कुम्भ को लेकर मुग़ल इतिहासकार थे चकित, अंग्रेजों ने कहा 'ग्रेट फेयर'
कुम्भ को लेकर मुग़ल इतिहासकार थे चकित, अंग्रेजों ने कहा 'ग्रेट फेयर'
महाकुम्भ नगर, 28जनवरी (हि. स.)। कुम्भ की महिमा की चर्चा पौराणिक ग्रंथों व प्राचीन धार्मिक साहित्य में तो खूब मिलती है,इतिहास के कई पन्नों में भी हमें कुम्भ के रूप में इस अनोखे आस्था के समागम का पता चलता है। हालांकि इन सबसे इतर मुगल और अंग्रेज इतिहासकार भी कुम्भ को लेकर खासा चकित रहते थे।अंग्रेजों ने तो इसे 'ग्रेट फेयर' कहा था। उनके द्वारा लिखे गए कई ऐतिहासिक विवरणों से इसकी जानकारी होती थी।
इतिहासकार प्रो भूपेश प्रताप सिंह के अनुसार मध्यकाल के कई मुगल इतिहासकारों ने कुम्भ के विषय मे रोचक वर्णन किये हैं।1695 ई में लिखे गए खुलासत -उत-तवारीख में इस मेले का उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि हर साल वैसाखी के दौरान जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है,तो आस-पास के ग्रामीण इलाकों से लोग इकट्ठा होते हैं। 12 साल में एक बार, जब सूर्य कुंभ राशि में प्रवेश करता है, तो दूर-दूर से लोग आते हैं। गंगा नदी में स्नान करना, दान देना और बाल मुंडवाना पुण्य का काम माना जाता है। लोग अपने मृतकों की अस्थियों को नदी में प्रवाहित करते हैं ताकि वे अपने मृतकों की मुक्ति पा सकें।
प्रो सिंह ने मुगल दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा कि कई मुगल बादशाहों और इतिहासकारों ने भव्य मेले का आनंद भी उठाया।तैमूर का इतिहासकार शरफुरुद्दीन 1398 के कुंभ में हरिद्वार आया। उसने हिंदुओं के सबसे बड़े मेले को 'आईनी' किताब में दर्ज किया। गजनवी के समय में इतिहासकार अबु रिहान ने हरकी पैड़ी की चरण पादुका पर नागा संन्यासियों के स्नान का विवरण लिखा। प्रो भूपेश प्रताप सिंह ने 'आईने अकबरी' के हवाले से बताया कि अकबर का प्रसिद्ध इतिहासकार अबुल फजल भी 16वीं शताब्दी में कुंभ मेला देखने आया।उसने गंगा और मेले का वर्णन अपनी किताब में किया है। इतिहासकार जमीयत खान ने कुंभ की धार्मिकता तथा साधुओं की संख्या का लंबा उल्लेख 'जमीयतनामा' में किया।प्रो सिंह के अनुसार कुम्भ को लेकर यूरोपियन और अंग्रेज इतिहासकार भी उत्साहित रहते थे।1620 में
यूरोपियन यात्री टॉम
कारियट प्रयागराज कुम्भ में आया था।ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी कुम्भ मेले को लेकर कई रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक धनंजय चोपड़ा ने अपनी किताब 'भारत में कुंभ' में अंग्रेजों के समय मे कुंभ मेले के आयोजन पर विस्तार से लिखा है। उन्होंने लिखा है कि 'अंग्रेजों के लिए कुंभ आयोजन किसी कौतूहल से कम नहीं था। ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी इसे 'ग्रेट फेयर' कहते थे।किताब के अनुसार अंग्रेजों के लिये कुम्भ चौंकाने वाला होता था, इसकी गतिविधियों को देखकर वह आश्चर्यचकित थे।