फ्यूजन कार्पोरेट सोल्यूशन की एमडी, अध्यक्ष व निदेशक के रिमांड की चुनौती याचिका खारिज

कोर्ट ने कहा, अभियुक्त के जमानत न मांगने पर रिमांड पर भेजना गलत नहीं

फ्यूजन कार्पोरेट सोल्यूशन की एमडी, अध्यक्ष व निदेशक के रिमांड की चुनौती याचिका खारिज

प्रयागराज, 11 अगस्त (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि चार्जशीट के बावजूद अपराध की विवेचना जारी है एवं कोर्ट ने संज्ञान नहीं लिया और अभियुक्त ने जमानत की मांग नहीं की तो अदालत द्वारा जारी रिमांड आदेश अवैध नहीं होगा। अभियुक्त की निरूद्धि अवैध नहीं होगी। ऐसे में ऐसी निरूद्धि के खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट को धारा 309 में रिमांड आदेश देने का अधिकार नहीं है और चार्जशीट के कारण अभियुक्त डिफ़ाल्ट जमानत पाने का हकदार नहीं है। धारा 309 का उल्लेख मात्र से रिमांड आदेश अवैध नहीं माना जायेगा। इसलिए याचियों को रिमांड पर भेजने का आदेश रद नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी है।

यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति वी के सिंह की खंडपीठ ने मेसर्स फ्यूजन कार्पोरेट सोल्यूशन प्रा.लि की एमडी मोनिका धवन व दो अन्य कम्पनी अध्यक्ष व डायरेक्टर की याचिका पर दिया है।

सीबीआई का तर्क था कि मामले में चार्जशीट पेश की गई है किंतु विवेचना पूरी नहीं हुई है, वह अभी जारी है। दूसरे रिमांड आदेश धारा 167(2) के तहत दिया जाता है। इस धारा में मजिस्ट्रेट को रिमांड देने कि शक्ति नहीं है। धारा 309 का आदेश में उल्लेख करने मात्र से रिमांड आदेश अवैध नहीं होगा।

कोर्ट ने माना कि कानून के तहत धारा 309 के तहत रिमांड नहीं दे सकता,यदि चार्जशीट पर कोर्ट ने संज्ञान न लिया हो। संज्ञान लेने के बाद ही इस धारा का इस्तेमाल किया जा सकता है। कानून के अनुसार अपराध की प्रकृति के अनुसार 60 या 90 दिन से अधिक रिमांड नहीं दी जा सकती। यदि विवेचना जारी है तो कोर्ट अवधि बीतने के बाद जमानत पर रिहा कर देगी।

मालूम हो कि गाजियाबाद में सीबीआई के एसपी सुमन कुमार ने षड्यंत्र के आरोप में याचियों के खिलाफ एनसीबी थाना नई दिल्ली में एफआईआर दर्ज कराई। आरोपितों को गिरफ्तार कर सीबीआई विशेष अदालत से रिमांड लेकर जेल भेज दिया गया। चार्जशीट भी दाखिल की गई। संज्ञान पर बहस हुई किंतु ब्राडकास्ट इंजीनियरिंग कंसल्टेंट इंडिया लिमिटेड कंपनी के महाप्रबंधक रमित लाला के लिए सरकार की अनुमति न होने से चार्जशीट पर संज्ञान नहीं लिया जा सका। याची ने इन्हें पक्षकार से हटा भी लिया।

मोनिका धवन व शेष अन्य की सुनवाई हुई। विशेष अदालत ने याचियों को रिमांड पर भेज दिया। जिसकी वैधता को चुनौती दी गई। याची का कहना था कि धारा 309 में विशेष अदालत को रिमांड आदेश देने का अधिकार नहीं है। इसलिए याचियों की जेल में निरूद्धि अवैध है। उन्हें तत्काल रिहा किया जाए।

कोर्ट ने कहा कि याचियों ने जमानत की मांग नहीं की, अदालत ने चार्जशीट पर संज्ञान नहीं लिया। विवेचना जारी है। डिफाल्ट जमानत नहीं मिल सकती ऐसे में रिमांड पर भेजना गलत नहीं है। केवल धारा 309 का उल्लेख करने से रिमांड आदेश अवैध नहीं होगा। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।