श्रावण पूर्णिमा पर बाबा विश्वनाथ की निकली रजत पालकी यात्रा, तिरंगामय झूला श्रृंगार

श्रावण पूर्णिमा पर बाबा विश्वनाथ की निकली रजत पालकी यात्रा, तिरंगामय झूला श्रृंगार

श्रावण पूर्णिमा पर बाबा विश्वनाथ की निकली रजत पालकी यात्रा, तिरंगामय झूला श्रृंगार

वाराणसी, 11 अगस्त। श्रावण पूर्णिमा पर गुरुवार शाम टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास से श्री काशी विश्वनाथ मंदिर तक रजत पालकी पर सवार बाबा के विग्रह की तिरंगामय झांकी निकाली गई। रजत पालकी पर सवार बाबा के तिरंगामय झूला श्रृंगार को देख श्रद्धालु निहाल हो गये। पालकी पर सवार विग्रह को मंदिर के गर्भगृह तक लाया गया। इसके पहले सायंकाल टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास से बाबा के रजत विग्रह को तामझाम पर विराजमान कराया गया। आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में बाबा की पालकी को भी तिरंगामय कर दिया गया था। हर-हर महादेव के घोष के साथ महंत आवास से पालकी काशी विश्वनाथ के मंदिर की ओर बढ़ी तो सबसे आगे संजीव रत्न मिश्र बाबा का दंड लेकर चले। उनके साथ पं. वाचस्पति तिवारी रजत मशाल लेकर चलते रहे।


विश्वनाथ मंदिर के इतिहास में यह पहला मौका था जब तामझाम पर सवार बाबा महंत आवास से मंदिर तक भक्तों को दर्शन देते हुए गए। ऐसा सिर्फ आजादी के अमृत महोत्सव के विशिष्ट आयोजन को देखते हुए किया गया। परंपरानुसार प्रतिवर्ष बाबा के रजत विग्रह को तामझाम पर बैठाने के बाद उन्हें श्वेत वस्त्र से ढंक कर ले जाता जाता था। बाबा गर्भगृह में सपरिवार विराजमान होने के बाद ही भक्तों को दर्शन देते थे। अगले वर्ष से पुन: बाबा का विग्रह परंपरानुसार श्वेत वस्त्र से ढंक कर ले जाया जाएगा। मंदिर पहुंचने के बाद परंपरा के अनुसार सप्तऋषि आरती के बाद बाबा विश्वनाथ को सपरिवार झूला सहित गर्भगृह में विराजमान कराया गया। विश्वनाथ मंदिर में पंचबदन रजत प्रतिमा के पहुंचने पर महंत डा. कुलपति तिवारी ने दीक्षित मंत्र से बाबा का पूजन किया। बाबा के तामझाम की साज सज्जा विश्वनाथ मंदिर के रोहित माली ने की। प्राचीन परंपरा के अनुसार रज विग्रह को गर्भगृह के ऊपर बनाए गए झूले पर विराजमान कराया गया। बाबा विश्वनाथ ने झूले पर सपरिवार विराजमान होकर भक्तों को दर्शन दिए। विश्वनाथ, माता पार्वती, कार्तिकेय और गणेश की रजत प्रतिमाएं शाही झूले पर महंत आवास से मंदिर प्रांगण में लाई गईं। वहां विग्रहों का पूजन हुआ। शिव का सरिवार दर्शन पाकर भाक्तगण निहाल होते रहे। मंदिर का पट बंद होने के समय रजत प्रतिमाओं को पुन: महंत आवास ले जाया गया।