हमारी संस्कृति पर चोट करने की कोशिश की जा रही हैः अनुपम खेर
जानबूझकर हिंदू फोबिया जैसी निराधार बातें फैलायी जा रही हैं
नई दिल्ली, 23 अगस्त । दिग्गज अभिनेता और विभिन्न सामाजिक विषयों पर बेबाक राय रखने वाले अनुपम खेर का जोर देकर कहना है कि हाल के वर्षों में हिंदू फोबिया और हिंदू टेरर की चर्चाएं वैश्विक स्तर पर जानबूझकर फैलायी जा रही हैं। झूठी जानकारियों पर आधारित ऐसी कोशिशें हमारी हजारों साल पुरानी संस्कृति पर चोट करने की सोची-समझी कोशिश है। यह इसलिए है क्योंकि भारत की लगातार मजबूत होती छवि और तरक्की ऐसे तत्वों को बर्दाश्त नहीं है।
रविवार को लीड इंडिया, प्रिंसटन युनिवर्सिटी और एसोसिएशन ऑफ साउथ एशियंस एट प्रिंसटन द्वारा आयोजित 'खेर ऑन कैम्पस' वर्चुअल संवाद में दिग्गज अभिनेता अनुपम खेर ने अपनी समृद्ध अभिनय यात्रा के साथ-साथ हिंदुत्व, भारत की चुनौतियां सहित विभिन्न अहम मुद्दों से जुड़े सवालों के जवाब दिये। यह कार्यक्रम भारतीय स्वतंत्रता के 75वें साल के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया जिसमें छात्रों और युवाओं ने हिस्सा लिया। खेर भारत के बाहर हर भारतीय को एक राजदूत बताते हुए कहा कि हरेक को भारत की विशिष्टता अनेकता में एकता, विभिन्न संस्कृतियों के मेल और दुनिया के सामने देश की बेहतर छवि प्रस्तुत करना चाहिये। भारत बड़े हृदयवाले लोगों का देश है।
हिंदू फोबिया और हिंदू टेरर की हालिया चर्चाओं से संबंधित सवालों पर अनुपम खेर ने कहा कि यह हाल के वर्षों में भारत को बदनाम करने की साजिश के तहत उठाया गया। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि ऐसे तत्वों के पीछे हमारे देश के ही लोग हैं, जो भारत के हैं लेकिन भारत की विकास यात्रा इन्हें नहीं भाती। ऐसी चर्चाओं पर प्रतिक्रिया देने की बजाय इन्हें नजरअंदाज किये जाने की जरूरत है। क्योंकि भाड़े पर बिठाए गए लोग यह चाहते हैं कि आप प्रतिक्रिया दें। यह हमारी संस्कृति की साख पर चोट करने की कोशिश है। पढ़े-लिखे लोग भी झूठ बोल रहे हैं। हमारी इतनी पुरानी संस्कृति पर हजार हमले हुए लेकिन हम आज भी हैं और बेहतर स्थिति में हैं। आज पड़ोसी देशों को देखें और हम कहां हैं।
उन्होंने मुंबई आतंकी हमले का जिक्र करते हुए कहा कि शुरू में इसे हिंदू टेरर बताया जा रहा था लेकिन समय सबको जवाब देता है। सच अपना रास्ता बना ही लेता है। ये वही लोग हैं जो भारत के विश्वविद्यालयों में आजादी के नारे लगाते हैं, अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने का जश्न मनाते हैं। लेकिन अपने देश और सेना की तारीफ कभी नहीं करते। मानव अधिकारों से इनका दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। घाटी से जब कश्मीरी पंडितों का इतना बड़ा पलायन हुआ, हत्या और बलात्कार की घटनाएं हुई तो किसने आवाज उठायी। किसने बंदूकें लहरायी। मेरे दादा कहते थे कि भीगा हुआ आदमी बारिश से नहीं डरता। सच एक न एक दिन आता जरूर है। सच एक ऐसा दीया है जिसे पहाड़ की चोटी पर रख दो तो बेशक उजाला कम हो लेकिन दिखायी वह दूर से देता है। एक शेर है- उम्रभर अपनी ही गिरेबां से उलझने वाले, तू मेरे साए से ही डराता क्या है।
अभिनय के खास अंदाज के लिए मशहूर अनुपम खेर का मानना है कि जिंदगी एक सफर है, मंजिल नहीं। इस यात्रा का मजा ही इसके उतार-चढ़ाव भरे रास्ते से होकर गुजरना है। उन्होंने संघर्ष भरे अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए ओशो की जुबानी इसे यूं बयां किया- जीवन की यात्रा में अगर आप जोखिम लेने से डरते हो तो विश्वास करो, आपकी यात्रा सुरक्षित नहीं है।
