मंगला गौरी दरबार:अविवाहित कन्याओं को सर्वगुण सम्पन्न वर का सौभाग्य देती है माता

पंचगंगा घाट पर दरबार, मंदिर के मध्य में गभस्तीश्वर शिवलिंग स्थापित

मंगला गौरी दरबार:अविवाहित कन्याओं को सर्वगुण सम्पन्न वर का सौभाग्य देती है माता

वाराणसी, 12 अक्टूबर । धर्म नगरी काशी में स्वयं महादेव द्वादश ज्योतिर्लिंग के रूप में आदि शक्ति के विविध स्वरूपों के साथ विराजित है। माता पार्वती के सभी स्वरूप मंगलकारी और सौभाग्य प्रदान करती है।

आदि शक्ति का मंगला गौरी स्वरूप भी समस्त प्रकार के अमंगलों का नाश करता है। शारदीय और चैत्र नवरात्र में आठवें दिन माता रानी के इस स्वरूप के दर्शन पूजन का विधान है। वैसे तो माता रानी का दर्शन प्रतिदिन करने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है। लेकिन मंगलवार को लोग खास तौर पर लोग दर्शन पूजन करते है। पंचगंगा घाट स्थित मंगला गौरी के दरबार में दर्शन पूजन करने वाले निसंतान दम्पति को जहां संतान की प्राप्ति होती है। वहीं, दरबार में मत्था टेकने वाली अविवाहित कन्याओं को सर्वगुण सम्पन्न वर का भी माता सौभाग्य देती है।

काशी में मान्यता है कि आदि शक्ति के इस गौरी स्वरूप के दर्शन मात्र से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। भगवती के इस गौरी स्वरूप के बारे में पौराणिक मान्यता है कि एक बार भगवान सूर्य पंचगंगा घाट (पंचनंदा तीर्थ) पर शिवलिंग स्थापित करके घोर तपस्या करने लगे। उनके तप से उनकी किरणें आग के समान गर्म होने लगीं। अन्ततः उनके तप के प्रभाव से किरणें इतनी तीक्ष्ण हो गयीं कि मानव सहित सभी प्राणी हाहाकार करने लगे। अचानक पैदा हुई इस अप्राकृतिक स्थिति को जानने के लिए काशी पुराधिपति बाबा विशेशर (श्री काशी विश्वनाथ) भगवती पार्वती के साथ तपस्या में लीन सूर्यदेव के सामने प्रकट हुए। महादेव और मां पार्वती को अपने सम्मुख पाकर सूर्यदेव भावविह्वल हो गए और उनकी स्तुति करने लगे। सूर्य देव की इस असीम भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान स्वरूप दैव शक्तियां प्रदान की। साथ ही कहा कि यहां स्थापित देवी जिन्हें कालांतर में मंगला गौरी के नाम से जाना जाएगा। इनके दर्शन-पूजन करने वाले श्रद्धालु हर प्रकार के दुखों से दूर हो जाएंगे।

मंगला गौरी मंदिर को पंचायतन मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर के मध्य में गभस्तीश्वर शिवलिंग स्थापित हैं। मंदिर में एक कोने में मां की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। वहीं, मंदिर में आदि केशव और हनुमान जी की मूर्ति को रामदास जी ने स्थापित किया है। मंदिर में मर्तंड भैरव की भी मूर्ति है। मंदिर से जुड़े मनोज पांडेय 'मुन्ना गुरू 'बताते है कि माता गौरी की कृपा से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वैवाहिक जीवन सुखी रहता है। मां मंगला गौरी अखंड सौभाग्य, सुखी और मंगल वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देती हैं।

उन्होंने बताया कि संतान और सौभाग्य की प्राप्ति की कामना के लिए मां मंगला गौरी का व्रत रखा जाता है। बताते चले मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के आठवें दिन देवी के इसी रूप का पूजन होता है।

पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति स्वरूप में पाने के लिए कठोर तप किया। जिस कारण उनका रंग काला पड़ गया था। लेकिन भगवान शंकर ने गंगा जल से प्रयोग से मां को फिर गोरा रंग प्रदान किया। जिस कारण इनका नाम महागौरी पड़ गया। मां मंगला गौरी श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और श्वेत आभूषण भी, इसलिए इन्हें श्वेतांबरी भी कहा जाता है।