व्यक्ति को विद्या और अविद्या दोनों का ज्ञान होना आवश्यक : प्रो. अनिल प्रताप गिरि
व्यक्ति को विद्या और अविद्या दोनों का ज्ञान होना आवश्यक : प्रो. अनिल प्रताप गिरि
प्रयागराज, 28 नवम्बर (हि.स.)। व्यक्ति का भौतिक के साथ ही आध्यात्मिक विकास भी होना चाहिए। व्यक्ति को विद्या और अविद्या दोनों का ज्ञान होना आवश्यक है। विद्या से हमारा आध्यात्मिक विकास होता है। अविद्या से विज्ञान व तकनीकी का विकास होता है।
उक्त विचार मुख्य वक्ता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संस्कृत, पालि, प्राकृत एवं प्राच्य भाषा विभाग के अध्यक्ष प्रो.अनिल प्रताप गिरि ने ईश्वर शरण पीजी कॉलेज में ‘‘विद्यार्थी सशक्तीकरण पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम : आत्मविश्वास और आत्मविकास’’ विषयक कार्यशाला के समापन अवसर पर व्यक्त किया।
गुरुवार को मानव संसाधन समिति के तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला में उन्होंने आगे कहा कि किसी भी सिद्धान्त के प्रतिपादन के लिए वैश्विक दृष्टि होना चाहिए। ज्ञान मूल्य आधारित होना चाहिए, जिससे हमारा रूपांतरण और विद्यार्थियों का सार्वभौमिक विकास होगा। श्रवण, मनन, निदिध्यासन इन तीनों से सार्वभौमिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। जीवन में चुनौतियां आनी चाहिए। उसे हमें अवसर के रूप में देखना चाहिए। भय और असफलता नकारात्मकता नहीं है, उसे सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए, क्योंकि असफलता से व्यक्ति बहुत कुछ सीखता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनंद शंकर सिंह ने की। संचालन कार्यकम संयोजिका डॉ.शिखा श्रीवास्तव और धन्यवाद ज्ञापन मानव संसाधन समिति की संयोजिका प्रो.अमिता पांडेय ने किया। कार्यक्रम में प्रो.इंदिरा श्रीवास्तव, डॉ. कृपाकिंजलम, डॉ. अमरजीत राम, डॉ. गायत्री सिंह, डॉ.महेंद्र प्रसाद, डॉ. रागिनी राय, डॉ. अश्विनी देवी, डॉ. प्रियंका सिंह, डॉ. महेश प्रसाद राय सहित महाविद्यालय के विविध संकायों विभिन्न शिक्षकगण, विद्यार्थीगण, शोधार्थीगण उपस्थित रहे।
प्रयागराज, 28 नवम्बर (हि.स.)। व्यक्ति का भौतिक के साथ ही आध्यात्मिक विकास भी होना चाहिए। व्यक्ति को विद्या और अविद्या दोनों का ज्ञान होना आवश्यक है। विद्या से हमारा आध्यात्मिक विकास होता है। अविद्या से विज्ञान व तकनीकी का विकास होता है।
उक्त विचार मुख्य वक्ता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संस्कृत, पालि, प्राकृत एवं प्राच्य भाषा विभाग के अध्यक्ष प्रो.अनिल प्रताप गिरि ने ईश्वर शरण पीजी कॉलेज में ‘‘विद्यार्थी सशक्तीकरण पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम : आत्मविश्वास और आत्मविकास’’ विषयक कार्यशाला के समापन अवसर पर व्यक्त किया।
गुरुवार को मानव संसाधन समिति के तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला में उन्होंने आगे कहा कि किसी भी सिद्धान्त के प्रतिपादन के लिए वैश्विक दृष्टि होना चाहिए। ज्ञान मूल्य आधारित होना चाहिए, जिससे हमारा रूपांतरण और विद्यार्थियों का सार्वभौमिक विकास होगा। श्रवण, मनन, निदिध्यासन इन तीनों से सार्वभौमिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। जीवन में चुनौतियां आनी चाहिए। उसे हमें अवसर के रूप में देखना चाहिए। भय और असफलता नकारात्मकता नहीं है, उसे सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए, क्योंकि असफलता से व्यक्ति बहुत कुछ सीखता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनंद शंकर सिंह ने की। संचालन कार्यकम संयोजिका डॉ.शिखा श्रीवास्तव और धन्यवाद ज्ञापन मानव संसाधन समिति की संयोजिका प्रो.अमिता पांडेय ने किया। कार्यक्रम में प्रो.इंदिरा श्रीवास्तव, डॉ. कृपाकिंजलम, डॉ. अमरजीत राम, डॉ. गायत्री सिंह, डॉ.महेंद्र प्रसाद, डॉ. रागिनी राय, डॉ. अश्विनी देवी, डॉ. प्रियंका सिंह, डॉ. महेश प्रसाद राय सहित महाविद्यालय के विविध संकायों विभिन्न शिक्षकगण, विद्यार्थीगण, शोधार्थीगण उपस्थित रहे।