धर्मान्तरण के बाद भी बहुसंख्यक जनसंख्या की सनातन धर्म में आस्था : नरेन्द्रानंद सरस्वती

धर्मान्तरण के बाद भी बहुसंख्यक जनसंख्या की सनातन धर्म में आस्था : नरेन्द्रानंद सरस्वती

धर्मान्तरण के बाद भी बहुसंख्यक जनसंख्या की सनातन धर्म में आस्था : नरेन्द्रानंद सरस्वती

प्रयागराज, 22 जनवरी। श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने अपने त्रिवेणी मार्ग स्थित शिविर में उपस्थित श्रद्धालुओं को सनातन धर्म की महत्ता समझाते हुए कहा कि सनातन का अर्थ है शाश्वत या सदा बना रहने वाला। सनातन धर्म मूलतः भारतीय धर्म है, जो किसी समय पूरे बृहत्तर भारत तक व्याप्त रहा है। विभिन्न कारणों से हुए भारी धर्मान्तरण के उपरान्त भी विश्व के इस क्षेत्र की बहुसंख्यक जनसंख्या इसी धर्म में आस्था रखती है।



उन्होंने कहा कि इस धर्म की स्थापना किसी व्यक्ति विशेष ने नहीं की है। जिन्होंने ऋग्वेद की रचना की उन ऋषियों और उनकी परम्परा के ऋषियों ने इस धर्म की स्थापना की है। जिनमें ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अग्नि, आदित्य, वायु और अंगिरा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इनके साथ ही प्रारम्भिक सप्तऋषियों का नाम लिया जाता है। ब्रह्म (ईश्वर) से सुनकर हजारों वर्ष पहले जिन्होंने वेद सुनाए, वही संस्थापक माने जाते हैं। सनातन धर्म का विकास वेद की वाचिक परम्परा का परिणाम है। सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो। जिन बातों का शाश्वत महत्व हो, वही सनातन कही गई है।







शंकराचार्य ने आगे कहा जैसे सत्य सनातन है। वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा, वह ही सनातन या शाश्वत है। जिनका न प्रारम्भ है और न अन्त है। उस सत्य को ही सनातन कहते हैं। यही सनातन धर्म का सत्य है। वैदिक धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है। मोक्ष का परिकल्पना इसी धर्म की देन है। एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम नियम के अभ्यास और जागरण मोक्ष का मार्ग है। अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है। यही सनातन धर्म का सत्य है।