इलाहाबाद हाईकोर्ट जज शिवशंकर प्रसाद ने एक साथ तीन भाषाओं में फैसला सुना कायम की ऐतिहासिक मिसाल
धारा 125 के तहत अंतरिम गुजारा भत्ता लागू करने को दाखिल धारा 482 की याचिका पोषणीय न मानते हुए किया खारिज
प्रयागराज, 12 जुलाई। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहली बार अंग्रेजी, हिंदी व संस्कृत तीन भाषाओं में एक साथ फैसला सुनाते हुए ऐतिहासिक पहल की है।
कोर्ट ने कहा है कि यदि परिवार अदालत ने धारा 125 सी आर पी सी के तहत अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है तो उस पर अमल कराने के लिए धारा 482 की अर्जी पोषणीय नहीं है। याची को धारा 128 में आदेश का अनुपालन कराने का उपचार प्राप्त है। वह हाईकोर्ट में आने के बजाय परिवार अदालत में ही धारा 128 की अर्जी दाखिल कर सकती है। यह आदेश न्यायमूर्ति शिवशंकर प्रसाद ने श्रीमती कंचन रावत की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।
याची की शादी 1 दिसम्बर 2009 को विपक्षी बैजलाल रावत के साथ हुई। शादी में परिवार ने 7-8 लाख रुपये खर्च किए। किंतु दहेज को लेकर याची को ससुराल में प्रताड़ित किया जाता रहा। एक दिन मजबूर होकर उसे घर छोड़कर मायके आना पड़ा। जहां उसे 26 नवम्बर 11 को एक बच्चा गौरव पैदा हुआ। उसने पति से गुजारा भत्ता मांगा। नहीं देने पर परिवार अदालत गाजीपुर में केस दर्ज किया।
परिवार अदालत ने धारा 125 में अंतरिम गुजारा भत्ता चार हजार रुपए प्रतिमाह देने का पति को आदेश दिया। जिसका भुगतान किया गया। किंतु बकाया 80 हजार रूपए का भुगतान नहीं किया गया। तो अदालत ने दस हजार रुपए प्रतिमाह बकाया जमा करने का आदेश दिया। जिसका पालन न करने पर भुगतान करने का आदेश जारी करने की मांग में हाईकोर्ट में धारा 482 के तहत याचिका दायर की थी।
विपक्षी द्वारा याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की गई। कहा याची को धारा 128 में राहत पाने का अधिकार है। याचिका खारिज की जाय। कोर्ट ने फैसला सुनाया और एक साथ तीन भाषाओं में फैसला सुनाकर मिसाल कायम की है।