सरकारी गल्ला दुकान आवंटन में बहू को परिवार में शामिल करने का निर्देश
कोर्ट ने कहा, बहू को परिवार से अलग करना विधि विरुद्ध
प्रयागराज, 06 दिसम्बर। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लाइसेंसी की मौत पर वारिसों को सस्ते गल्ले की दुकान के आवंटन मामले में पुत्र वधू (विधवा या सधवा) को परिवार में शामिल करने का राज्य सरकार को निर्देश दिया है।
कोर्ट ने पुत्री को परिवार में शामिल करने तथा बहू को परिवार में शामिल न करने के 5 अगस्त 19 को जारी सचिव खाद्य एवं आपूर्ति द्वारा जारी शासनादेश के पैरा 4(10) व बहू होने के नाते दुकान का लाइसेंस देने से इंकार करने के जिला आपूर्ति अधिकारी के 17 जून 21 के आदेश को विधि विरुद्ध करार देते हुए रद्द कर दिया है।
कोर्ट ने यूपी पावर कार्पोरेशन केस में पूर्णपीठ के फैसले के आधार पर सचिव खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति को नया शासनादेश जारी करने अथवा शासनादेश को ही चार हफ्ते में संशोधित करने का निर्देश दिया है। इस फैसले में पूर्णपीठ ने कहा है कि बहू को आश्रित कोटे में बेटी से बेहतर अधिकार है। यह फैसला इस मामले में भी लागू होगा। साथ ही कोर्ट ने अपर मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति को आदेश अनुपालन की जिम्मेदारी दी है।
कोर्ट ने जिला आपूर्ति अधिकारी को नया शासनादेश जारी होने या संशोधित किये जाने के दो सप्ताह में याची को वारिस के नाते सस्ते गल्ले की दुकान का लाइसेंस देने पर विचार करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने पुष्पा देवी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
मालूम हो कि याची की सास के नाम सस्ते गल्ले की दुकान का लाइसेंस था। सास की 11 अप्रैल 21 को मौत हो गई। याची के पति की पहले ही मौत हो चुकी थी। विधवा बहू याची व उसके दो नाबालिग बच्चों के अलावा परिवार में अन्य कोई वारिस नहीं है। याची ने मृतक आश्रित कोटे में दूकान के आवंटन की अर्जी दी। जिसे यह कहते हुए निरस्त कर दिया गया कि 5 अगस्त 19 के शासनादेश में बेटी को परिवार में शामिल किया गया है। किन्तु बहू को परिवार से अलग रखा गया है।
कोर्ट ने शासनादेश में बहू को परिवार से अलग करने को समझ से परे बताया और कहा कि बहू को आश्रित कोटे में बेटी से बेहतर अधिकार प्राप्त है। इसलिए बहू को परिवार में शामिल किया जाय।