गांधी परिवार की नजर में भी हांसिए पर उप्र, नेताओं में भी है निराशा
राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में भी एक भी उप्र के नेता का नाम नहीं, भारत जोड़ो यात्रा में भी कोई नामचीन न होने से चल रही चर्चा
लखनऊ, 29 सितम्बर । सबसे बड़ा प्रदेश, गांधी परिवार की कर्मभूमि आज पार्टी में ही हांसिए पर खड़ा है। कभी यूपी के दम पर सरकार बनाने वाली कांग्रेस आज यूपी में ही शून्य के मुहाने पर खड़ी है। इसके बावजूद कांग्रेस के उच्च नेताओं का इतना दंभ कि यहां के नेतृत्व को ही किनारे कर दिया है। अभी होने वाले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में भी उप्र के किसी नेता का नाम तक आगे नहीं आ रहा है। इससे कांग्रेसी नेताओं में ही निराशा है। वहीं प्रदेश कार्यकारिणी ने पहले ही एक मत से सोनिया गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने का अधिकार दे दिया।
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस में एक भी जमीनी नेता नहीं रह गया है। जो जमीनी नेता हैं, वे कांग्रेस के अंदरूनी कलह के शिकार हो गये। अब उप्र में सिर्फ हवा में तीर चलाने वाले नेता बन गये हैं। कांग्रेस हाईकमान भी अब यह मानकर चलने लगा है कि उप्र में पार्टी कुछ विशेष प्रदर्शन नहीं दिखा पायेगी। यही कारण है कि इसे पार्टी ने भगवान भरोसे छोड़ दिया है।
इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हर्षवर्धन त्रिपाठी का कहना है कि दिल्ली के सिंहासन की सत्ता उप्र से ही होकर गुजरती है। कांग्रेस उप्र के किसी नेता को आगे न बढ़ाकर यह भूल कर रही है। इससे उप्र कांग्रेस के नेताओं में निराशा का भाव पैदा होता जा रहा है, जो आने वाले दिनों में कांग्रेस के लिए और घातक होगा।
वहीं राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह का कहना है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में उप्र संगठन का दिल टूट गया। यहां सिर्फ यात्रा छूकर निकल जाएगी। वहीं यहां के किसी नामचीन नेता को पूरी यात्रा में शामिल नहीं किया गया। जो कुछ नए नेता शामिल हैं, उनका कोई धरातल नहीं दिखता। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में भी उप्र के किसी नेता का नाम तक लेने वाला कोई नहीं है। यहां के नेता पहले शरण गच्छामि की तर्ज पर चल रहे हैं। ऐसे में तो कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी से धीरे-धीरे क्षेत्रीय पार्टी बनने की ओर ही खिसकती चली जाएगी।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि हकीकत में वर्तमान में गांधी परिवार की चयन शक्ति ठीक नहीं है। जो जमीन के नेता हैं, उन्हें जिम्मेदारी नहीं मिलती और जिन्हें जिम्मेदारी मिलती है, वे जमीन से नहीं जुड़े होते। यही कारण है कि उप्र में पार्टी की फजीहत हो रही है। प्रियंका गांधी ने विधानसभा चुनाव से पूर्व पूरा माहौल बनाने का प्रयास किया लेकिन जमीन से जुड़े न होने के कारण यहां के नेता उसे भुना नहीं पाये।