यूक्रेन से प्रतिष्ठा आई स्वदेश, घर में खुशी का माहौल
मां की ममता छलकी बेटी को देख लगाया सीने से
हमीरपुर, 05 मार्च । सुमेरपुर कस्बे की बेटी प्रतिष्ठा के वापस आते हैं मां ने उसे सीने से लगाकर भावुक हो गई और प्रधानमंत्री की प्रशंसा करते हुए कहा कि मोदी हैं तो यह मुमकिन हुआ है। वही बेटी अपने परिजनों के बीच पहुंचकर बहुत ही खुश नजर आई। बेटी के कस्बे पहुंचने पर जिलाधिकारी ने मुख्यालय बुलाकर पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया।
कस्बे के मेडिकल व्यवसाई मुकेश कुमार की बेटी प्रतिष्ठा यूक्रेन की राजधानी कीव में रहकर एमबीबीएस कर रही थी। लेकिन रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ने पर वहां की स्थिति खराब हो गई और भारतीय छात्र छात्राओं को बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। बीते सोमवार को कीवी में कर्फ्यू में ढील मिलने पर प्रतिष्ठा लबीब पहुंचकर स्लोवाकिया पहुंची। जहां से वायुसेना के विमान से उसे देश वापस लाया गया। शनिवार को वह कस्बे में पहुंची। उसके घर में आते ही परिजनों में खुशी की लहर दौड़ गई। वहीं बेटी को सामने पाकर मां की ममता उछाल मारने लगी और बेटी को सीने से लगाकर भावुक हो गई। वहीं पिता अपनी बेटी को सीने से लगाकर सकुशल वापसी पर राहत की सांस ली। दादा चंदकिशोर शिवहरे, मामा मामी, चाचा, चाची ने बेटी को तिलक लगाकर पुष्पमाला पहना कर स्वागत कर उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
वहीं, कस्बे के पूर्व चेयरमैन शिवनारायण सोनकर, नवल शुक्ला, व्यापार मंडल अध्यक्ष महेश गुप्ता दीपू आदि उसके घर पहुंच कर देश वापसी आने पर ढेर सारी बधाइयां दी। बेटी के देश वापस आने पर जिलाधिकारी डॉ चंद्रभूषण त्रिपाठी ने तहसीलदार को उसके घर भेज कर मुख्यालय बुलाया। यहां बेटी से भेंट कर उसे पुष्पगुच्छ सहित अन्य उपहार देकर स्वागत किया। साथ ही आगे की पढ़ाई का कोई रास्ता निकलने पर पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।
यूक्रेन के कीव मे हास्टल पर लूट के इरादे से आये थे यूक्रेनी युवक
कीव में फंसी बेटी प्रतिष्ठा ने युद्ध के सात दिनों का हाल बताते हुए कहा कि जिस दिन रूस ने आक्रमण किया तो सबका दिल दहल उठा। उन्हें हॉस्टल के कमरों से हटाकर बेसमेंट में रोकने के लिए मजबूर किया गया। बेटी ने बताया कि मिसाइल, गोली, बम की आवाज से दिल की धड़कने तेज हो जाती थी और डर के साथ जीवन बीत रहा था।
बताया कि युद्ध के शुरू होने के तीसरे दिन चार यूक्रेनी युवक लूट के इरादे से उनके हॉस्टल में घुस आए। जिसमें एक के हाथ में गन और तीन लोगों के हाथ में चाकू थे। उनको देखकर बहुत ही भयभीत हो गए थे। लेकिन सीनियर्स ने उनका मोर्चा संभाला और उन्हें वापस जाने पर मजबूर किया। तब कहीं जाकर जान में जान वापस आई।
बेटी ने बताया कि सोमवार को कर्फ्यू में ढील देने के बाद उन्हें निकालने में यूक्रेन और रूस की सेना ने पूरा सहयोग दिया और वह लोग रेलवे स्टेशन तक पहुंचे। वहीं, स्लोवाकिया पहुंचने पर वहां के वालिंटियर व भारतीय दूतावास के अधिकारियों ने भरपूर सहयोग दिया और वह लोग सुरक्षित अपने देश वापस लौट आए।