यौन हिंसा न केवल अमानवीय कृत्य, बल्कि महिला की निजता और पवित्रता का गलत अतिक्रमण भी है : हाईकोर्ट
यौन हिंसा न केवल अमानवीय कृत्य, बल्कि महिला की निजता और पवित्रता का गलत अतिक्रमण भी है : हाईकोर्ट
-नाबालिग से बलात्कार के आरोपित की जमानत खारिज प्रयागराज, 09 जनवरी (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के आरोपित व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया। काेर्ट ने कहा कि बलात्कार पीड़िता को दोहरी परेशानी का सामना करना पड़ता है। पहला यौन हिंसा की घटना और दूसरा उसके बाद का मुकदमा। न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की एकल पीठ ने इन प्रक्रियाओं के कारण पीड़ितों पर पड़ने वाले गहरे भावनात्मक और शारीरिक दबाव पर टिप्पणी की, विशेष रूप से नाबालिगों से जुड़े मामलों में।
हाईकोर्ट ने कहा कि यौन हिंसा न केवल एक अमानवीय कृत्य है, बल्कि पीड़ित की निजता और गरिमा का भी गम्भीर उल्लंघन है। आदेश में कहा गया कि यौन हिंसा एक अमानवीय कृत्य होने के अलावा, एक महिला की निजता और पवित्रता के अधिकार का एक गैरकानूनी अतिक्रमण है। यह उसके सर्वोच्च सम्मान के लिए एक गम्भीर आघात है और उसके आत्मसम्मान और गरिमा को ठेस पहुंचाता है। यह पीड़िता को अपमानित करता है और जब पीड़िता एक असहाय मासूम बच्ची होती है तो वह अपने पीछे एक दर्दनाक अनुभव छोड़ जाती है।
मामले के अनुसार नाबालिग पीड़िता की मां द्वारा 9 जुलाई, 2023 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(2)(एन), 328, 120-बी, 506, 452 और 323 तथा यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पाॅक्सो) अधिनियम की धारा 5 एल, 5 जे(पप) और 6 के तहत दर्ज कराई गई एफआईआर के बाद मामला शुरू हुआ। प्राथमिकी थाना क्योलडिया जिला बरेली में दर्ज कराई गई। उस समय पीड़िता चार माह की गर्भवती थी।
डीएनए रिपोर्ट से पुष्टि हुई कि आरोपित ही पीड़िता से जन्मे बच्चे का जैविक पिता है। आरोपित ने अपनी हिरासत अवधि और 30 जुलाई, 2024 को दी गई अंतरिम जमानत के आधार पर जमानत मांगी। उसके वकील ने तर्क दिया कि आवेदक ने पीड़िता से शादी करने और बच्चे की जिम्मेदारी लेने की इच्छा व्यक्त की थी लेकिन शादी नहीं हो सकी। जिसके कारण उसे 20 नवम्बर, 2024 को आत्म समर्पण करना पड़ा।
अदालत ने कहा कि आवेदक और पीड़िता के बीच जबरदस्ती शारीरिक सम्बंध के कारण पीड़िता गर्भवती हुई और उसने एक बच्चे को जन्म दिया। न्यायालय ने यह भी कहा कि डीएनए साक्ष्य ने आवेदक को जैविक पिता के रूप में स्थापित किया है। जिससे झूठे आरोप के लिए कोई उचित आधार नहीं बचा है। आरोपों की गम्भीरता और रिकार्ड पर मौजूद साक्ष्यों को देखते हुए अदालत ने जमानत याचिका खारिज कर दी।