विभागीय जांच कार्यवाही में नैसर्गिक न्याय प्रक्रिया के उल्लंघन पर दंडित करने का आदेश रद्द

कोर्ट ने कहा सेवानिवृत्ति के 13 साल बाद फिर से जांच कराना औचित्यहीन

विभागीय जांच कार्यवाही में नैसर्गिक न्याय प्रक्रिया के उल्लंघन पर दंडित करने का आदेश रद्द

प्रयागराज, 30 जुलाई। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि घटना के 18 साल बाद हुई जांच कार्यवाही में नैसर्गिक न्याय का पालन न करने व कर्मचारी के सेवानिवृत्त हुए 13 साल बीत जाने के कारण नये सिरे से जांच कराने का कोई औचित्य नहीं है।



कोर्ट ने विभागीय जांच में बिना सफाई का मौका दिए दंडित करने के आदेश को रद्द कर दिया है और कहा है कि याची सेवानिवृत्ति परिलाभों को पाने का हकदार है। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने सूर्यपाल कश्यप की चाचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।



याची का कहना था कि वह फर्रुखाबाद जिला अदालत में क्लर्क पद पर कार्यरत था। 1988 में नरेन्द्र कुमार बनाम शोभा कटियार केस की फाइल गायब हो गई। जिसकी शिकायत की गई तो जिला जज ने प्रारम्भिक जांच सिविल जज सीनियर डिवीजन से कराई। प्रथमदृष्टया दोषी पाए जाने पर नियमित जांच बैठाई गई। 27 फरवरी 2007 को चार्जशीट दी गई और दो दिन में 2 मार्च तक जवाब देने को कहा गया। याची की मांग पर 23 मार्च तक का समय दिया गया। कुछ दिन और मांगा तो अर्जी निरस्त कर दी गई। दूसरे दिन जांच रिपोर्ट पेश की गयी। याची को दोषी करार देते हुए रैंक में सबसे नीचे वेतनमान पर करने का दंड दिया गया।



अपील भी प्रशासनिक न्यायमूर्ति ने खारिज कर दी तो यह याचिका दायर की गई। याची अधिवक्ता का कहना था कि उसे सफाई देने व सुनवाई का अवसर व गवाहों की प्रतिपरीक्षा करने का मौका नहीं दिया गया और न ही मौखिक सुनवाई की गई। उसकी 30 साल की सेवा बेदाग है। फाइल डिस्पैच रजिस्टर में चढ़ी है। फाइल भेजी गई है। इस पर विचार नहीं किया गया। कोर्ट ने दंड आदेश को नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत करार देते हुए रद्द कर दिया।