटुकों पर कृपा भी बरसाते हैं। इस अनादि परंपरा को जीवंत पर्व के दिन बनाया जाता है। नागकूप के बारे में कहा जाता है कि पाताल लोक जाने का रास्ता है। इस कूप के अंदर सात कूप है। इसी तरह पर्व पर महुअर खेल का प्रदर्शन होता है। शहर में कहीं-कहीं तीतर और बटेर पक्षी के दंगल भी आयोजित होते हैं। लेकिन ये परम्परा अब लुप्तप्राय है।

नागपंचमी पर्व का शुभ मुहुर्त

ज्योतिषविद मनोज उपाध्याय बताते हैं कि नाग पञ्चमी पूजा का शुभ मूहूर्त मंगलवार को प्रातः काल 05.43 मिनट से प्रात: 08.25 मिनट तक है। पंचमी तिथि मंगलवार प्रातः काल 05:13 से शुरू होगी और 3 अगस्त बुधवार को प्रातः काल 05.41 मिनट पर समाप्त होगी। इस बार नाग पंचमी पर शिव योग और सिद्धि योग भी बन रहे हैं।

उन्होंने बताया कि नागपंचमी पर्व के आराध्य नाग देवता है। पर्व पर अनंत, वासुकि, महापद्म आदि नाग अष्टकों की पूजा करनी चाहिए। पर्व पर प्रातः स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजास्थल में एक चौकी पर नागदेव का चित्र या प्रतिमा स्थापित कर पहले जल में कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर उनका अभिषेक करें, इसके बाद हल्दी, रोली, चावल और फूल चढ़ाकर नाग देवता की पूजा करें। उन्होंने बताया कि कालसर्प योग से मुक्ति पाने के लिए इस दिन भगवान शिव को चांदी के नाग और नागिन का जोड़ा चढ़ाना चाहिए।




आचार्य उपाध्याय ने बताया कि सावन माह महादेव का सबसे प्रिय माह है। महादेव स्वयं नाग को अपने गले में धारण किये रहते हैं। इसलिए सावन माह की नाग पंचमी बेहद खास मानी जाती है। भगवान् शिव और नागों की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।