रचना और आलोचना का महत्वपूर्ण संबंध : डॉ. मनोज पाण्डेय

रचना और आलोचना का महत्वपूर्ण संबंध : डॉ. मनोज पाण्डेय

रचना और आलोचना का महत्वपूर्ण संबंध : डॉ. मनोज पाण्डेय

प्रयागराज, 07 नवम्बर । आलोचना साहित्य का मस्तिष्क है और यह पाठक तथा आलोचक के लिए भी महत्वपूर्ण है। रचना और आलोचना का परस्पर महत्वपूर्ण सम्बन्ध है और आलोचना रचना की अनुगामिनी नहीं होती।

यह बातें संत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, हिन्दी विभाग के डॉ. मनोज पाण्डेय ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा रविवार को आयोजित व्याख्यानमाला में कही। उन्होंने कहा कि 1960 के बाद से हम आलोचना के कालखंड को समकालीन आलोचना कह सकते हैं। जहां साहित्य समाज से निरपेक्ष नहीं है, जहां सांस्कृतिक चेतना महत्वपूर्ण है, जहां अस्मिता की समस्या पर विस्तार से विचार-विमर्श है, जहां भाषा के वितंडावाद से मुक्ति का आग्रह महत्वपूर्ण है।

व्याख्यान के दूसरे सत्र में महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के डॉ. ललित कुमार सिंह ने कहा कि साहित्य के राष्ट्रीय सन्दर्भ अचानक आए सन्दर्भ नहीं हैं। भारतेन्दु की विदेश जाते धन को देखकर पीड़ा भावना से लेकर प्रसाद की प्रबुद्ध शुद्ध भारती और निराला की जागो फिर एक बार की भावना, माखनलाल चतुर्वेदी और भवानी प्रसाद मिश्र से होते हुए शमशेर और अटल जी की कविताएं राष्ट्रीय सन्दर्भ को उद्बुद्ध करने वाली कविताएं हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. कृपाशंकर पाण्डेय ने कहा कि सांस्कृतिक चेतना आज आलोचना और कविता का महत्वपूर्ण अंग बनी हुई है। व्याख्यानमाला के संयोजक डॉ. राजेश कुमार गर्ग ने कहा कि रामविलास शर्मा, कृष्णदत्त पालीवाल, रमेश चंद्र शाह आदि आलोचक इसी सांस्कृतिक चेतना को समृद्ध करने वाले आलोचक हैं, जो प्रश्नांकित अस्मिता के दौर में भी जन-मन की समस्या और भूमिका पर चर्चा में पूर्ण मनोयोग से प्रवृत्त रहे।