पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म तर्पण से पितर तृप्त होते हैं, तिथि विशेष के अनुरूप श्राद्ध या तर्पण
पितृपक्ष की शुरूआत शुक्रवार 29 सितम्बर से, पहले दिन पूर्णिमा श्राद्ध
वाराणसी, 28 सितम्बर । सनातन धर्म में अश्विन मास के कृष्ण पक्ष का विशेष महत्व है। इस पक्ष में मृत पूर्वजों और पितरों के श्राद्ध और तर्पण का विधान है। इसलिए इस पक्ष को पितर पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। पितर पक्ष की प्रत्येक तिथि पर तिथि विशेष के अनुरूप ही श्राद्ध या तर्पण किया जाता है। इस बार पितृ पक्ष की शुरूआत शुक्रवार (29 सितम्बर)से हो रही है। पहले दिन पूर्णिमा का श्राद्ध होगा।
पितृ पक्ष पूर्वजों की मृत्यु के तिथि के अनुसार श्राद्ध कर्म या पिंडदान किया जाता है। किसी व्यक्ति को यदि अपने पूर्वजों की मृत्यु का तिथि याद नहीं है तो वह अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन 14 अक्टूबर को श्राद्ध कर्म कर सकते हैं। ऐसा करने से भी पूर्ण फल प्राप्त होता है। ऐसा ही पितृ पक्ष की नवमी तिथि पर माताओं, सुहागिन स्त्रियों और अज्ञात महिलाओं के श्राद्ध का विधान है। इस तिथि को मातृ नवमी कहा जाता है। इस बार मातृ नवमी सात अक्टूबर शनिवार को है।
कर्मकांडी ब्राह्मण शिवेश चौबे बताते हैं कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म तर्पण से ही पितर तृप्त होते हैं। पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं। वेदों में श्राद्ध को पितृयज्ञ कहा गया है। पितृयज्ञ या श्राद्धकर्म के लिए अश्विन माह का कृष्ण पक्ष ही नियुक्त किया गया है। सूर्य के कन्या राशि में रहते समय आश्विन कृष्ण पक्ष पितर पक्ष कहलाता है। जो इस पक्ष तथा देहत्याग की तिथि पर अपने पितरों का श्राद्ध करता है उस श्राद्ध से पितर तृप्त हो जाते हैं। कन्या राशि में सूर्य रहने पर भी जब श्राद्ध नहीं होता तो पितर तुला राशि के सूर्य तक पूरे कार्तिक मास में श्राद्ध का इंतजार करते हैं और तब भी न हो तो सूर्य देव के वृश्चिक राशि पर आने पर पितर निराश होकर अपने स्थान पर लौट जाते हैं।
पिशाचमोचन कुंड (विमल तीर्थ) स्थित शेरवाली कोठी के पंडा प्रदीप पांडेय बताते हैं कि पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता है। पितृपक्ष में अपने पूर्वजों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके जीवन में सभी कार्य मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार,वंश बेल की वृद्धि होती है।