शब-ए-बरात पर मुस्लिम समाज के लोगों ने अपने पूर्वजों की कब्र पर पढ़ा फातिहा, कुरआन-ए-पाक की तिलावत

अपनी और अपने पूर्वजों के गुनाहों की अल्लाह से माफी मांगी, पूरी रात करेंगे इबादत

शब-ए-बरात पर मुस्लिम समाज के लोगों ने अपने पूर्वजों की कब्र पर पढ़ा फातिहा, कुरआन-ए-पाक की तिलावत

वाराणसी, 07 मार्च  । धर्म नगरी काशी में मंगलवार शाम शब-ए-बरात पर मुस्लिम समाज के लोगों ने अपने पूर्वजों की कब्रगाह पर मोमबत्ती और अगरबत्ती जलाकर फातिहा पढ़ी। साथ ही कुरआन-ए-पाक की तिलावत और दुआएं पढ़ी गईं।
इसके बाद मस्जिदों और घरों में पूरी रात इबादत की। लोगों ने इबादत की रात में परवरदिगार से अपने और पूर्वजों के गुनाहों की माफी मांगी। इसके पहले शाम को मगरिब की नमाज के बाद हलवे पर पुरखों के नाम से फातिहा भी दिलवाई। शब-ए-बरात पर अपरान्ह बाद से ही शहर और ग्रामीण अंचल के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों की रौनक देखते बन रही थी। शहर के बेनियाबाग, दालमंडी, रेवड़ी तालाब, मदनपुरा, बजरडीहा, बड़ी बाजार, पीलीकोठी, सरैया आदि इलाकों में एक दिन पहले से ही मस्जिदें, दरगाह और रौजे सज गये थे।

शाम की नमाज के बाद लोग घरों से निकले और अपने अपने पूर्वजों के लिए कब्रिस्तान पहुंचे और उनकी आत्मा की शांति के लिए दुआ की। शहर के प्रमुख कब्रिस्तानों में टकटकपुर, हुकुलगंज, भवनिया कब्रिस्तान गौरीगंज, बहादुर शहीद कब्रिस्तान रविन्द्रपुरी, बजरडीहा सोनबरसा कब्रिस्तान, जक्खा कब्रिस्तान, सोनपटिया कब्रिस्तान, बेनियाबाग स्थित रहीमशाह, दरगाहे फातमान, चौकाघाट, रेवड़ीतालाब, सरैयां, जलालीपुरा, राजघाट समेत बड़ी बाजार, पीलीकोठी, पठानीटोला, पिपलानी कटरा, बादशाहबाग, फुलवरिया, लोहता, बड़ागांव, रामनगर आदि इलाकों के कब्रिस्तान और दरगाहों में देर शाम तक लोग फातिहा पढ़ने और कब्रों पर समा जलाने के लिए जुटे रहे।

पत्रकार शमशाद अहमद ने बताया कि इस्लामिक कैलेंडर के शाबान माह की 14 तारीख को शब-ए-बरात मनाया जाता है। शब-ए-बरात का अर्थ छुटकारे की रात से है। इस रात की हमारे धर्म में बहुत अहमियत है। शब यानि रात, यह रात इबादत की रात है और अपने गुनाहों से माफी मांगी जाती है। बहुत से लोग इस दिन रोजा भी रखते हैं। इस दिन अपने पूर्वजों के लिए दुआ की जाती है जो दुनिया से विदा हो चुके हैं। उनके नाम पर गरीबों को खाना खिलाया जाता है। मस्जिदों में नफिल की नमाज अदा की जाती है।