प्रयागराज: इविवि में मुंशी प्रेमचंद की 141वीं जयंती पर व्याख्यान
प्रेमचंद धारा विशेष पर आधारित साहित्य के विरोधी : डॉ उदय प्रताप सिंह
प्रयागराज, 30 जुलाई साहित्य यथार्थवादी होता है। जीवन में जो है उसे ही साहित्य में लाना चाहिए। प्रेमचंद भारतीय समाज के विरूद्ध कहीं दिखाई नहीं देते हैं। प्रेमचंद धारा विशेष पर आधारित साहित्य के विरोधी हैं, वे बुनियादी चिंताओं से टकराते हैं। प्रेमचंद आलोचक नहीं थे लेकिन ‘साहित्य का उद्देश्य’ में आलोचना के बीज शब्दों में रखते थे।
उक्त विचार मुख्य वक्ता हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज के अध्यक्ष डॉ उदय प्रताप सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 141वीं जयंती के अवसर पर आयोजित विशेष व्याख्यान छात्र संवाद में व्यक्त किया। राजभाषा अनुभाग द्वारा आयोजित व्याख्यान में उन्होंने कहा ‘काबुलीवाला’ कहानी में प्रेमचंद आलोचक की भूमिका में दिखाई देते हैं। प्रेमचंद साहित्य में यथार्थ को चित्रित करते हैं। उन्होंने कहा कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव के विश्वविद्यालय में कुलपति बनने के बाद विश्वविद्यालय में इस तरह के आयोजनों को गति मिली है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय का राजभाषा अनुभाग छात्र-छात्राओं के लिए इस तरह के संवाद आयोजित करता रहता है, यह खुशी की बात है।
राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयोजक प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि भारत गांवों का देश है। आगे आने वाले समय में गांव बचेंगे कि नहीं ये भी सोचने का विषय है। यदि भारत के गांवों को समझना है तो प्रेमचंद के साहित्य के अलावा कोई दूसरा माध्यम नहीं हो सकता। राजभाषा अनुभाग के अनुवाद अधिकारी ने कहा कि आज हम प्रेमचंद की 141वीं जयंती मना रहे हैं लेकिन आज भी कथा सम्राट की कहानियां पढ़ो तो ऐसा लगता है कि सब कुछ अभी घटित हुआ हो।
इस अवसर पर राजभाषा कार्यान्वयन समिति की सदस्य डॉ कल्पना वर्मा, डॉ दीनानाथ, डॉ वीरेन्द्र मीणा, डॉ विनम्रसेन सिंह, डॉ रमेश सिंह, डॉ विवेक निगम, डॉ सुजीत सिंह, डॉ अमितेश कुमार एवं अत्यधिक संख्या में कर्मचारी एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन अनुवाद अधिकारी हरिओम कुमार ने एवं धन्यवाद ज्ञापन असि. प्रोफेसर डॉ आदित्य त्रिपाठी ने किया।