शारदीय नवरात्र के चौथे दिन मां कुष्मांडा दरबार में श्रद्धालुओं ने किया दर्शन पूजन

आधी रात के बाद से ही दर्शन पूजन के लिए कतारबद्ध हुए श्रद्धालु

शारदीय नवरात्र के चौथे दिन मां कुष्मांडा दरबार में श्रद्धालुओं ने किया दर्शन पूजन

वाराणसी, 07 अक्टूबर । शारदीय नवरात्र के चौथे दिन रविवार को दुर्गाकुंड स्थित मां कुष्मांडा दरबार में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु नर नारियों का रेला उमड़ पड़ा। आधी रात के बाद से ही माता के दरबार में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु पहुंचने लगे। अलसुबह से दोपहर तक दर्शन पूजन के लिए दर्शनार्थियों की लम्बी कतार मुख्य सड़क पर लगी रही। श्रद्धालुओं के चलते मंदिर परिसर के आसपास मेले जैसा नजारा दिखा। शहरी क्षेत्र के अलावा ग्रामीण अंचल से भी भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए आये थे।

रात तीन बजे के बाद मुख्य पुजारी की देखरेख में माँ के विग्रह को पंचामृत स्नान कराया गया। नूतन वस्त्र धारण करा कर फूल मालाओं-गहनों से उनका भव्य श्रृंगार किया गया। भोग लगाने के बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मंगला आरती कर भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर का कपाट खोल दिया गया। मंदिर का कपाट खुलते ही कतारबद्ध श्रद्धालु दरबार में अपनी बारी आने पर मत्था टेकते रहे। महिलाओं ने माता रानी को नारियल चुनरी और सिंदूर अर्पित कर संतति वृद्धि, श्री समृद्धि, अखण्ड सौभाग्य की कामना की गुहार लगाई। श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के दौरान मां का गगनभेदी जयकारा लगाते रहे।

माता रानी ने कुष्मांड़ा स्वरूप असुरों के अत्याचार से देव ऋषियों को मुक्ति दिलाने के लिए धारण किया था। देवी कुष्मांडा स्वरूप में अवतरित हुई थीं। आदिशक्ति के इस स्वरूप के दर्शन-पूजन से जीवन की सारी भव बाधा और दु:खों से छुटकारा मिलता है। साथ ही भवसागर की दुर्गति को भी नहीं भोगना पड़ता है। माँ की आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है। मां कुष्माण्डा विश्व की पालनकर्ता के रूप में भी जानी जाती हैं। मान्यता है कि मां पुष्प धूप दीप आदि श्री सूक्त का पाठ करते हुए आराधना करने से प्रसन्न होकर सभी पापों से मुक्ति दिलाती हैं। देवी मां ने इसी मंदिर में साक्षात प्रकट होकर विकट दानवों को मारने के बाद विश्राम किया था।

काशी में मान्यता है कि काशी नरेश की पुत्री शशिकला के स्वयंवर में सुदर्शन की रक्षा के लिए मां दुर्गाकुंड से प्रकट हुई थीं। काशी नरेश सुबाहू को देवी का वरदान प्राप्त था। उन्होंने ही प्रार्थना कर मां को यही विराजमान होने का अनुरोध किया, तभी से मां दुर्गा यहां विराजमान हैं। माना जाता है कि देवी ने ही ब्रह्मांड की रचना की थी। सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें आदिशक्ति भी कहा जाता है।