गुरु के साथ हुईं विधायक अदिति सिंह, सोनिया के गढ़ की राजनीति में होगा असर !

गुरु के साथ हुईं विधायक अदिति सिंह, सोनिया के गढ़ की राजनीति में होगा असर !

गुरु के साथ हुईं विधायक अदिति सिंह, सोनिया के गढ़ की राजनीति में होगा असर !

रायबरेली, 24 नवम्बर । दो साल से बागी तेवर अपना रही विधायक अदिति सिंह आख़िरकार अपने गुरु के साथ हो गईं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपना गुरु बताने वाली अदिति सिंह ने दो दिन पहले ही अपने दिए बयान में उनकी टीम का हिस्सा बनने की इच्छा ज़ाहिर की थी। हालांकि उनके भाजपा में जाने से रायबरेली और अमेठी की राजनीति में क्या असर होगा यह तो आने वाला दिन ही बतायेगा। लेकिन कांग्रेस को कद्दावर नेताओं की कमी जरूर खल रही है।

अदिति सिंह को प्रियंका वाड्रा का काफ़ी नजदीकी माना जाता था और 2019 के लोकसभा चुनावों में सोनिया गांधी को जिताने में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही है। बावजूद इसके प्रियंका से अब उनकी तल्ख़ी जगजाहिर है। हर मुद्दे पर वह लगातार कांग्रेस नेतृत्व को घेर रहीं हैं। भाजपा उनके शामिल होने से जरूर रायबरेली में नए जोश के साथ आगे बढ़ सकती है। दूसरी ओर कांग्रेस की मुसीबत यह है कि रायबरेली में उसके पास कद्दावर नेताओं की लगातार कमी हो रही है।

दरअसल रायबरेली के बाहुबली विधायक रहे स्व. अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह को कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनाव के लिये सदर सीट से उतारा, जिसमें वह भारी बहुमत से विजयी हुईं। हालांकि इसके पीछे उनके पिता का असर होना ज्यादा माना गया। इसके बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अदिति सिंह ने सोनिया गांधी के चुनाव में जुटी रही और प्रियंका वाड्रा के साथ मिलकर कड़ी मेहनत की। लेकिन अदिति सिंह का जल्दी ही कांग्रेस से मोहभंग होने लगा और वह दो अक्टूबर 2019 को कांग्रेस का विह्प होने के बावजूद विधानसभा के विशेष सत्र में शामिल हुईं। जबकि इसी दिन लखनऊ में प्रियंका वाड्रा की पदयात्रा थी। कांग्रेस प्रदेश नेतृत्व ने इसके ख़िलाफ़ उन्हें नोटिस भी दिया, लेकिन अदिति सिंह के तेवर बागी ही रहे।आर्टिकल 370 को लेकर मोदी सरकार की उन्होंने प्रशंसा की और कोरोना के दौरान पार्टी की बस राजनीति को भी सवालों के कटघरे में किया। हालांकि अदिति सिंह इस बीच लगातार विहिप और अन्य संगठनों के कार्यक्रमों में शामिल होती रहीं। इसके अलावा प्रियंका वाड्रा को भी वह लगातार निशाने पर लेती रही और कृषि कानूनों की वापसी सहित कई मुद्दों पर पार्टी के ख़िलाफ़ बयान दिया।

रायबरेली में सोनिया गांधी की अनुपस्थिति को भी वह मुद्दा बनाती रही हैं। हालांकि भाजपा में शामिल होने के बाद उनका रायबरेली सदर से टिकट पक्का है, लेकिन अभी तक इस सीट से कमल नहीं खिल पाया है। अब भाजपा क्या कमाल करती है यह समय बताएगा। लेकिन अगले कुछ दिनों में रायबरेली की राजनीति में बड़े उलटफेर की सम्भावना है।