दुष्कर्म-हत्या के आरोपित को मिली फांसी की सजा रद्द
संदेह से परे दोषी ठहराने में विफल रहा अभियोजन, तत्काल रिहाई का निर्देश
प्रयागराज, 12 जुलाई । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दलित नाबालिग लड़की से दुष्कर्म व हत्या के आरोपित को मिली मौत की सजा रद्द कर दी है और बरी करते हुए उसकी तत्काल रिहाई का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपराध साबित करने में नाकाम रहा है। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों तथा अभियुक्त व मृतका को अन्तिम समय देखने के साक्ष्य विश्वसनीय नहीं है। जिसके आधार पर आरोपित को दोषी ठहराया जा सके। यह फैसला न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने बीरेंद्र बघेल की जेल अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।
17-18 सितम्बर 2021 को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/विशेष अदालत पाक्सो फिरोजाबाद ने दुष्कर्म व हत्या का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई थी। फांसी के सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट को रिफरेंस भेजा गया था। जेल अधीक्षक ने 23 सितम्बर 2021 को फैसले की प्रति भेजी, जिस पर अपील कायम की गई। कैदी की तरफ से कोई वकील न होने के कारण कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार को न्यायमित्र नियुक्त किया। लाइनपार थाने में 26 अप्रैल 2019 को अपहरण की एफआईआर दर्ज कराई गई थी। 25 अप्रैल से 11 साल की बच्ची लापता थी। दूसरे दिन बसईपुर मोहम्मदपुर थाना क्षेत्र में सोफीपुर में लाश बरामद की गई। जिसकी पहचान की गई। आरोपित को पुलिस ने गिरफ्तार किया और उसने अपराध स्वीकार किया। कोर्ट ने कहा कि पुलिस के समक्ष अपराध स्वीकार करना साक्ष्य के रूप में मान्य नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि आरोपित के जींस पर मानव खून साबित नहीं किया गया कि वह मृतका का खून था। यह भी साफ नहीं कि लाश दुकान के पास कैसे पहुंची। आखिरी बार आरोपित व मृतका के देखे जाने के साक्ष्य विश्वसनीय नहीं हैं। परिस्थिति जन्य सबूत संदेह से परे दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है।