हिन्दुस्तानी एकेडमी ने मुंशी प्रेमचन्द की जयन्ती मनायी

प्रेमचन्द के रचनाओं की प्रासंगिकता आज भी सार्थक : डॉ उदय प्रताप सिंह

हिन्दुस्तानी एकेडमी ने मुंशी प्रेमचन्द की जयन्ती मनायी

प्रयागराज, 31 जुलाई। हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में शनिवार को एकेडेमी स्थित गाँधी सभागार में प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर ‘प्रेमचंद आज के संदर्भ में’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। एकेडेमी के अध्यक्ष डॉ उदय प्रताप सिंह ने कहा कि प्रेमचंद प्रेमचंद की रचनाएं विश्व की लगभग हर भाषा में उपलब्ध हैं। प्रेमचंद की रचनाओं की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है, जितनी उनके समय में थी।

उन्होंने आगे कहा कि काशी के लोगों के आग्रह पर काशी में रहे पर उनका लगाव प्रयागराज से कम नहीं था। इसीलिए उन्होने सरस्वती को यहां प्रयागराज में स्थापित करने में सहयोग किया था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, हिन्दी विभाग के डॉ. वीरेन्द्र मीणा ने कहा कि प्रेमचंद साहित्य में दो संदर्भों का उल्लेख हुआ है, एक प्रसंग गोदान का शिकार प्रकरण है तो दूसरा सद्गति कहानी के चिखुरी गोंड का है। प्रेमचंद ने आदिवासियों के संदर्भ में कम लिखा है लेकिन इससे प्रेमचंद छोटे साहित्यकार नहीं हो जाते हैं। प्रेमचंद साहित्य को सम्पूर्ण मानकर आदर्शवादी रूप प्रस्तुत करने की बजाय सभी वर्गों के संदर्भ में विचार करना चाहिए। हालांकि ऐसा पूरी संवेदशीलता के साथ करना चाहिए। अतिरेकी विचारों को महत्व नहीं देना चाहिए।

सीएमपी डिग्री कालेज की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सरोज सिंह ने प्रेमचंद के नारी पात्रों की बात करते हुए आज के संदर्भ से जोड़ा और कहा कि प्रेमचंद का साहित्य आज के प्रश्नों से लगातार रूबरू हो रहा है। उनके साहित्य में नारी पात्रों का जो स्वरूप है, वह आज के नारी प्रश्नों को उजागर करता है। प्रेमचंद के साहित्य की नारी जहां सशक्त है, वह ‘कर्मभूमि’ में उतर कर पुरुष के कंधें से कंधा मिलाकर देश की आजादी के लिये संघर्ष करती है। उसे ‘गबन’ के पैसों से पति की भेंट स्वीकार्य नहीं है, वह ‘बड़े घर की बेटी है तो साथ ही पुरुष वर्चस्व वाले परिवार में मानवीय गुणों से विभूषित भी है। प्रेमचंद अपने नारी पात्रों को कर्म, शक्ति और साहस से संयुक्त करते हैं। स्त्री के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सवाल प्रेमचंद के साहित्य में देखे जा सकते है।



इलाहाबाद डिग्री कालेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.मार्तण्ड सिंह ने कहा कि मुंशी प्रेमचन्द प्रथमतः आदर्शवादी उपन्यासकार रहे हैं। किन्तु बाद में यथार्थवादी उपन्यासों की रचना की है। ऐसे उपन्यासों की शुरुआत सेवासदन (1918) से होती है। प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों में सामाजिक कुरीतियों ग्रामीण जीवन की समस्याओं मजदूर, किसान, नेता, उपदेशक, राजा, रंक सभी का यथार्थ चित्रण किया है। उनकी कहानियों में गरीबों, बेबसों का कारुणिक चित्रण मिलता है।

गोदान अपने युग और समाज की महागाथा है। इसीलिए उस युग में उभरे हुए सामाजिक यथार्थ, सोच विचार, गांव शहर की मानसिकता, कृषकों की समस्या, पुरानी पीढ़ी के संस्कारों केंचुल को उतार फेंकने के लिए तैयार नयी पीढ़ी की कसमसाहट, स्वराज की लोक आकांक्षा, वर्ग संघर्ष की चेतना इन सब का चित्रण हमें गोदान में मिलता है।

कार्यक्रम का संचालन एवं अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी की प्रकाशन अधिकारी ज्योतिर्मयी ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित विद्वानों में राम नरेश तिवारी ‘पिण्डीवासा’, जयकृष्ण राय ‘तुषार’, मुकुल मतवाला, विवके सत्याशु, सहित शोधार्थी एवं अन्य लोग उपस्थित रहें।