इलाहाबाद के बिना राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास अधूरा : प्रो. हेरम्ब चतुर्वेदी

इलाहाबाद के बिना राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास अधूरा : प्रो. हेरम्ब चतुर्वेदी

इलाहाबाद के बिना राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास अधूरा : प्रो. हेरम्ब चतुर्वेदी

प्रयागराज, 16 जुलाई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व डीन ऑफ आर्ट्स प्रो. हेरम्ब चतुर्वेदी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में इलाहाबाद से जुड़े संगठनों और व्यक्तियों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। यहां मध्य वर्ग का विकास तेजी से हुआ और इसी मध्य वर्ग ने राष्ट्रीय आंदोलन को आगे बढ़ाया। इलाहाबाद के बिना राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास अधूरा है।



शनिवार को राजनीति शास्त्र विभाग, यूइंग क्रिश्चियन महाविद्यालय और इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंसेज रिसर्च, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में विभिन्न संगठनों-संस्थाओं की भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में भूमिका विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य अतिथि इविवि के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. हेरम्ब चतुर्वेदी ने कहा कि इलाहाबाद के प्रेस और शैक्षणिक संस्थाओं शिक्षा के साथ-साथ राष्ट्रवाद के विचार से युवाओं को प्रेरित किया, जिससे अनेक आंदोलनों को हमेशा ही एक नई धार मिली है।



विशिष्ट अतिथि ईश्वर शरण पीजी कॉलेज के प्राचार्य प्रो. आनंद शंकर सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन में विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों का उल्लेख करते हुए दयानन्द सरस्वती और आर्य समाज की भूमिका और उसके योगदान को रेखांकित किया। कहा कि उस समय भारतीय समाज में मौजूद अंतर्विरोधों का अध्ययन आज भी प्रासंगिक है। प्रो. सिंह ने कहा है कि स्वराज की सर्वप्रथम अवधारणा और मांग आर्य समाज के ही माध्यम से आयी। उन्होंने कहा कि भारत का स्वतंत्रता संघर्ष दुनिया का महानतम आंदोलन था, क्योंकि इसमें नए विचारों का पल्लवन हुआ और साथ ही इसने विभिन्न संगठनों के विचारों को एकाकार कर लिया।

मुख्य वक्ता आर्य कन्या पीजी कॉलेज वाराणसी के राजनीतिशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ मिश्र ने कहा कि आंदोलन से जुड़ें किसी भी संगठन या व्यक्ति के महत्त्व को अलग करके उसका मूल्यांकन करना उचित नहीं है। सभी संगठनों और विचारधारा से जुड़े लोगों ने देश को स्वतंत्र कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने औपनिवेशिक भारत में गुलामी के स्वरूप पर चर्चा करते हुए कहा कि महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन में राजनीतिक समस्या को सुलझाने के लिए अहिंसा को वैकल्पिक हथियार या समाधान के रूप में प्रयोग किया। जिसने स्वाधीनता आंदोलनों को दिशा दी।

अध्यक्षता करते हुए युइंग क्रिश्चियन महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्या प्रो. जी एस जमन ने कहा कि भारत को स्वतंत्रता अचानक नहीं मिली, बल्कि वर्षों के परिश्रम का यह परिणाम थी जिसमें अनेक संगठनों और व्यक्तियों ने जान देकर इसकी कीमत चुकाई। जगत तारन गर्ल्स महाविद्यालय की प्राचार्या और संगोष्ठी की समन्वयक प्रो आशिमा घोष ने दो दिवसीय संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत की। संचालन डॉ सोनाली चतुर्वेदी और डॉ सूरज गुणवंत ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ शीतला प्रसाद ने किया।