(पर्यावरण दिवस विशेष) धरती, हम लोग और हमारा भविष्य

(पर्यावरण दिवस विशेष) धरती, हम लोग और हमारा भविष्य

(पर्यावरण दिवस विशेष) धरती, हम लोग और हमारा भविष्य

पर्यावरण जीवों और उनके जीवन का आधार और एक अनिवार्य घटक है। उसके बिना जीवन अकल्पनीय है । हमारा जीवन-चक्र पर्यावरण में स्थित है और पर्यावरण द्वारा ही आयोजित होता है। हम उसी में जन्म लेते हैं, जीते हैं और मृत्यु के बाद उसी में विलीन हो जाते हैं। हम वनस्पतियों और अन्य प्राणियों की ही तरह पर्यावरण के अंग होते हैं परंतु अपने अहंकार में हम अपनी इस मौलिक सदस्यता को भूल कर अपने को पर्यावरण से अलग तत्व के रूप में देखते हैं। हम मनुष्य और पर्यावरण की दो अलग – अलग कोटियाँ या श्रेणियां बना लेते हैं जो भिन्न मान ली जाती हैं। इनके बीच का रिश्ता भी उपभोक्ता (कंज्यूमर) और उपभोग्य वस्तु ( कंज्यूमेबल ऑब्जेक्ट) मान बैठे हैं। पर्यावरण हमारे लिए एक संसाधन होता गया है जिनमें कुछ नवीकरणीय भी होते हैं और कुछ समाप्त हो कर उस रूप में वापस नहीं मिलते। अपनी संपदाओं के कारण धरती को वसुंधरा कहते हैं। वह हमारे लिए सुख के स्रोत उपलब्ध कराती है।

पर्यावरण में मौजूद विविध पदार्थों, ऊर्जा के श्रोतों ( जैसे – कोयला, पेट्रोल आदि), जल संसाधनों, भिन्न-भिन्न गुणवत्ता के भूमि रूपों (जहां किस्म-किस्म के अन्न, फल, लकड़ी, औषधि और अन्य पदार्थ पैदा होते हैं) को लेकर हम बड़े प्रसन्न होते हैं । पर पर्यावरण की इस सम्पदा को सिर्फ निष्क्रिय निर्जीव वस्तुओं के संसाधन के रूप में मान बैठना भ्रम है। इसलिए ऐसा सोचना ठीक तो है परन्तु यह आधी सच्चाई है। पर्यावरण को सिर्फ संसाधन मान बैठना न सही है न वांछित। पर्यावरण से हमारा पारस्परिक रिश्ता है। वह हमें रचता है और हमसे अपेक्षा है कि हम उसकी रक्षा करें। इस तरह पृथ्वी पर एक जीवन-चक्र चलता सदैव चलता रहता है।



इन सबको देखते हुए ही धरती को माता कहा गया– माता भूमि: पुत्रोहं पृथिव्या: । पृथ्वी सभी प्राणियों का बिना भेद-भाव के माता की तरह भरण-पोषण करती है। आज इसे भुला कर हम निर्मम भाव से इस पर्यावरण को अपने अविवेकपूर्ण आचरण द्वारा तरह-तरह से आघात पहुंचा कर लगातार उसका हृदय छलनी कर रहे हैं और शरीर नष्ट-भ्रष्ट कर रहे हैं । ऐसा करते हुए अपने ही पैरों पर ही कुल्हाड़ी चला रहे हैं। पेड़ कटते जा रहे हैं, वन जलाए जा रहे हैं, कंक्रीट के जंगल उग रहे हैं, और रासायनिक खाद से धरती की उर्वराशक्ति नष्ट हो रही है । हमारी भौतिकवादी दृष्टि कितनी दूषित हो चुकी है कि हम प्रकट सत्य का भी प्रत्यक्ष नहीं कर पाते हैं और न वह क्षति ही महसूस कर पाते हैं जिसकी भरपाई संभव ही नहीं है । ग्रीन गैस का उत्सर्जन जिस तरह हो रहा है और कार्बन डाई आक्साइड जिस तरह बढ़ रहा है वह सब जीवन के विरुद्ध है। पर्यावरण की ओर से हमें लगातार चेतावनी मिल रही है और हम हैं कि उसे अनसुना करते रहे हैं। ग्लेशियर का पिघलना, अति वर्षा, सूखा, बाढ़ और गर्मी का अत्याधिक बढ़ना ऐसे ही संकेत हैं।



आज धरती और पर्यावरण की सीमाओं को बिना पहचाने उसका अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। ऐसा करते हुए हम यह अकसर भूल जाते हैं कि हमारा आहार, हमारी सांसें और हमारे कार्य-कलाप सब कुछ पर्यावरण से ही उधार लिया हुआ है। यदि पर्यावरण इसमें कोई कोताही करता है तो परिस्थिति विकट हो जाती है। कुछ ही दिनों पहले कोविड – 19 की महामारी के दौरान हम सबने विश्व भर में यह बात अपनी आंखों देखी कि पर्यावरण के साथ रिश्ता कितना नाजुक होता है। उस दौरान ऑक्सीजन की कालाबाजारी तक हुई थी। मनुष्य की पर्यावरण के साथ रिश्तों में भागीदारी का सबसे घातक पक्ष प्रदूषण है जो वायु, जल, पृथ्वी सब में तेज़ी से फैलता जा रहा है। विकास के साथ तरह–तरह के कूड़ा-कचरा की मात्रा भी तेज़ी से बढ़ रही है जिसके निस्तारण की कोई माकूल व्यवस्था हम नहीं कर सके हैं।

हमारी धरती हमारा भविष्य है। हम लोगों को पर्यावरण संरक्षित करने की कोशिश करनी होगी। धरती और उसकी परिस्थितिकी को बचाना हमारा पहला कर्तव्य बनता है। जैव विविधता को बचाना और जलवायु परिवर्तन के ख़तरों से बचाना मनुष्यता की रक्षा के लिए ज़रूरी है । धरती हमें जीने का अवसर देती है उसकी रक्षा और हरी-भरी दुनिया के लिए हर स्तर पर प्रयास ज़रूरी है। साइकिल का उपयोग, सार्वजनिक वाहन का उपयोग, वस्तुओं का यथा सम्भव पुनः उपयोग, वृक्षारोपण, और स्थानीय सामग्री का अधिकाधिक उपयोग आदि कुछ छोटी पहल भी हरित आर्थिकी (ग्रीन इकॉनमी) का मार्ग प्रशस्त करने में सहायक होगी।