उन्होंने अभिनय को लेकर पूछे गए सवाल को लेकर कहा कि गणित, विज्ञान जैसे दूसरे विषयों की तरह अभिनय नहीं है। यह बहुआयामी विषय है और यह खुद को लगातार बेहतर बनाने का अभ्यास है। टीचर कभी नहीं कहते थे कि यह सर्वोत्तम है, वे अच्छा जरूर कहते थे। बेहतर करने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।
बॉलीवुड कहे जाने से खास आपत्ति जताने वाले अनुपम खेर कहते हैं कि यह भारतीय सिनेमा है। हम अपने जीवन को भी उत्सव के रूप में लेते हैं और भारतीय सिनेमा का भी वही चरित्र है। भारतीय सिनेमा विश्व भर में खुशियां बांटने का विशेष माध्यम के रूप में उभरा।
वे कहते हैं, 'बहुत छोटी जगह से आया हूं। पिता वन विभाग में थे और बहुत कम तनख्वाह थी उनकी। 14 लोगों का संयुक्त परिवार और छोटे से घर में हम सभी बड़े हंसी-खुशी रहते थे। इतनी तंगहाली में भी सब खुश थे तो एकदिन मैंने दादाजी से पूछा। उन्होंने कहा कि जब तुम गरीब होते हो तो छोटी-छोटी चीजें भी खुशियां देती हैं। जब मुंबई आया 1980 में तो 27 दिनों तक रेलवे स्टेशन पर रात गुजारनी पड़ी लेकिन खुश था क्योंकि जिंदगी को लेकर एक उम्मीद थी। उम्मीद बेशकीमती चीज है इसलिए खुशी एक मानसिक स्थिति है।'
रॉबर्ट फ्रॉस्ट की मशहूर कविता द रोड नॉट टेकन के उल्लेख पर अनुपम खेर ने कहा कि उनके पिता ने उनका नाम अनुपम रखा जिसका अर्थ है अद्वितीय। मुझे बचपन से अंदाज़ा था कि मैं दूसरों से अलग हूं। मैं पढ़ाई में अच्छा नहीं था। खेल में ऐसा था कि टीचर का मशविरा था कि तुम अगर अकेले भी दौड़ो तो दूसरे नंबर पर आओगे। मेरा जब रिजल्ट आया था तो क्लास में 59वां स्थान था। रिपोर्ट कार्ड पर पिता से हस्ताक्षर लेने गया तो डरा हुआ था। पिता ने पूछा कि कितने बच्चे तुम्हारी क्लास में हैं, तो मैंने 60 बताया। पिता ने फिर भी कुछ नहीं कहा और कहा कि नंबर वन आने वालों पर दबाव होता है अपनी पोजीशन बनाए रखने का लेकिन तुम पर ऐसा कोई दबाव नहीं इसलिए आगे से कम-से-कम 40वें स्थान पर आने की कोशिश करो।
उन्होंने कहा कि वे जिंदगी में कभी बने-बनाए रास्ते पर नहीं चले और जोखिम लेने या असफलता से विचलित नहीं हुए। इसी ने सारा फर्क पैदा किया। जब वे मुंबई आए तो पहली फिल्म सारांश में 28 साल की उम्र में 60 साल के बुजुर्ग का किरदार निभाने की चुनौती ली। मेरी शक्ल-ओ-सूरत उस जमाने के खूबसूरत अभिनेताओं जैसी नहीं थी। तो लोगों ने मजाक उड़ाते हुए खारिज कर दिया। लेकिन जब फिल्म हिट हो गयी तो लोगों ने कहा कि ये तो बुजुर्गों के किरदार ही करेगा। फिर मैंने कर्मा की वह भी हिट हुई...फिर लगातार अलग-अलग किरदार मिलते गए। तो शुरू में लोग आपको हतोत्साहित करते हैं लेकिन जब आप असफलता से नहीं डरते हो तो फिर ये सब बेमानी साबित होती है।
उन्होंने भारत के भविष्य को बेहतर बताते हुए कहा कि ओलंपिक में हमारे युवाओं ने शानदार प्रदर्शन कर भारत की सुनहरी तस्वीर दुनिया के सामने रखी है। दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में भारतीय युवा अपने शानदार कौशल से सर्वश्रेष्ठ पदों पर हैं, यह बिना ताकत दिखाए भारत के सुपरपावर बनने की पटकथा है। युवाओं को उनका मशविरा है कि सपनों को कभी छोड़ें नहीं और उन सपनों को पूरा करने के लिए कठिन परिश्रम व ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं है। यह कभी न भूलें कि राष्ट्रीयता ही सर्वोच्च पहचान है और अपने माता-पिता की सेवा और सम्मान जरूर करें। वर्चुअल संवाद का संचालन प्रिंसटन युनिवर्सिटी के पीएचडी कैंडिडेट तनुजय साहा ने किया।