हिंदू धर्म की तुलना किसी और धर्म से हो ही नहीं सकती : दिनेश चंद्र
रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में तीन दिवसीय संस्कृति संसद का आगाज
वाराणसी, 12 नवम्बर (हि.स.)। पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति और संस्कृत का अलख जगाने के लिए नगर निगम स्थित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित तीन दिवसीय संस्कृति संसद का आगाज शुक्रवार को हुआ। संस्कृति संसद के उद्घाटन सत्र में विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक दिनेश चंद्र ने कहा कि हिंदू, ईसाई और मुस्लिम एक समान नही हैं। यह गलत व्याख्या है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। हिंदू धर्म की तुलना किसी और धर्म से हो ही नहीं सकती।
उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था कि जितनी भी संस्कृति का अध्ययन करना चाहते हो जरूर करो। पहले हिंदू संस्कृति का अध्ययन करो तब पायेंगे कि हिंदू संस्कृति कितनी श्रेष्ठ है। इस संस्कृति ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी उन जीवन मूल्यों को स्थापित किया है। विद्वतजनों का दायित्व बनता है कि वे दुनिया भर में इस संस्कृति का प्रसार करें। हमारे यहां संवाद की संस्कृति है। उन्होंने कहा कि आज किसी भी राष्ट्र को खत्म करना हो तो उसकी संस्कृति को बदल देने से वहां का समाज खत्म हो जाता है। बहुत से देश ऐसे हैं जहां धर्म पर सवाल करना पाबंद है परन्तु हिन्दू धर्म में ऐसा नहीं। हमारी संस्कृति में सिखाया गया है हम किसी पर अत्याचार न करें परन्तु हम पर कोई अत्याचार करे तो उन्हें छोड़ना भी नहीं है। हमारा हिन्दू धर्म सभी धर्मों के सम्मान की बात कहता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. इंद्रेश कुमार ने कहा कि सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जो सभी को समेटने की क्षमता रखता है। भारत ने कोविड काल के दौरान वैक्सीन वितरण कर सब को बचाया और पाकिस्तान को हमारे सैनिकों ने देश से प्रेम करना और देश के लिए मरना सिखाया। हम अपनी सुरक्षा, अपने देश की सुरक्षा पर विदेशों पर निर्भर ना होकर आत्मनिर्भर बने हैं। उन्होंने कहा कि राम मंदिर निर्माण बिना किसी बाधा के शुरू कर दिया गया, बिना किसी दंगे के जम्मू कश्मीर से ३७० हटाया गया। हमारी धार्मिक पुस्तक रामायण सिखाती है हमारा धर्म हमेशा सभी की उन्नति की बात करता है, कभी किसी को अपमानित नहीं करता है।
संसद में श्री काशी विद्वत परिषद के महामंत्री रामयत्न शुक्ल ने कहा कि संस्कृति संसद का आयोजन बहुआयामी विषयों को लेकर किया जा रहा है। हमारे धर्मशास्त्री विद्वान ग्रंथों की त्रुटियों पर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे ग्रंथों में ऐसी कोई बात नहीं की गई है समाज में ऊंच-नीच की मानसिकता स्थापित हो। इस संस्कृति संसद में धर्म और संस्कृति से जुड़ी अनुत्तरित प्रश्नों का जवाब दिया जाएगा। इसे एक प्रस्ताव की तरह प्रकाशित किया जाएगा। आयोजन समिति के संरक्षक और प्रदेश के धर्मार्थ कार्य राज्यमंत्री डॉ नीलकण्ठ तिवारी ने कहा कि हमारी संस्कृति में सभी देवी-देवता विराजमान है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हजारों करोड़ की परियोजनाएं देश की संस्कृति और परम्परा को मजबूत बनाने के लिए ही चल रही हैं। संतों के आशीर्वाद और नेतृत्व में आज अयोध्या में राम मन्दिर का निर्माण हो रहा है। दो सौ से ज्यादा आध्यात्मिक स्थलों का विकास किया जा रहा है। वाल्मीकि धाम का विकास हो रहा है। मंत्री डॉ नीलकंठ तिवारी ने आज से 100 साल पूर्व चोरी हुई मां अन्नपूर्णा की मूर्ति का उल्लेख कर कहा कि ये प्राचीन मूर्ति कनाडा में रखी थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से वह भारत आ गई। उन्होंने बताया कि प्रयागराज कुम्भ में पिछली बार २४ करोड़ से ज्यादा लोग आ चुके हैं लेकिन उन्हें जरा भी परेशानी नही हुईं।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए अखिल भारतीय संत समिति के मुख्य निदेशक स्वामी ज्ञानदेव सिंह ने कहा कि हिन्दू संस्कृति के आधार पर ही भारत पुन:अखण्ड होगा। वेद भारतीय संस्कृति का मूल है तथा वेदों का मूल संस्कृति एवं संस्कृत है।अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि शासन को चलाने के लिए अनुशासन की आवश्यकता होती है।संसद में अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने विषय रखा। स्वामी जितेन्द्रांनद ने संसद में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद के विवादास्पद पुस्तक को लेकर उन्हें खरी खोटी सुनाई। भगवा आतंकवाद शब्द और हिंदुत्व की तुलना आतंकी संगठन बोको हराम,आईएसआईएस से करने पर एतराज भी जताया। कहा कि देश में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार श्रीनगर के सारे मंदिर स्वतंत्र हुए, अयोध्या के लोगों के संकल्प पूरे हुए। संस्कृति संसद के उद्देश्य का उल्लेख कर कहा कि अगले तीन दिन तक हिंदू धर्म के आधार पर कुछ विधान बनाये जायेंगे। इन्हें 2031 तक हर हाल में देश के लोगों को पा लेना है। इन प्रस्तावों और नियमों को लागू कराना भी हम संतों की ही जिम्मेदारी है।
अखिल भारतीय संत समिति, श्री काशी विद्वत परिषद के मार्गदर्शन में गंगा महासभा की ओर से आयोजित संस्कृति संसद में श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामयत्न शुक्ल ने भी विचार रखा। संचालन महासभा के संगठन महामंत्री गोविन्द शर्मा ने किया। संस्कृति संसद के शुभारंभ अवसर पर जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजराजेश्वराचार्य महाराज, महासभा के अध्यक्ष प्रेमस्वरूप पाठक,आचार्य अविचल दास, राज्य सभा सदस्य रुपा गांगुली की खास उपस्थिति रही। मीडिया संयोजक प्रो.ओम प्रकाश सिंह ने बताया कि देश के १८ राज्यों से आए प्रतिनिधि संस्कृति संसद में उपस्थित रहे।