इविवि के कुलपति की नियुक्ति को हाईकोर्ट में चुनौती

आरटीआई एक्टिविस्ट की याचिका पर बहस के बाद पोषणीयता के मुद्दे पर निर्णय सुरक्षित

इविवि के कुलपति की नियुक्ति को हाईकोर्ट में चुनौती

प्रयागराज, 14 जुलाई । इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव की नियुक्ति को लेकर एक बार फिर मामला गरम हो गया है। उत्तराखंड के आरटीआई एक्टिविस्ट नवीन प्रकाश नौटियाल ने उनकी नियुक्ति को गैरकानूनी बताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी है। को-वारंटो की याचिका दायर कर कुलपति को अयोग्य करार देते हुए हटाने की याचिका में मांग की गई है।

आरटीआई एक्टिविस्ट की याचिका पर आज चीफ जस्टिस राजेश बिंदल तथा जस्टिस जेजे मुनीर की खंडपीठ ने सुनवाई की। कोर्ट ने याचिका की पोषणीयता के मुद्दे पर निर्णय सुरक्षित कर लिया है।



याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बहस की। वरिष्ठ अधिवक्ता ने याची की तरफ से बहस वर्चुअल मोड में की। याची की तरफ से बहस शुरू होने से पहले ही कुलपति की तरफ से उपस्थित अधिवक्ता क्षितिज शैलेंद्र ने इस जनहित याचिका की पोषणीयता को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया। विपक्ष की तरफ से कहा गया कि याची द्वारा दाखिल जनहित याचिका पोषणीय नहीं है। कहा गया कि सर्विस मामले में पीआईएल पोषणीय नहीं है तथा याची ने अपने बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा है। कहा गया कि कुलपति की नियुक्ति के खिलाफ दाखिल को-वारंटो की याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट रूल्स के मुताबिक ग्राह्य नहीं है।

याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अपने बहस में तर्क दिया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव की नियुक्ति अवैध है और विश्वविद्यालय के ऑर्डिनेंस के अनुसार नियुक्ति नहीं की गई है। कहा गया है कि प्रो. श्रीवास्तव विश्वविद्यालय के कुलपति बनने की अर्हता नहीं रखती है। उनके पास न्यूनतम 10 वर्ष के प्रोफेसर की योग्यता भी नहीं है। कोर्ट को बताया गया कि वह वर्ष 2015 में प्रोफेसर बनी और फरवरी 2020 में हेड ऑफ डिपार्टमेंट के रूप में काम करती रही। बहस किया गया कि योग्यता की कमी के कारण उनका इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्ति गलत व गैरकानूनी है। कोर्ट को इस सम्बंध में सम्बंधित प्रावधानों से भी याची की तरफ से अवगत कराया गया।

जवाब में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की तरफ से कहा गया कि प्रो. श्रीवास्तव इसके पहले रज्जू भैया राज्य विश्वविद्यालय में भी बतौर कुलपति नियुक्त रही हैं। ऐसे में उनकी योग्यता को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना गलत है। कहा गया कि उनकी नियुक्ति होम साइंस प्रवक्ता के पद पर 2002 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुई थी। उनकी नियुक्ति को इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी वैध ठहराया है। कहा गया कि कुलपति की नियुक्ति के लिए 10 वर्ष प्रोफेसर के रूप में काम करना कोई आवश्यक नहीं है।

बहरहाल, चीफ जस्टिस की बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद इस जनहित याचिका की पोषणीयता के मुद्दे पर निर्णय सुरक्षित कर लिया है।