भारत का संविधान हमारा नहीं, इसका पुनरावलोकन होना जरूरी :अच्युतानंद मिश्र
संस्कृति से ही सुधरेगा समाज : अच्युतानंद मिश्र
लखनऊ, 05 दिसम्बर । संस्कृति से ही समाज सुधरेगा। राजनीति समाज को बांटती है जबकि संस्कृति समाज को सहेजती है। वर्तमान पीढ़ी को इतिहास परम्परा, संस्कृति व संस्कारों से परिचित कराना ही स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव का उद्देश्य है।
यह बातें वरिष्ठ पत्रकार व माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अच्युतानन्द मिश्र ने कही। वह रविवार को गन्ना शोध संस्थान के सभागार में अमृत महोत्सव समिति द्वारा 'स्वतंत्रता का अमृत तत्व' विषय पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि जिस संविधान के आधार पर हमारे देश की शिक्षा नीति, प्रशासन व न्याय व्यवस्था चल रही है, उसका पुनरावलोकन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि संविधान वास्तव में हमारा नहीं है। हिन्दी राजभाषा के रूप में स्वीकार की गयी, लेकिन आज भी न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी बनी हुई है।
महात्मा गांधी हिन्द स्वराज में लिखते हैं हम अंग्रेजियत को स्वीकार नहीं करेंगे। अंग्रेजों ने भारत में जो संस्कृति फैलायी, उससे हमारे देश की एकता अखण्डता व बहुलता को नष्ट किया। 1857 के संघर्ष को अंग्रेजों ने सिपाहियों का विद्रोह करार दिया। वीर सावरकर ने पहली बार स्वाधीनता संग्राम नाम दिया।
अच्युतानन्द मिश्र ने कहा कि 1947 के बाद जो स्वतंत्रता हमें मिली उसे गांधी जी ने पहले समझ लिया था। इसलिए महात्मा गांधी ने 1934 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। महात्मा गांधी ने कहा था कि हमको ग्राम समाज चाहिए। हमारा विकास का रास्ता गांव से होकर जायेगा और हुआ उसके उल्टा।
स्वाधीनता की लड़ाई लड़ रहा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र पश्चिमी लोकतंत्र है। इसकी निन्दा महात्मा गांधी करते थे। लोकतंत्र से लोक गायब हो गया। उन्होंने कहा कि स्वाधीनता की लड़ाई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लड़ रहा है। स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर जाने की बात संघ कर रहा है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आर्यावर्त बैंक के अध्यक्ष एस.बी.सिंह ने कहा कि आज भी बहुत सारे कानून 1947 के पहले के बने हैं उनमें संशोधन होना चाहिए। अगर हमारा संविधान हमारे देश के शासन व अनुशासन के अनुकूल नहीं है तो सुधार किया जाना चाहिए।
भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन स्व से प्रेरित था
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अवध प्रान्त के सह प्रान्त बौद्धिक प्रमुख मनोजकान्त ने कहा कि भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन स्व से प्रेरित था। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में स्वराज, स्वधर्म, स्वदेशी व स्वभाषा की बात थी।
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आन्दोलन के कालखण्ड में विज्ञान के क्षेत्र में भी हमारे देश के वैज्ञानिक शोध कार्य कर रहे थे। ब्रिटिश सरकार भारत के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध व अनुसंधान के कार्यों को रोकने का प्रयास कर रहे थे। अंग्रेजों द्वारा भारत के वैज्ञानिकों को प्रताड़ित किया जा रहा था।
कार्यक्रम की अध्यक्षता भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. अश्वनी दत्त पाठक ने की। कार्यक्रम का संचालन भाग सम्पर्क प्रमुख कमलेश सिंह ने किया। इस मौके पर लखनऊ दक्षिण भाग के भाग संघचालक सुभाष अग्रवाल, सह विभाग कार्यवाह बृजेश पाण्डेय, सह भाग कार्यवाह अतुल सिंह, बाल आयोग के सदस्य श्याम त्रिपाठी, डा.शुचिता, प्रशान्त भाटिया, नानक चन्द लखमानी, सुशील जैन प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।