कृष्ण जन्मभूमि विवाद : हिन्दू उपासकों और देवता के मुकदमे सुनवाई योग्य, मुस्लिम पक्ष की सुनवाई के खिलाफ आपत्तियां खारिज
कृष्ण जन्मभूमि विवाद : हिन्दू उपासकों और देवता के मुकदमे सुनवाई योग्य, मुस्लिम पक्ष की सुनवाई के खिलाफ आपत्तियां खारिज
प्रयागराज, 01 अगस्त । मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के सम्बंध में लंबित मुकदमों के महत्वपूर्ण फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को शाही ईदगाह मस्जिद की याचिका को आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत खारिज कर दिया। इस याचिका में देवता और हिन्दू उपासकों द्वारा दायर 18 मुकदमों की विचारणीयता को चुनौती दी गई थी। इस निर्णय के साथ जस्टिस मयंक कुमार जैन की पीठ ने सभी 18 मुकदमों को सुनवाई योग्य पाया, जिससे उनकी योग्यता के आधार पर उनकी सुनवाई का मार्ग प्रशस्त हुआ। हाई कोर्ट 12 अगस्त को इस मामले की आगे करेगी सुनवाई।
एकल जज ने सभी पक्षों को सुनने के बाद शाही ईदगाह मस्जिद समिति की अर्जी पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसमें मुकदमों की सुनवाई योग्य होने पर सवाल उठाया गया था। ओपन कोर्ट में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने फैसले के मुख्य अंश को पढ़ते हुए कहा कि हिंदू उपासकों और देवता के वादों पर सीमा अधिनियम या पूजा स्थल अधिनियम आदि के तहत रोक नहीं है। इसके साथ ही न्यायालय ने प्रबंध समिति ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह (मथुरा) द्वारा दी गई प्राथमिक दलील खारिज कर दी कि हाई कोर्ट में लम्बित वादों पर पूजा स्थल अधिनियम 1991, परिसीमा अधिनियम 1963 और विशिष्ट राहत अधिनियम 1963 के तहत रोक है।
हाई कोर्ट में हिंदू वादियों ने दलील दी थी कि शाही ईदगाह के नाम की कोई सम्पत्ति सरकारी अभिलेखों में नहीं है और उस पर अवैध कब्जा है। उन्होंने यह भी दलील दी कि अगर सम्पत्ति वक्फ सम्पत्ति है तो वक्फ बोर्ड को बताना चाहिए कि विवादित सम्पत्ति किसने दान की है। उन्होंने यह भी दलील दी कि इस मामले में पूजा अधिनियम, परिसीमा अधिनियम और वक्फ अधिनियम लागू नहीं होते। मूल वाद संख्या 6, 9, 16 और 18 (जिसमें शाही ईदगाह को हटाने की मांग की गई है) की स्थिरता को चुनौती देते हुए मस्जिद समिति ने तर्क दिया कि वादीगण ने अपने वाद में 1968 के समझौते को स्वीकार किया। इस तथ्य को भी स्वीकार किया कि भूमि (जहां ईदगाह बनी है) का कब्जा मस्जिद प्रबंधन के नियंत्रण में है। इसलिए यह वाद सीमा अधिनियम और पूजा स्थल अधिनियम द्वारा वर्जित होगा, क्योंकि वादों में यह भी स्वीकार किया गया है कि विचाराधीन मस्जिद का निर्माण 1669-70 में हुआ था।
दीवानी वाद शुरू करने की सीमा अवधि कार्रवाई के कारण उत्पन्न होने की तिथि से तीन वर्ष है। मस्जिद समिति ने यह भी तर्क दिया कि स्थायी निषेधाज्ञा की प्रार्थना केवल उस व्यक्ति को दी जा सकती है, जो वाद की तिथि पर संपत्ति के वास्तविक कब्जे में हो। चूंकि वादीगण के पास मस्जिद नहीं है, इसलिए वे स्थायी निषेधाज्ञा के लिए प्रार्थना नहीं कर सकते। शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी ने सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के तहत आदेश 7 नियम 11 (डी) के तहत दायर अपने आवेदन में दृढ़ता से तर्क दिया कि हाई कोर्ट के समक्ष लम्बित वादों में यह स्वीकार किया गया कि 1968 के बाद भी मस्जिद अस्तित्व में थी।
दूसरी ओर वादीगण ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि के समर्थन में तर्क दिया कि किसी भी संपत्ति पर अतिक्रमण करना उसकी प्रकृति बदलना और बिना स्वामित्व के उसे वक्फ संपत्ति में बदलना वक्फ की प्रकृति है। इस तरह की प्रथा की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने तर्क दिया कि इस मामले में वक्फ अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे, क्योंकि विवादित संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं है। यह भी तर्क दिया गया कि प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1958 के प्रावधान विवादित संपत्ति के पूरे हिस्से पर लागू होते हैं। इसकी अधिसूचना 26 फरवरी 1920 को जारी की गई थी। अब इस संपत्ति पर वक्फ के प्रावधान लागू नहीं होंगे। हिंदू वादियों का प्रतिनिधित्व एडवोकेट हरि शंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, रीना एन सिंह, महेंद्र प्रताप सिंह, अजय कुमार सिंह, हरे राम त्रिपाठी, प्रभाष पांडे, विनय शर्मा, गौरव कुमार, राधेश्याम यादव, सौरभ तिवारी, सिद्धार्थ श्रीवास्तव, आशीष कुमार श्रीवास्तव, अश्विनी कुमार श्रीवास्तव और आशुतोष पांडे आदि ने किया।
संक्षेप में पूरा विवाद मथुरा में मुगल बादशाह औरंगजेब के दौर की शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसने भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान, मंदिर प्रबंधन प्राधिकरण और ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह के बीच समझौता हुआ था। जिसके तहत दोनों पूजा स्थलों को एक साथ संचालित करने की अनुमति दी गई। हालांकि कृष्ण जन्मभूमि के सम्बंध में अदालतों में विभिन्न प्रकार की राहत की मांग करने वाले पक्षों ने अब इस समझौते की वैधता पर संदेह जताया।
वादियों का तर्क है कि समझौता धोखाधड़ी पूर्ण और कानून की दृष्टि से अमान्य था। उनमें से कई लोग विवादित स्थल पर पूजा करने का अधिकार होने का दावा करते हैं और शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग करते हैं। पिछले साल मई में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा न्यायालय में लम्बित सभी मुकदमों को अपने पास स्थानांतरित कर लिया था, जिसमें कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से संबंधित विभिन्न राहतों की मांग की गई तथा भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और सात अन्य द्वारा दायर ट्रांसफर आवेदन स्वीकार कर लिया था।