ढाई साल की कठिन ट्रेनिंग के बाद वायुसेना को मिले 127 'गरुड़ कमांडो'

वायुसेना के उच्चाधिकारियों की सुरक्षा का दायित्व गरुड़ कमांडो फोर्स पर

ढाई साल की कठिन ट्रेनिंग के बाद वायुसेना को मिले 127 'गरुड़ कमांडो'

नई दिल्ली, 13 फरवरी । भारत के सबसे खूंखार माने जाने वाले 127 'गरुड़ कमांडो' शनिवार को मरून बेरेट सेरेमोनियल परेड के बाद भारतीय वायुसेना को मिल गए। एयरफोर्स के विशेष बल 'गरुड़ कमांडो फोर्स' का प्रशिक्षण पूरा होने पर शनिवार को चांदीनगर के गरुड़ रेजिमेंटल ट्रेनिंग सेंटर (जीआरटीसी) में पासिंग आउट परेड हुई जिसकी सलामी पश्चिमी वायु कमान के वरिष्ठ अधिकारी एयर वाइस मार्शल पीएस करकरे ने ली। वायुसेना के उच्चाधिकारियों की सुरक्षा का दायित्व भी गरुड़ कमांडो फोर्स पर ही है। इसके अलावा गरुड़ कमांडोज को कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में भी तैनात किया गया है।

जीआरटीसी के कमांडेंट विंग कमांडर त्रिलोक शर्मा ने मुख्य अतिथि करकरे का स्वागत किया और विभिन्न प्रशिक्षण पहलुओं पर संक्षिप्त जानकारी दी। मुख्य अतिथि ने गरुड़ रेजिमेंटल ट्रेनिंग सेंटर से ढाई साल की कठिन ट्रेनिंग के बाद सफलतापूर्वक पास होने पर गरुड़ सैनिकों को बधाई दी। युवा सैनिकों को संबोधित करते हुए उन्होंने बदलते सुरक्षा परिदृश्य के साथ तालमेल रखने के लिए विशेष बलों के कौशल के प्रशिक्षण और सम्मान के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने सफल गरुड़ प्रशिक्षुओं को मरून बेरेट, गरुड़ प्रवीणता बैज और विशेष बल टैब और मेधावी उत्तीर्ण प्रशिक्षुओं को ट्राफियां प्रदान कीं। एलएसी सूर्यवंशी शिवचरण अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ ऑल राउंडर ट्रॉफी प्रदान की गई।

खतरनाक हथियारों से लैस भारतीय वायुसेना के ये कमांडो दुश्मन को खत्म करने के लिए जाने जाते हैं। इनकी ट्रेनिंग ऐसी होती है कि ये बिना कुछ खाए हफ्ते तक संघर्ष कर सकते हैं। पासिंग आउट समारोह के दौरान 'गरुड़ सेना' ने कॉम्बैट फायरिंग, होस्टेज रेस्क्यू, फायरिंग ड्रिल, असॉल्ट एक्सप्लोसिव्स, बाधा क्रॉसिंग ड्रिल, वॉल क्लाइम्बिंग, स्लाइथरिंग, रैपलिंग और मिलिट्री मार्शल आर्ट्स जैसे विभिन्न कौशल का प्रदर्शन किया। कमांडो ट्रेनिंग में इन्हें उफनती नदियों और आग से गुजरना, बिना सहारे पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है। भारी बोझ के साथ कई किलोमीटर की दौड़ और घने जंगलों में रात गुजारनी पड़ती है।

गरुड़ कमांडो फोर्स वायुसेना के सभी बेसों के अलावा वायुसेना के दूसरे महत्वपूर्ण ऑफिसों की भी सुरक्षा करती है। वायुसेना के उच्चाधिकारियों की सुरक्षा का दायित्व भी गरुड़ कमांडो फोर्स पर ही है। इसके अलावा गरुड़ कमांडोज को कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में भी तैनात किया गया है। जम्मू-कश्मीर एयर बेस पर 2001 में आतंकी हमले के बाद 2003 में गरुड़ कमांडो फोर्स बनाने का फैसला लिया गया था, लेकिन 6 फरवरी, 2004 को इन्हें भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया। गरुड़ कमांडो को 2019 से जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र बल विशेष अभियान प्रभाग में भी तैनात करना शुरू किया गया है।

भारत और चीन के बीच 2020 में लद्दाख में शुरू हुए तनाव के बाद गरुड़ कमांडोज को लद्दाख में रणनीतिक महत्व की चोटियों पर तैनात किया गया था। उनकी जिम्मेदारी चीनी हवाई हमलों से सुरक्षा प्रदान करना है। गरुड़ कमांडो कॉर्पोरल गुरसेवक सिंह 2016 में पठानकोट हमले के दौरान शहीद हुए थे और उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था। 18 नवंबर, 2017 को कश्मीर के बांदीपोरा में आतंकवादियों को मुठभेड़ में मारने वाले गरुड़ कमांडो कॉर्पोरल जेपी निराला को मरणोपरांत शांति काल में वीरता का सर्वोच्च पुरस्कार अशोक चक्र प्रदान किया गया है।