हाईकोर्ट ने दो बच्चों की कस्टडी मां को सौंपी
कोर्ट ने कहा, “मां के प्यार की शक्ति को कम करके नहीं आंका जा सकता, बिना शर्त बच्चों को मिलना चाहिए’’
प्रयागराज, 23 अप्रैल । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो बच्चों की कस्टडी उनकी मां को सौंपते हुए कहा कि एक बच्चे के जीवन में विश्वास और भावनात्मक अंतरंगता की एक मजबूत नींव स्थापित करने के लिए उसको मां का प्यार बिना किसी शर्त के मिलना चाहिए।
जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने यह आदेश नाबालिक कुमारी सान्या शर्मा की तरफ से मां सीमा शर्मा द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (हैबियस कार्पस) पर विचार करते हुए दिया है। इस याचिका में बच्चों की मां ने अपने दो बच्चों की कस्टडी की मांग की गई थी, जो अपनी दादी के साथ रह रहे हैं।
मामले के अनुसार सीमा शर्मा (बच्चों की मां) ने मार्च 2016 में एक कपिल शर्मा (अब मृतक) से शादी की थी। इस दम्पत्ति से 2 बच्चे पैदा हुए, जिसमें एक 5 साल की नाबालिग बेटी और ढाई साल का एक बेटा है। पति की आत्महत्या के मामले में सीमा शर्मा को 5 अन्य लोगों के साथ आरोपी बनाया गया है। मामले की जांच अभी चल रही है और अभी तक कोई चार्जशीट दाखिल नहीं की गई है। अपने पति की मृत्यु के बाद, शर्मा अपनी बहन के साथ मुरादाबाद में रहने लगी। जबकि उसके छोटे बच्चे उनकी दादी (दीपा शर्मा) के पास रह गए। इसलिए मां ने दोनों बच्चों की कस्टडी के लिए हाईकोर्ट का रुख किया।
--न्यायालय की टिप्पणियां
हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट 1956 की धारा 6(ए) को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा कि यह विशेष प्रावधान नाबालिग बच्चे की सम्पत्ति के अभिभावक होने के एक पिता के अधिकार को सुरक्षित रखता है। लेकिन वह बच्चे का अभिभावक नहीं है, अगर बच्चा पांच वर्ष से कम उम्र का है। कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान संरक्षकता के भेद में, अंतरिम कस्टडी के अपवाद को बताता है, और फिर निर्दिष्ट करता है कि जब तक बच्चा पांच साल से कम उम्र का है, तब तक बच्चे को मां की ही कस्टडी में रखा जाना चाहिए।
यह देखते हुए कि वर्तमान मामले में क्योंकि मां (बच्चों की प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते) और दादी व पिता की बहन (बुआ) के बीच नाबालिग बच्चों की कस्टडी को लेकर झगड़ा चल रहा है, इस कारण कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मां उन बच्चों की प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते, दादी या उनके पिता की बहन (बुआ) की तुलना में बहुत अधिक ऊंचे पायदान पर खड़ी है। एक बच्चे के जीवन में मां के प्रेम की आवश्यकता पर बल देते हुए, न्यायालय ने कहा ’’बच्चे अपने माता-पिता के खेलने की चीजें नहीं हैं। उनका कल्याण सर्वोपरि है और जब मां उनके साथ होगी तो उनकी अच्छी तरह से रक्षा की जाएगी।
एक बच्चे को कभी भी ऐसा महसूस नहीं करना चाहिए कि उन्हें मां का प्यार पाने की जरूरत है। यह सोच उनके दिल में जीवनभर के लिए एक खालीपन बना देगी। एक बच्चे के जीवन में विश्वास और भावनात्मक अंतरंगता की एक मजबूत नींव स्थापित करने के लिए एक मां का प्यार बिना शर्त मिलना चाहिए। अगर इस प्यार को रोक दिया जाता है, तो एक बच्चा इस प्यार को एक लाख अन्य तरीकों से ढूंढेगा। कभी-कभी वे अपने पूरे जीवनकाल में इसे खोजते ही रह जाते हैं। हम अपने बच्चों को घर पर जो भावनात्मक नींव देते हैं, वह उनके जीवन की नींव है। हम घर के मूल्य और एक मां के प्यार की शक्ति को कम करके नहीं आंक सकते हैं।’’
नतीजतन, बच्चों के प्रति एक मां और दादी के अधिकारों को तौलने के बाद, कोर्ट ने दादी की तुलना में प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते एक मां के अधिकार में अधिक वजन पाया। इसलिए, दोनों बच्चों की कस्टडी उनकी मां सुश्री सीमा शर्मा को सौंप दी गई। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि दादी, यदि वह चाहें, तो सप्ताह में एक बार यानि प्रत्येक शनिवार को दोपहर 12 बजे से शाम 5 बजे के बीच अपने पोते-पोतियों से मिल सकती हैं।