अखिलेश की 'चित भी मेरी पट भी मेरी' की राजनीति नहीं चलेगी : सिद्धार्थनाथ
किसानों के हितैषी थे तो पांच साल में उनके लिए क्यों कुछ नहीं किया
लखनऊ, 19 नवम्बर । उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि उनकी राजनीति तो ‘चित भी मेरी पट भी मेरी’ के आधार पर है, आम जनता के हित में नहीं।
सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि पहले अखिलेश किसानों से बात करने को कहते थे। अगर कुछ किसान समझ नहीं सके तो प्रधानमंत्री ने संवेदनशीलता दिखाते हुए कृषि कानून वापस लिए तो सरकार की तारीफ करने के स्थान पर वह उल-जलूल टिप्पणी कर रहे हैं।
उप्र के मंत्री ने सपा और अखिलेश से सीधा सवाल पूछा कि वह अगर किसानों के हितैषी हैं तो क्या कारण है कि पांच साल उन्होंने उनके लिए कुछ नहीं सोचा। क्या कारण है योगी सरकार को सत्ता में आते ही 86 लाख किसानों का कुल 36,000 करोड़ रुपए को कर्ज माफ करना पड़ा ? क्या कारण है कि गन्ना किसानों का सपा के समय के बकाये का भुगतान करना पड़ा ? क्या कारण है कि अखिलेश के शासनकाल में गेंहूँ, धान और गन्ने की समुचित खरीद नहीं हो सकी ? क्या कारण है कि उनके समय चीनी मिलें बंद हुई जबकि योगी सरकार में नई मिलें चलीं ?
उन्होंने कहा कि 1.46 लाख करोड़ रुपए का रिकॉर्ड गन्ना भुगतान करने वाली योगी सरकार पर सवाल उठाने का नैतिक अधिकार अखिलेश को कतई नहीं है।
देश और प्रदेश के करोड़ों एवं लाखों किसानों का हित डबल इंजन (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ) की सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता रही है। रहेगी भी।
सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि केंद्र और प्रदेश दोनों सरकारों की योजनाएं और काम इसका प्रमाण हैं। पर ड्राप मोर क्रॉप, हर खेत को पानी, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार लागत के अनुसार फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि, एमएसपी के दायरे में अतिरिक्त फसलों को लाना। दशकों से अधूरी सिंचाई परियोजनाओं को प्राथमिकता में लाकर उसे पूरा करना और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत तीनों फसली सीजन के पूर्व किसानों को दो-दो हजार रुपए उनके खाते में डालना आदि केंद्र सरकार के कार्य इसके प्रमाण हैं।
इसके अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत आलू किसानों को राहत, लैब टू लैंड के नारे को साकार करने के लिए 20 नए कृषि केंद्र खोलना, प्रगतिशील किसानों को मंच देने के लिए किसान सम्मान योजना की शुरुआत आदि योजनाएं और काम इसका सबूत हैं।