एक हिंदू राजा की संतान ने बसाया था आजमगढ़

एक हिंदू राजा की संतान ने बसाया था आजमगढ़

एक हिंदू राजा की संतान ने बसाया था आजमगढ़

प्रदेश में चल रही 'आजमगढ़' नगर का नाम बदलने की चर्चा तथा इसके मुस्लिम समाज द्वारा किए जा रहे विरोध के मध्य संभवतः यह जानना रोचक व चौंकाने वाला होगा कि 1665 ईस्वी में आजमगढ़ की स्थापना करने वाला आजम खान स्वयं एक हिंदू पिता की संतान था। 'राजा एंड नवाब्स ऑफ द नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंस 1879' तथा 'द मैन्युअल ऑफ टाइटल्स फॉर द नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंस 1929' के विवरण बताते हैं कि आजम खान व इसका भाई अजमत खान, इस क्षेत्र के तत्कालीन गौतमवंशीय राजा विक्रमादित्य के उनकी मुस्लिम पत्नी से उत्पन्न पुत्र थे।

राजा विक्रमादित्य ने हिंदू धर्म के उदारता के चलते कभी भी अपनी मुस्लिम पत्नी के पांथिक विश्वासों में हस्तक्षेप नहीं किया। न ही उन्होंने उससे उत्पन्न पुत्रों के, अपनी पत्नी की भावनाओं के अनुरूप मुस्लिम रीति-रिवाज के अनुसार नामकरण करने या पालन-पोषण करने में बाधा पहुंचाई। (यह ठीक उसी प्रकार था, जिस प्रकार बाद के वर्षों में सुप्रसिद्ध पेशवा 'बाजीराव' ने भी अपनी मुस्लिम प्रेमिका मस्तानी से उत्पन्न पुत्र की परवरिश अपने प्रेमिका की मुस्लिम भावनाओं के अनुरूप कराई थी। इसके विपरीत यह तथ्य अधिक चौंकानेवाला है कि तत्कालीन शासकों व उनके अधिकारियों द्वारा हिंदुओं को मुसलमान बनाने के बाद भी इस्लाम की कथित 'सभी मुसलमान एक हैं या उनमें जाति प्रथा आदि नहीं है', जैसी विरुदावली के विपरीत, इन्हें कभी भी अपने समकक्ष नहीं समझा)। वे इनकी अलग पहचान बनाये रखने के लिए इन्हें 'खानजादा' 'लालखानी' 'साबितखानी' जैसे नाम देते थे।आजम खान व उसका बाद का वंश भी 'खानजादा' कहलाता था।

राजा विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद उनके भाई रूद्र सिंह राजा बने। किंतु रूद्र सिंह ने भी अपने बड़े भाई की संतान आजम खान व अजमत खान के 'ज्येष्ठ' का पुत्र होने के अधिकार को स्वीकारते हुए आजम खान को ही अपना उत्तराधिकारी बनाया। उपरोक्त पुस्तकों में आजम खान के मूल गौतम राजपूत वंश (जिसका प्रतिनिधित्व उसे समय फतेहपुर के अर्गल नामक स्थान के राजा द्वारा किया जा रहा था) के विवरणों में बताया है कि यह गौतम राजपूत भगवान बुद्ध के समय 'शाक्य' कही जानेवाली क्षत्रियों की शाखा का परिवर्तित नाम है। इस वंश का परिचय देते हुए बताया गया है कि इस वंश के सुप्रसिद्ध ऋषि 'श्रृंगी ऋषि' का विवाह तत्कालीन कन्नौज नरेश अजयपाल की पुत्री से हुआ था। अजयपाल ने अपनी पुत्री को दहेज में कन्नौज से लेकर कड़ा तक के भूभाग प्रदत्त किए थे, जहां इस वंश का शताब्दियों तक राज्य रहा। अनुश्रुतियां तो सेंगर राजपूतों की उत्पत्ति भी इन्हीं श्रंगी ऋषि की दूसरी पत्नी से होना मानती हैं।

बारहवीं सदी में पुनः इस वंश के राजा रतनदेव का विवाह कन्नौज के तत्कालीन गाहड़वाल नरेश जयचंद की पुत्री से हुआ। राजा रतनदेव, जयचंद तथा मोहम्मद गौरी के मध्य (फिरोजाबाद जनपद के चंदवार नामक स्थान पर) हुए युद्ध में जयचंद की ओर से लड़ते हुए 1191 ईस्वी में मारे गए थे। किंतु इस वंश का इस क्षेत्र पर अधिकार अकबर के आक्रमण तक बना रहा था। शेरशाह सूरी तो इसी वंश के सहयोग से हुमायूं को परास्त कर सका था।

समय के साथ इस वंश की एक शाखा परगना निजामाबाद (बाद में आजमगढ़) के मेहनगर में स्थापित हुई। पुस्तकों के विवरण के अनुसार मेहनगर के चंद्रसेन के दो पुत्र थे- सागर सिंह व अधिमान। (इनमें अधिमान संभवतः नपुंसक था)। यह नौकरी की तलाश में जब जहांगीर के दरबार में पहुंचा तो उसने इसे मुसलमान बनाकर महल का ख्वाजा नियुक्त कर दिया। अधिमान का मुस्लिम नाम 'दौलत ख्वाजा' हुआ। इसे 1662 ईस्वी में जौनपुर का फौजदार भी बनाया गया। संभवतः इसी की सिफारिश पर जहांगीर ने इसके भतीजे (अर्थात सागर सिंह के पुत्र) हरवंश को राजा का विरुद्ध भी प्रदत्त किया। ख्वाजा दौलत की मृत्यु के बाद उसकी संपदा भी हरवंश को प्राप्त हुई।

इस हरवंश के दो पुत्र थे- गंभीर सिंह तथा धरणीधर। इनमें गंभीर सिंह तो निसंतान रहे, जबकि धरणीधर के विक्रमाजीत व रूद्र सिंह नामक दो पुत्र हुए। इन्हीं धरणीधर के पुत्र विक्रमादित्य की मुस्लिम पत्नी से उत्पन्न था आजमगढ़ बसानेवाला 'आजम खान'। 'आजमगढ़' का नाम बदले जाने की चर्चाओं के मध्य यह सुझाव अधिक समयोचित होगा कि इसका नाम इसके संस्थापक के मूलवंश 'गौतम' के नाम पर गौतम नगर या गौतमगढ़ किया जाए अथवा वंश के सुप्रसिद्ध ऋषि, 'श्रृंगी ऋषि' के नाम पर रखा जाए। यूं यह नाम इसके निर्माता आजम खान के पिता के नाम पर 'विक्रमजीत नगर' या 'विक्रमाजीतगढ़' भी किया जा सकता है।

(लेखक, जिला उपभोक्ता फोरम हाथरस के अध्यक्ष हैं।)