मार्कंडेय महादेव मंदिर का शिखर भी हुआ स्वर्णिम, दरबार का आभा देख श्रद्धालु हुए निहाल

श्री काशी विश्वनाथ दरबार के समकक्ष है मान्यता

मार्कंडेय महादेव मंदिर का शिखर भी हुआ स्वर्णिम, दरबार का आभा देख श्रद्धालु हुए निहाल

वाराणसी, 02 अगस्त । चौबेपुर कैथी स्थित मार्कंडेय महादेव मंदिर का शिखर पर भी सोने की परत चढ़ गई है। चंदौली के सांसद और केन्द्रीय मंत्री डॉ महेन्द्रनाथ पांडेय ने सावन के तीसरे सोमवार की शाम इसका विधिवत पूजन, रूद्राभिषेक कर अनावरण कर दिया।

मंगलवार को शिखर की आभा भगवान सूर्य की किरणों में दमकती रही। मंदिर के शिखर पर 18 गेज मोटा 2000 किलो तांबे की परत पर सोलर गोल्ड की परत चढ़ा दी गई है। बताया जा रहा है कि शिखर की स्वर्णिम चमक अगले 25 वर्ष से अधिक समय तक बनी रहेगी।


केन्द्रीय मंत्री डॉ महेन्द्रनाथ पांडेय की पहल पर यह कार्य एक वर्ष में कराया गया है। पूरे प्रोजेक्ट पर 50 लाख रुपये से अधिक खर्च आया है। प्रशिक्षित काशी के कारीगरों ने शिखर को स्वर्णमंडित करने का कार्य किया।हस्तशिल्पी सोनू कुमार के नेतृत्व में ताम्रपत्रों पर महीन नक्काशी की गई है। मंदिर के शिखर की शैली को यथावत रखते हुए परत चढ़ाई गई है।

गौरतलब है कि श्री काशी विश्वनाथ (श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग) के दरबार के समकक्ष कैथी स्थित मार्कण्डेय महादेव की मान्यता है। सावन के सोमवार और महाशिवरात्रि पर्व पर मंदिर में शिवभक्तों का रेला उमड़ता है। लाखों लोग महादेव का जलाभिषेक करते हैं। जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मंदिर में पर्व पर हजारों नि:संतान दम्पति संतान की चाह में भी जुटते हैं। मान्यता है कि धाम में 'महाशिवरात्रि' और उसके दूसरे दिन श्रीराम नाम लिखा बेल पत्र अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है।

मार्कण्डेय महादेव मंदिर परिसर गर्ग, पराशर, श्रृंगी आदि ऋषियों की तपोस्थली रही है। कथाओं में भी इसका जिक्र है कि इसी स्थान पर राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ती के लिए श्रृंगी ऋषि ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था, जिसके परिणाम स्वरूप राजा दशरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए थे। इसी स्थान पर राजा रघु ने ग्यारह बार 'हरिवंशपुराण' का परायण किया था। उन्हें उत्तराधिकारी प्राप्त हुआ था। पुत्र कामना के लिए यह स्थल काफ़ी दुर्लभ है।

श्यामू गिरी ने बताया कि पावन स्थान पर 'हरिवंशपुराण' का परायण तथा 'संतान गोपाल मंत्र' का जाप कार्य सिद्धि के लिए विशेष मायने रखता है। पुत्र इच्छा पुर्ति के लिए इससे बढ़ कर सिद्धपीठ स्थान कोई दूसरा नहीं है। मंदिर में त्रयोदशी (तेरस) पर भी दर्शन पूजन के लिए भीड़ उमड़ती है। श्रद्धालु अकाल मृत्यु से बचने के साथ यहां पुत्र रत्न की कामना व परिजनों के दीर्घायु की कामना को लेकर आते हैं।

मंदिर में इसके लिए महामृत्युंजय पाठ, शिवपुराण, रुद्राभिषेक कराते हैं। मंदिर परिसर में बैठकर सत्यनारायण भगवान की कथा सुनते हैं। काशीराज दिवोदास की बसाई दूसरी काशी कैथी ही है।


मंदिर के पुजारी श्यामू गिरी बताते हैं कि मंदिर का नामकरण मार्कण्डेय ऋषि के नाम पर हुआ है। कथा का उल्लेखकर उन्होंने बताया कि मार्कण्डेय ऋषि जब पैदा हुए थे तो उन्हें आयु दोष था। उनके पिता ऋषि मृकण्ड को ज्योतिषियों ने यह जानकारी दी। ज्योतिषियों ने ऋषि को बताया कि इस बालक की आयु मात्र 14 वर्ष है। यह सुन माता-पिता सदमें आ गए। संतों, मुनियों की सलाह पर बालक मार्कण्डेय के माता-पिता गंगा गोमती संगम तट पर बालू से शिव विग्रह बनाकर शिव की अर्चना करने लगे। दम्पति महादेव की घोर उपासना में लीन हो गये। इसी क्रम में बालक मार्कण्डेय जब 14 वर्ष के हुए तो यमराज उन्हें लेने आ गए। बालक मार्कण्डेय भी उस वक्त भगवान शिव की आराधना में लीन थे। उनके प्राण हरने के लिए जैसे ही यमराज आगे बढ़े तभी भगवान शिव प्रकट हो गए। भगवान शिव के साक्षात प्रकट होते ही यमराज को अपना पांव वापस खींचना पड़ा। महादेव ने कहा कि मेरा भक्त सदैव अमर रहेगा, मुझसे पहले उसकी पूजा की जायेगी। तभी से इस जगह पर मार्कण्डेय ऋषि व महादेव की पूजा होने लगी। इस स्थान को मार्कण्डेय महादेव मंदिर का नाम मिला।

श्यामू गिरी बताते हैं कि मंदिर की स्थापना मारकंडेय ऋषि ने युगों पहले किया था। खास बात यह है कि केन्द्र और प्रदेश की सरकार धाम के विकास के लिए लगातार कार्य कर रही है। धाम को हरिद्वार की तरह स्वरूप देने का एक प्रयास भी चल रहा है। केन्द्रीय मंत्री डा.महेन्द्रनाथ पांडेय लगातार धाम स्थल के सौन्दर्यीकरण के लिए कार्य कर रहे हैं। मंदिर के स्वर्णिम शिखर का अनावरण कर केंद्रीय मंत्री डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने कहा कि यह पवित्र तीर्थ स्थल आने वाले समय में भारतीय पर्यटन के नक्शे पर स्थापित होने जा रहा है। यह स्थल गंगा पर्यटन का बहुत बड़ा केंद्र बन रहा है।