दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 का प्रयोग कोर्ट सावधानीपूर्वक करें : हाईकोर्ट

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 का प्रयोग कोर्ट सावधानीपूर्वक करें : हाईकोर्ट

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 का प्रयोग कोर्ट सावधानीपूर्वक करें : हाईकोर्ट

प्रयागराज, 28 अक्टूबर । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के तहत विचारण न्यायालय को किसी सह अभियुक्त को सम्मन करने की असाधारण विवेकाधीन शक्ति प्राप्त है। जिसका इस्तेमाल सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए न कि मैकैनिकल तरीके से।

कोर्ट ने कहा कि विचारण न्यायालय को यह शक्ति इसलिए दी गई है ताकि सभी आरोपियों का एक साथ विचारण हो और वास्तविक दोषी दंड पाने से बच न सके। यह कोर्ट का साक्ष्य पर आधारित विवेकाधिकार है।

कोर्ट ने हत्या में शामिल होने के ठोस सबूत बगैर याची को धारा 319 की अर्जी पर तलब करने के आदेश को रद्द कर दिया है और कहा है कि अदालत ने गलती की है। साक्ष्य देखकर सम्मन करना चाहिए। कोर्ट ने विचारण पूरा करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति वी सी दीक्षित ने मुरादाबाद के राहत अली की पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

याची का कहना था कि 29-30 नवम्बर 17 की रात अज्ञात लोगों ने घर में घुसकर जाहिद की हत्या कर दी। अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई। उसी दिन मृतक के पुत्र ने भोजपुर थाने में अर्जी दी और कहा कि पड़ोसी यामिन व मामा मोविन ने घर में घुसकर जाहिद की हत्या की है और याची राहत अली ने उनकी मदद की है। विधवा गुलफाम जहां सहित चार गवाहों के बयान दर्ज हुए। पुलिस ने दो के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की और याची के खिलाफ सबूत न होने पर चार्जशीट दाखिल नहीं की।

शिकायतकर्ता तालिब ने कोर्ट में धारा 319 की अर्जी दी कि याची हत्या के षड्यंत्र में शामिल हैं। उसे भी सम्मन किया जाय। अपर सत्र न्यायाधीश मुरादाबाद ने अर्जी मंजूर कर ली। जिसे चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा याची एफआईआर में नामित अभियुक्त नहीं है। पुलिस को दिए बयान में भी उसका नाम नहीं आया है। दो अभियुक्तों पर चार्जशीट दाखिल की गई है। याची के खिलाफ हत्या में शामिल होने का साक्ष्य नहीं है। ऐसे में विवेकाधिकार का कोर्ट ने गलत इस्तेमाल किया है।