शब-ए-बरात में इबादत कर मांगी गई जहन्नुम से निजात की दुआएं

कब्रिस्तानों में पहुंच लोगों ने पढ़ी फातिहा, गुनाहों से तौबा कर मांगी मगफिरत की दुआएं

शब-ए-बरात में इबादत कर मांगी गई जहन्नुम से निजात की दुआएं

शब-ए- बरात का पर्व बड़े ही अकीदत व एहतिराम के साथ मनाया गया। शब-ए-बरात पर्व पर जागी जाने वाली रात की अहमियत और फजीलतों को जानते हुए लोगों ने रात भर फालतू बातों से दूर रहकर अल्लाह की इबादत की और अपने मरहूमीन व औलिया अल्लाह की दरगाह पर जाकर फातिहा पढ़ मरहूमीन के लिए मगफिरत की दुआएं की।

मुस्लिम समुदाय में मनाया जाने वाला ये पर्व बहुत खास पर्व माना जाता है। शब का मतलब रात और बरात का मतलब निजात है यानी ये रात गुनाहों से निजात वाली रात है, जिसमें अल्लाह तआला कबीले बनू कल्ब की भेड़ और बकरियों के बालों के बराबर अपने बंदों की मगफिरत फरमाता है। वहीं इस रात से पहले असर और मगरिब की नमाजों दरमियान मरहूमीन की रूहें अपने अपने घरों में आती हैं और घर वालों से सदका और खैरात की आस लगाती हैं। मगरिब की नमाज के बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपने अजीजों और औलिया अल्लाह की कब्रों पर जाकर बहुत सुकून और अमन के साथ फातिहा पढ़ी और अपने मरहूमीन के लिए मगफिरत की दुआएं कर इस अजीम रात को फालतू और दुनियावी बातों से परहेज किया तथा रात भर अल्लाह की इबादत कर अपने गुनाहों से सच्चे दिल से तौबा की। इस खास रात में अल्लाह पहले आसमान पर जलवागर होकर अपने बन्दों से फरमाता है, कौन है जो मुझसे अपने गुनाहों, हाजतों और मगफिरत की तलब करे और में उसकी हर दुआ को कबूल करूं।

इस पर्व को लेकर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक दूसरे से मांफी मांगी और एक दूसरे की गलतियों व नाराजगियो को दूर किया ताकि उनके दरमियान कोई गलत फहमी बाकी न रह जाए। इबादतों का सिलसिला मगरिब की नमाज के बाद से शुरू हुआ और रात भर जारी रहते हुए सुबह फजर की नमाज के वक्त अमन चैन व मुल्क की सलामती की दुआओं के साथ समाप्त हुआ।