जिंदगी चलाचल-चलाचल जिंदगी के सफर में
जिंदगी घिरी,शैलाभों और चट्टानों से|
ऐ जिंदगी फिर डरना क्या,आँधियों और तूफानों से||
विचार शून्य हो,भाव भक्ति का हो|
तो भगवान् हम सफर है,भक्त के सफर में||
चलाचल-चलाचल जिंदगी के सफर में,
हम सफर है तो सफर से क्या डरना||
खंजर की क्या मजाल कि तेरे अरमानो को कुचल दे|.
अरमान ही क्या करे कि तू खुद खंजर बन बैठा|
चलाचल- चलाचल जिंदगी के सफर में,
हम सफर है तो सफर से क्या डरना||
ध्यान लगा कर के तो देख,तब तू नहीं|
तेरे दर पे,भगवान् होंगे||
कर कुछ ऐसा कि भगवान् तेरे दर पे हो हमेशा|
भाव भक्ति का कर,ध्यान प्रभु का लगा|
कट जाएगा सफर,हमसफ़र के सहारे||
चलाचल- चलाचल जिंदगी के सफर में,
हम सफर है तो सफर से क्या डरना||
लेखक
डॉ. शंकर सुवन सिंह
वरिष्ठ स्तम्भकार,विचारक एवं कवि
असिस्टेंट प्रोफेसर
शुएट्स,नैनी,प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
9369442448(whatsapp)