लखनऊ में हर्षोल्लास से मनाई गई लोहड़ी
शाम को लोहड़ी की अग्नि की प्रज्जवलित की गई, उसके बाद नाच-गाकर मनाई त्योहार की खुशियां
लखनऊ, 13 जनवरी । उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में लोहड़ी हर्षोल्लास और खुशी से मनाई। सिक्ख परिवारों में इस त्योहार का उत्साह देखते ही बना। शाम को घरों और गुरूद्वारों में शाम को लोहड़ी की अग्नि प्रज्जवलित की गई और उसमें मूगफली, खील, मकई, रेवडी आदि को चढाया । उसके बाद सबने मिलकर नाच-गाकर त्योहार की खुशियां मनाई । यहां नाका, आलमबाग, सिंगार नगर में त्योहार की रौनक देखते ही बनी।
नाका हिन्डोला स्थित ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरु नानक देव जी सिंह नाका हिण्डोला में किया गया। यहां गुरूद्वारे के बाहर लोहड़ी जलाई गई। काफी संख्या में लोगों ने इकट्ठे होकर त्योहार मनाया। लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा ने उपस्थित संगतों एवं समस्त नगरवासियों को लोहड़ी के त्यौहार की बधाई दी और कहा कि लोहड़ी एक सामाजिक पर्व है, सिक्खों का धार्मिक त्यौहार नहीं है। इसे पंजाबी समाज के लोग बेटे की शादी या बच्चे के जन्म की पहली लोहड़ी बड़ी खुशी एवं उल्लास के साथ गुरु महाराज का आशीर्वाद लेकर मनाते हैं।
उन्होंने बताया कि लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल और रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) के शब्दों से बना है जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस पर्व पर लकड़ियों को इकट्ठा कर आग जलाई जाती है और अग्नि के चारो तरफ चक्कर लगाकर अपने जीवन को खुशियों और सुख शान्ति से व्यतीत होने की कामना करते हैं र्। अिग्न मे रेवड़ी, मूंगफली खील, मक्की के दानों की आहूति देते हैं और नाचते गाते हैं जिस घर में नई शादी हुई होती है या बच्चा पैदा होता है वह इस त्यौहार को विशेष तौर पर मनाते हैं।
स्टेज सेक्रेट्ररी सतपाल सिंह मीत ने बताया कि लोहड़ी की रात बहुत ठंडी और लम्बी होती है। लोहड़ी के बाद रात छोटी और दिन बड़ा हो जाता है। एक गाथा है कि बादशाह अकबर के समय दुल्ला भट्ठी नाम का बागी नायक था । वह दिल का बड़ा नेक था। वह अमीरों को लूटकर गरीबों मे बांट देता था। वह अमीरों द्वारा जबर्दस्ती से गुलाम बनाई गई लड़कियों को उनसे छुड़वा कर उन लड़कियों की शादी करवा देता था और दहेज भी अपने पास से देता था, वह दुल्ला भट्ठी वाला के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
अकबर के शासनकाल में बागी नायक को मृत्यु दंड देकर उसके शरीर मे भूसा भरवाकर लाहौर के चौराहे पर लटकवा दिया गया था। दुल्ला भट्टी ने दो अगवा ब्राह्मण कन्यायों सुन्दरी- मुन्दरी को मुगल आक्रांताओं से मुक्त करा कर मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या पर जंगल मे ब्राह्मण युवकों के साथ शादी करवा दी थी, इसी घटना की याद में मकर संक्रान्ति के एक दिन पूर्व यह पर्व मनाया जाता है। तभी से लोहड़ी की रात लोग आग जला कर और रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर नाचते गाते हैं और उसका गुणगान करते हैं । पंजाब के प्रसिद्ध लोक गीतः- सुंदर मुंदरिए-हो, तेरा कौन विचारा-हो, दुल्ला भट्टी वाला-हो गाकर इस पर्व को मनाते हैं। कार्यक्रम की समाप्ति के उपरान्त मक्के के दानेे ,रेवड़ी, चिड़वड़े, तिल के लडडू का प्रसाद श्रद्धालुओं में वितरित किया गया।
आलमबाग निवासी जसबीर सिंह ‘राजू ‘ने बताया कि इसे परिवारों में और सामूहिक रूप दोनों तरह से मनाते है। इस दिन छोटे बच्चे बड़ों से लोहड़ी भी मागते है और पैसों को इकट्ठा कर लकड़ियां खरीदकर लाते हैं और शाम को लोहड़ी जलाते है। उसके बाद परिवार के सभी लोग खुशी से त्योहार आनंद उठाते है।