"शुक्रिया डॉक्टर्स" इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति ने कोरोना काल के अपने अनुभवों को साझा किया

"शुक्रिया डॉक्टर्स" इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति ने कोरोना काल के अपने अनुभवों को साझा किया

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो संगीता श्रीवास्तव ने एक पत्र लिखकर कोरोना काल के अपने अनुभवों को साझा किया है।  "शुक्रिया डॉक्टर्स"  शीर्षक से लिखे इस पत्र में उन्होंने बेहद मार्मिकता के साथ अपने अनुभव साझा किए हैं।  सहायक जन संपर्क अधिकारी डॉ चितरंजन कुमार सिंह  ने इसे मीडिया के साथ साझा किया है । पत्र इस प्रकार है :- 


----- शुक्रिया डॉक्टर्स------

जब यह  दुःखद खबर आई कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में 40 शिक्षकों की असमय मृत्यु हुई औऱ दिल्ली विश्वविद्यालय में  भी 30 प्रोफेसरों को कोरोना के कारण असमय मृत्यु का सामना करना पड़ा, तो समस्त शिक्षक समुदाय में दुःख की लहर फैल गई। ईश्वर का शुक्र है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कोरोना का आतंक समय रहते रुक गया ।  पर हमने अपने 7 साथियों को असमय खो दिया ।  जिसमें  3  शिक्षक तथा 4  गैर शैक्षणिक कर्मचारी थे ।  चार मौतें संघटक कॉलेजों में भी हुईं । हमने जिन्हें खो दिया उनकी कमी हमेशा खलेगी ।  हमारे अधिकांश कोरोना संक्रमित साथी स्वस्थ हो चुके हैं ।  कुछ धीरे धीरे ठीक हो रहे हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसर और संघटक महाविद्यालयों के समय पर बंद होने से कोरोना संक्रमण की श्रृंखला टूट गई । इस कारण हम अन्य विश्वविद्यालयों की तुलना में  काफी हद तक स्थिती पर नियंत्रण प्राप्त कर सकें ।

कोरोना के क्रूर प्रभाव के कारण इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक  प्रोफेसर के आकस्मिक निधन ने एक घातक राक्षस की तरह हमारे दिलों पर दस्तक दी । वह राक्षस जो लगभग हम सभी को निगलने के लिए धीरे धीरे अपने पंजे  फैला रहा था ।  9 प्रशासनिक कर्मचारियों के बीमार होने की सूचना मिलने पर मैंने ऑनलाइन परीक्षा के बारे में बहुत सोचा लेकिन तभी इलाहाबाद  विश्वविद्यालय में कोरोना से दूसरी मौत की दुःखद सूचना आयी  और अचानक मेरे दिमाग में जैसे सब कुछ खो सा गया ।  मेरे अंतर्मन ने तुरंत ही महसूस किया कि यह सब सामान्य नहीं है और मुझे तुरंत विश्वविद्यालय परिसर  बंद करने की जरूरत महसूस हुई । स्थिती की गंभीरता के मद्देनजर 8 अप्रैल 2021 को हमने विश्वविद्यालय के शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों के साथ आपात बैठक की और 30 अप्रैल 2021 तक  इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसर को सील करने के साथ साथ  समस्त संघटक कॉलेजों को बंद करने का फैसला लिया  । मैं तूफान से पहले का सन्नाटा सुन सकती थी। परिसर बंद होने के एक सप्ताह के बाद ही  एक और मौत ने हमें घुटनों पर लाकर असहाय कर दिया । हमने सामूहिक  रूप से हाथ जोड़कर उन सभी के लिए प्रार्थना की जो इस क्रूर बीमारी के शिकार हो गए थे। कुछ ही दिनों बाद हालात और नाजुक हो गए जब चारों ओर से मदद के लिए अनगिनत फोन कॉल आने शुरू हो गए ।  अस्पतालों में रोगियों की बेतहाशा भीड़ शुरू हो गई और इसके साथ ही ऑक्सीजन सिलेंडर, दवा और  एम्बुलेंस  के लिए चीख पुकार मच गई ।  मैंने भी अपने कई  डॉक्टर दोस्तों से सलाह ली औऱ संक्रमित हुए अध्यापकों ,कर्मचारियों को अपने स्तर पर सार्थक  सुझाव दिया ।  कई हफ्तों तक हमारे  विश्वविद्यालय और संघटक कॉलेजों के 300 कर्मचारी होम आइसोलेशन में थे । 

सबसे दुःखद तो यह था कि जो लोग पीड़ित थे, उनके घर के नए  सदस्यो तक भी कोरोना  पहुंच रहा था । अस्पतालों में बेतरह भीड़  थी ।  हमारे कई शिक्षक साथियों और  कर्मचारियों ने  अस्पतालों में बिस्तर पाने की असफल कोशिशें की । विश्वविद्यालय के दो शिक्षकों  को बेहतर इलाज के लिए  दिल्ली  एयरलिफ्ट किया गया ।  विश्वविद्यालय परिसर में जैसे धीरे धीरे मौत का सन्नाटा पसर रहा था । अप्रैल के महीने में ही  3 गैर शैक्षणिक कर्मचारी भी हमें बीच सफर में छोड़ कर  अनंत यात्रा के लिए परमात्मा में विलीन हो गए । अपने बिछड़ चुके साथियों की स्मृति में 24 अप्रैल 2021 को आयोजित श्रद्धाजंलि सभा की  वीडियो कॉन्फ्रेंस में सभी के चेहरों पर  बीमारी के शिकार होने का डर साफतौर पर  दिख रहा था । मैंने इस दौरान  सबको स्वस्थ दिनचर्या और पौष्टिक आहार  के लिए प्रेरित किया । हमें याद रखना चाहिए कि पौष्टिक भोजन ही हमारी सबसे अच्छी दवा है न कि दवा हमारा भोजन है । 

