न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग अस्वीकार, सख्ती से निपटने की जरूरतः हाईकोर्ट
न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग अस्वीकार, सख्ती से निपटने की जरूरतः हाईकोर्ट
प्रयागराज, 18 मई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायालयों को न्यायिक प्रक्रिया के दुरूपयोग करने के किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं करना चाहिए। इसके खिलाफ सख्ती से निपटना चाहिए। उस पर भारी जुर्माना लगाना चाहिए।
मौजूदा मामले में याची के खिलाफ शिकायतकर्ता ने एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज कराने में महत्वपूर्ण तथ्य को छुपाया है। शिकायतकर्ता के स्वच्छ मन से न्यायालय न आने की वजह से उसकी प्राथमिकी और याची के खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया के तहत हुई कार्रवाई रद्द करने लायक है।
यह आदेश न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद ने बॉबी आनंद उर्फ योगेश आनंद की याचिका की ओर से दाखिल याचिका पर दिया है। कोर्ट ने एनआई एक्ट के तहत मथुरा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष चल रही आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने की मांग वाली याचिका को स्वीकार करते हुए उक्त आदेश दिया है।
याची का कहना है कि उसने मुम्बई के ओशिवारा थाने में दो अलग-अलग बैंकों के चेक गायब होने की प्राथमिकी दर्ज कराई थी। साथ ही इसकी जानकारी अपने बैंकों को दे दी थी और चेक को क्लीयर न करने को कहा था। उसके पास एक दिन बैंक से काल आई कि उसके गायब हुए दो चेक में से एक चेक को बैंक में राशि आहरित करने के लिए लगाया गया है। बैंक की सूचना के आधार पर उसने प्राथमिकी दर्ज कराई।
उधर, चेक न क्लीयिर होने पर याची के खिलाफ चेक लगाने वाले प्रतिवादी दीनानाथ चतुर्वेदी ने मथुरा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष एनआई एक्ट के तहत अर्जी दाखिल कर प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग की। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद याची के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हो गया और आपराधिक प्रक्रिया के तहत कार्रवाई शुरू हो गई। शिकायतकर्ता का तर्क था कि वह चलचित्रों से सम्बंधित व्यवसाय करता है। याची मां शेरावली प्रोडक्शन के प्रोपोराइटर हैं, उन्होंने अपने फिल्म प्रोडक्शन के लिए तीस लाख रुपये उधार लिए थे। याची ने मय ब्याज राशि लौटाने का वादा किया था। याची ने उसी के तहत दोनों चेक शिकायतकर्ता को स्वयं हस्ताक्षर करके दिए थे। उसमें से एक चेक उसने अपने मथुरा स्थित बैंक के खाते में लगाए लेकिन चेक क्लीयर नहीं हुआ। इसलिए उसने परिवाद दाखिल किया और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश से याची के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई।
याची ने इसी के खिलाफ इस आपराधिक प्रक्रिया को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट की शरण ली। याची ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता ने उसके खिलाफ गलत प्राथमिकी दर्ज कराई है। कोर्ट ने तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए याची की याचिका को स्वीकार कर उसके खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष चल रही आपराधिक प्रक्रिया सहित प्राथमिकी को रद्द कर दिया।