श्री रामचरित मानस सनातन संस्कृति की अमूल्य निधि : स्वामी अधोक्षजानंद
श्री रामचरित मानस सनातन संस्कृति की अमूल्य निधि : स्वामी अधोक्षजानंद
प्रयागराज, 30 जनवरी । श्री रामचरित मानस सनातन संस्कृति की अमूल्य निधि है। मध्यकाल की विसंगतियों के दौर में जन सामान्य को उच्च आदर्शों के अवलम्बन की आवश्यकता थी, जिसे आचार्य तुलसी ने पूरा किया।
उक्त विचार स्वामी अधोक्षजानन्द ने व्यक्त किया। वह दांदूपुर स्थित समदरिया स्कूल में सोमवार को अखंड मानस पाठ के समापन अवसर पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य का साहित्यिक, धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आदि सभी दृष्टि से अनुपम महत्व है। इस ग्रंथ में मानव जीवन की सभी परिस्थितियों के समावेश के साथ आदर्श मानवीय मूल्यों एवं सांस्कृतिक मर्यादाओं का विराट रूप परिलक्षित होता है। उन्होंने कहा कि रामचरित मानस भारतीय संस्कृति की वह गौरवगाथा है, जिसकी अमरवाणी लगभग 500 वर्षों से निरंतर भारत ही नहीं, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में गूंज रही है और जनमानस को ताकत प्रदान कर रही है।
इसके पूर्व स्वामी अधोक्षजानन्द के सानिध्य में मंत्रोच्चार के साथ हवन-आहुति व विधान पूर्वक अनुष्ठान संपन्न हुआ। संस्थान के निदेशक डॉ. मणि शंकर द्विवेदी ने स्वागत किया। वरिष्ठ पत्रकार पी एन द्विवेदी ने स्वामी अधोक्षजानन्द के कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अम्बिका पांडेय तथा आभार ज्ञापन पीके तिवारी ने किया। इस अवसर पर प्रमुख रूप से डॉ रमा सिंह, डॉ. बबली द्विवेदी, राघवेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ. विन्ध्यवासिनी त्रिपाठी, विजय सागर द्विवेदी, नितेश पांडेय, राजेश शुक्ल, कमल कुमार, नागेंद्र प्रसाद पांडेय, महेन्द्र सिंह आदि लोग उपस्थित रहे।