जिंदगी चलाचल-चलाचल जिंदगी के सफर में

जिंदगी चलाचल-चलाचल जिंदगी के सफर में

जिंदगी घिरी,शैलाभों और चट्टानों से

ऐ जिंदगी फिर डरना क्या,आँधियों और तूफानों  से|| 

विचार शून्य हो,भाव भक्ति का हो|

तो भगवान् हम सफर है,भक्त के सफर में||  

चलाचल-चलाचल जिंदगी के सफर में

हम सफर है तो सफर से क्या डरना|| 

खंजर की क्या मजाल कि तेरे अरमानो को कुचल दे|.

अरमान ही क्या करे कि तू खुद खंजर बन बैठा

चलाचल- चलाचल जिंदगी के सफर में

हम सफर है तो सफर से क्या डरना||

ध्यान लगा कर के तो देख,तब तू नहीं|

तेरे दर पे,भगवान् होंगे||

कर कुछ ऐसा कि भगवान् तेरे दर पे हो हमेशा|

भाव भक्ति का कर,ध्यान प्रभु का लगा|

कट जाएगा सफर,हमसफ़र के सहारे||

चलाचल- चलाचल जिंदगी के सफर में

हम सफर है तो सफर से क्या डरना||

लेखक

डॉ. शंकर सुवन सिंह

वरिष्ठ स्तम्भकार,विचारक एवं कवि

असिस्टेंट प्रोफेसर

शुएट्स,नैनी,प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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