स्वर्णमयी अन्नपूर्णेश्वरी का दर्शन करने के लिए दरबार में आस्था का सैलाब

अन्नपूर्णेश्वरी के प्रति अटूट आस्था थकावट पर भारी पड़ा,काशी में दो दिन मना धनतेरस पर्व

स्वर्णमयी अन्नपूर्णेश्वरी का दर्शन करने के लिए दरबार में आस्था का सैलाब

वाराणसी, 23 अक्टूबर । काशीपुराधिपति की नगरी में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धनतेरस पर्व पर रविवार को स्वर्णमयी मां अन्नपूर्णा का दर्शन करने व अन्न धन का खजाना पाने के लिए दरबार में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा। भोर से ही श्रद्धालु नर नारी कड़ी सुरक्षा के बीच मंदिर के प्रवेश द्वार से काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ को भी अन्नदान देने वाली स्वर्णमयी अन्नपूर्णेश्वरी का अद्भुत रूप देख निहाल होते रहे। इस दौरान माता रानी का खजाना धान का लावा व खजाना का प्रसाद (सिक्का) महंत शंकर पुरी दोनों हाथों से भक्तों में बांटते रहे। दरबार में श्रद्धालु रात ग्यारह बजे तक माता के इस स्वरूप का दर्शन कर सकेंगे। स्वर्णमयी मां के दिव्य प्रतिमा का दर्शन अगले तीन दिनों अन्नकूट तक भोर में चार बजे से रात ग्यारह बजे तक मिलेगा। धनतेरस का पर्व काशी में दो दिन मनाया जा रहा है।



धनतेरस पर्व पर अन्नपूर्णेश्वरी का आर्शिवाद और खजाना पाने की लालसा लेकर श्रद्धालु शनिवार अपरान्ह से ही कतारबद्ध होने लगे। महिलाओं ने पूरी रात बैरिकेडिंग में सड़क पर बैठ भजन करते हुए रात गुजारी। श्रद्धालु महिलाओं की कतार देर शाम ही बांसफाटक से केसीएम तक पहुंच गई थी। इसकी जानकारी महंत शंकर पुरी को हुई तो



उन्होंने मंदिर के स्वयंसेवकों को उनकी सेवा के लिए भेजा। स्वयंसेवकों की टीम खजाने की प्रतीक्षा में सड़क किनारे बैठे भक्तों को नाश्ता, पेयजल, चाय आदि का वितरण करती रही। भोर में चार बजे जब मंदिर का पट खुला तो श्रद्धालु माता रानी का जयकारा लगाते हुए दर्शन पूजन में जुट गये। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र स्थित मंदिर के प्रथम तल पर स्थित गर्भगृह में स्वर्णमयी मां अन्नपूर्णा के विग्रह को विराजमान कराकर विधिवत सुगंधित फूल-मालाओं,स्वर्णआभूषणों से विधिवत श्रृंगार किया गया। भोर में लगभग चार बजे मंदिर के महंत शंकर पुरी ने भोग लगाने के बाद मंगला आरती की।

इस दौरान खजाने का पूजन भी किया गया। मंगला आरती के बाद जैसे ही मंदिर का पट आम श्रद्धालुओं के लिए खुला लगभग एक किलोमीटर की दूरी तक कतार बद्ध बैठे श्रद्धालु उत्साह से भर गये। चहुंओर माता रानी का जयकारा लगा हर—हर महादेव का गगनभेदी उद्घोष कर श्रद्धालु अपनी बारी आने पर पूरी श्रद्धा से दरबार में मत्था टेकते रहे। खास बात यह रही कि पूरी रात सड़क पर गुजारने के बाद भी उनके चेहरे पर थकावट का भाव नही दिखा। अन्नपूर्णेश्वरी के प्रति अटूट आस्था थकावट पर भारी पड़ गई। जैसे-जैसे दिन चढ़ता रहा, श्रद्धालुओं का हुजूम बढ़ता ही जा रहा था। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए गोदौलिया से बांसफाटक व ज्ञानवापी से बांसफाटक तक की गई बैरिकेडिंग की गई थी। श्रद्धालु अस्थायी सीढ़ियों से मंदिर के प्रथम तल पर स्थित माता रानी का दर्शन कर पीछे के रास्ते राम मंदिर परिसर होते हुए कालिका गली से निकल रहे थे। पर्व पर पूरे मंदिर परिसर को फूल-मालाओं व विद्युत झालरों से आकर्षक ढंग से सजाया गया है। उधर,धनतेरस पर्व पर संकठा गली स्थित अन्नपूर्णा दरबार में भी दर्शन-पूजन के लिए श्रद्धालु उमड़ते रहे। भोर में मंगला आरती के बाद मंदिर का पट भक्तों के लिए खुल गया। यहां भी भक्तों में खजाने के प्रसाद का वितरण होता रहा। यहां भी देवी का दर्शन-पूजन अन्नकूट तक होगा।



-वर्ष में चार दिन ही मिलता है स्वर्णमयी अन्नपूर्णा के दर्शन का सौभाग्य



माता अन्नपूर्णा का दर्शन तो श्रद्धालुओं को प्रतिदिन मिलता हैं। लेकिन, खास स्वर्णमयी प्रतिमा का दर्शन वर्ष में सिर्फ चार दिन धनतेरस पर्व से अन्नकूट तक ही मिलता है। मां की दपदप करती ममतामयी ठोस स्वर्ण प्रतिमा कमलासन पर विराजमान और रजत शिल्प में ढले काशीपुराधिपति की झोली में अन्नदान की मुद्रा में है। दायीं ओर मां लक्ष्मी और बायीं तरफ भूदेवी का स्वर्ण विग्रह है। काशी में मान्यता है कि जगत के पालन हार काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ याचक के भाव से खड़े रहते है। बाबा अपनी नगरी के पोषण के लिए मां की कृपा पर आश्रित हैं।

पौराणिक ग्रंथों में लिखा है कि यहां माता अन्नपूर्णा का वास बाबा विश्वनाथ के विराजमान होने से पहले ही हो चुका था। वर्ष 1775 में जब बाबा विश्वनाथ मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तब पार्श्वभाग में देवी अन्नपूर्णा का मंदिर मौजूद था। पूरे देश में कहीं ऐसी प्रतिमा देखने को नहीं मिलती। मां की स्वर्णमयी प्रतिमा की प्राचीनता का उल्लेख भीष्म पुराण व अन्य शास्त्रों में भी मिलता है। वर्ष में चार दिन धान का लावा-बताशा और पचास पैसे के सिक्के खजाना के रूप में वितरण की परम्परा है। इसे घर के अन्न भंडार में रखने से विश्वास है कि वर्ष पर्यन्त धन धान्य की कमी नहीं होती। इसी विश्वास से लाखों श्रद्धालु दरबार में आते हैं।