आज करीब पांच हफ्तों बाद मुझे जो जानकारी  दी गयी है उसके अनुसार इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिवार से जुड़े लगभग हर शिक्षक और  कर्मचारी के घर कोविड 19 ने दस्तक दी है ।  पर संतोष की बात है कि होम आइसोलेशन ( पृथक्करण), चिकित्सकों की जरूरी सलाह, संयमित दिनचर्या और दवाओं के सेवन से काफी लोग ठीक हो चुके हैं।  घर के सदस्यों के भावनात्मक लगाव ने भी कोरोना रोगियों को शीघ्रता से उबरने में मदद की ।  

कुछ दिनों पहले मेरे एक  सहकर्मी ने आपात स्थिति में मुझे फोन किया । उन्हें अस्पताल में अपने लिए एक बिस्तर की जरूरत थी । वे बेदम थे और मुश्किल से साँस ले पा रहे थे । उन्होंने मदद के लिए मुझे आवाज़ दी ।  जब वह अस्पताल पहुंचे तो उनकी हालत खराब थी औऱ वह अंदर से निराशा भी थे। उनकी तबियत लगातार बिगड़ती जा रही थी । अफ़सोस कि अस्पताल में  जरूरी उपकरणों की भी कमी थी । उन्हें बचाने के लिए  श्वास के जरूरी  उपकरण मुझे  दूसरे अस्पताल से मंगवाने पड़े । यह सुनने में काफी निराशाजनक लग  सकता है पर  अगले दो दिनों तक उनमें कोई  सुधार नजर नहीं आया । उन्हें देख रहे  डॉक्टर ने बेहद अफसोस के साथ मुझे किसी भी अनहोनी  के लिए तैयार रहने को कहा । *लेकिन इसी दौरान  मैंने डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ और पैरा मेडिकल स्टाफ को रात-दिन  काम करते हुए देखा ।  उम्मीद न होने के बावजूद डॉक्टर और उनकी टीम मेरे सहकर्मी को पूरी शिद्दत से आई सी यू में देख रहे थे। वे हर वक्त मरीज से संपर्क स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे , और अपनी पूरी क्षमता से उनका  बेहतर इलाज कर रहे थे ।

हम सब मरीज से एकतरफा संवाद कर रहे थे । फिर एक दिन 'प्यार और समर्पण'  इन शब्दों ने जादू की तरह काम किया और एक शाम हमने देखा कि हमारे सहयोगी मरीज की ऑक्सीजन का स्तर धीमी गति से बढ़ रहा था ।  यह धीरे-धीरे बढ़ता गया और उनके फेफड़ों के लगभग सभी क्षतिग्रस्त ऊतकों की  मरम्मत भी हो गई।  उन्हें वापस जीवन की ओर लौटते हुए देखना शब्दों से परे था । उसी दैरान मुझे पता चला कि हमारे मरीज का इलाज कर रहे  डॉक्टर को खुद  कोरोना बीमारी की  गंभीर स्थिती से गुजरना पड़ा था और वह अभी अभी ठीक होकर अस्पताल से बाहर आये थे । एक ऐसे क्रूर समय में  जब हम सभी अपने अपने  घर की चारदीवारी में छिपे थे, तो ये  डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल  स्टाफ न सिर्फ  अपने घर से जल्दी निकल जाते थे बल्कि  देर  रात गए  लौटेते थे । वे  उन जगहों पर प्रवेश करने की हिम्मत करते थे, जहाँ जाने की बात सुनकर कलेजा मुँह को आ जाए। जहां  अन्य कोई  पैर रखने तक  की हिम्मत नहीं करता । वे मुझे अपने अभेद्य चमकते हुए पीपीई कवच में मानवता की सेवा करने वाले सैनिकों की तरह दिख रहे थे ।

मैं अपने हृदय की गहराइयों से मानवता की सेवा में लगे सारे डॉक्टरों , नर्सो और मेडिकल स्टाफ का शुक्रिया अदा करती हूँ। आप सारे लोग कोरोना के क्रूर राक्षस से दिन रात लड़ रहे हैं । बिना डरे, बिना रुके, बिना थके । जबकि आपके कई चिकित्सक साथी इस दौरान अपनी जान गँवा चुके हैं । आप मानवता को बचाने के लिए जिस जोश और जज़्बे के साथ आगे बढ़ रहे हैं वह हमेशा याद रखा जाएगा ।  


समय पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय बंद करके हमने कोरोना श्रृंखला को काफी हद तक तोड़ दिया । घर पर देखभाल और होम आइसोलेशन से हमारे शिक्षक साथियों ने खुद को समय रहते संभाल लिया । हम सब जल्द ही पहले की तरह फिर से अपने काम पर लौटेंगे । फिलहाल  हम सब  पुनः  डॉक्टरों, नर्सों और उनके पेशे से जुड़े सभी लोगो का हृदय से धन्यवाद करते है। आपने हमें विश्वास, प्रतिबद्धता, आत्मविश्वास और साहस का पाठ  पढ़ाया । 

                     प्रो. संगीता श्रीवास्तव
                          कुलपति
                  इलाहाबाद विश्वविद्यालय।

दिनांक :- 15 / 05/ 2021 .