बढ़ती उम्र के साथ आर्थराइटिस का खतरा बढ़ता है, समस्या की समय से पहचान बेहद जरूरी

नियमित व्यायाम और संतुलित आहार लेकर जीवनशैली में बदलाव लाना जरूरी

बढ़ती उम्र के साथ आर्थराइटिस का खतरा बढ़ता है, समस्या की समय से पहचान बेहद जरूरी

वाराणसी, 11 अक्टूबर । आर्थराइटिस के खतरे और इसके पहचान के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 12 अक्टूबर को 'वर्ल्ड आर्थराइटिस डे' मनाया जाता है। यह एक वैश्विक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम है, जो मस्क्यूलोस्केलेटम रोगों के बारे में जागरूकता पैदा करने और लोगों को लक्षणों और निवारक उपायों के बारे में शिक्षित करने के लिए मनाया जाता है। स्वास्थ एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से संचालित जिरियाट्रिक चिकित्सा विभाग, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू में संचालित बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के नोडल अधिकारी प्रो. अनूप सिंह बताते है कि बढ़ती उम्र के साथ आर्थराइटिस का खतरा बढ़ता है। 60 वर्ष की अधिक आयु के लोगों में यह ज्यादा देखा जाता है।

उन्होंने बताया कि बुजुर्गों में गठिया की समस्या बहुत आम है और लगभग 50 से 70 प्रतिशत मरीज किसी ना किसी प्रकार के मस्कुलोस्केलेटल रोग से पीड़ित है। उन्होंने बताया कि आर्थराइटिस या गठिया से पीड़ित लोग जोड़ो में भीषण दर्द से जूझते हैं। बिगड़ते जोड़ों और आपस में रगड़ खाती हडि्डयों के कारण दर्द होता है। आर्थराइटिस मरीज के जोड़ों की हडि्डयों के बीच के कार्टिलेज को खत्म करने लगता है। उम्र बढ़ने या बूढ़े होने से हमारे शरीर में कई शारीरिक बदलाव आते हैं। ये परिवर्तन आमतौर पर मांसपेशियों की ताकत, हड्डियों के घनत्व, शरीर के समन्वय में कमी का कारण बनते हैं और यहां तक कि जोड़ों को सख्त बना देते हैं, जिससे कभी-कभी गिरने और फ्रैक्चर हो सकते है। इस समस्या की समय से पहचान बेहद जरूरी है।

उन्होंने बताया कि वर्तमान में, अब तक 100 से अधिक विभिन्न प्रकार के आर्थराइटिस का पता लगाया जा चुका है। इसमें कुछ सबसे प्रमुख हैं ऑस्टियोआर्थराइटिस, रुमेटीइड आर्थराइटिस, सेप्टिक आर्थराइटिस, एंकिलॉज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस, जूवेनाइल आइडोपैथिक आर्थराइटिस और गाउट शामिल हैं। उन्होंने बताया कि ऑस्टियो आर्थराइटिस सबसे आम रुमेटोलॉजिकल समस्या है और यह भारत में 22 से 39 फीसद की व्यापकता के साथ सबसे बड़ी ज्वाइंट डिसीज़ है। ऑस्टियोआर्थराइटिस पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा कॉमन है। 65 वर्ष से अधिक आयु की लगभग 45 फीसद महिलाओं में इसके लक्षण होते हैं, जबकि 65 वर्ष से अधिक उम्र की 70 फीसद महिलाओं में OA के रेडियोलॉजिकल प्रमाण दिखाई देते हैं। कई रिपोर्ट्स में यह पाया गया है कि जो लोग अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं, उनमें आर्थराइटिस का खतरा ज्यादा होता है, खासकर घुटनों जैसे वजन वाले जोड़ों में।


आर्थराइटिस का इलाज संभव है, लगभग सभी इन्फ्लेमेट्री आर्थराइटिस ट्रीटेबल हैं



प्रो. अनूप सिंह के अनुसार आर्थराइटिस का इलाज संभव है। लगभग सभी इन्फ्लेमेट्री आर्थराइटिस ट्रीटेबल हैं। इसकी दवाएं पूरी तरह सुरक्षित हैं, मगर रेगुलर फॉलो-अप जरूरी है। फ़िज़ियोथेरेपी गठिया के मरीज़ों के जोड़ो में लचीलापन लाने के लिए बेहद फायदामंद रहता है। इसके शुरुआती लक्षणों को पहचानकर समय से इलाज लिया जाए तो किसी भी स्थायी डिसेबिलिटी से बचा जा सकता है। उन्होंने बताया कि बीएचयू के सर सुंदर लाल चिकित्सालय में मंगलवार को गठिया की ओपीडी होती है। इससे बचने के लिए नियमित व्यायाम और संतुलित आहार लेकर जीवनशैली में बदलाव लाना जरूरी है। उन्होंने लोगों से अपील की कि चूंकि वायु प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय कारक भी गठिया में योगदान करते हैं, इसलिए हमें अपने आसपास के वातावरण को साफ रखना चाहिए।