नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयन्ती मनी, विशाल प्रतिमा की महाआरती
लमही सुभाष मन्दिर में प्रतिमा पर 23 किलो का माला अर्पित,126 बच्चों ने दी सलामी
वाराणसी, 23 जनवरी। आजादी के महानायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 126वीं जयंती सोमवार को उल्लासपूर्ण माहौल में मनाई गई। विशाल भारत संस्थान की ओर से आयोजित सुभाष महोत्सव के पांचवे दिन विश्व के पहले सुभाष मन्दिर (लमही) में विशेष आयोजन हुआ।
समारोह में बतौर मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य इन्द्रेश कुमार, पातालपुरी मठ के पीठाधीश्वर महंत बालक दास एवं मन्दिर की पुजारी खुशी रमन भारतवंशी ने संयुक्त रूप से राष्ट्रदेवता सुभाष को 23 किलो का माला अर्पित किया। पांच वैदिक ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चारण कर 23 नारियल से अभिषेक किया। 126 महिलाओं ने महाआरती की। बाल आजाद हिन्द बटालियन के 126 सैनिकों ने दक्षिता भारतवंशी के नेतृत्व में नेताजी की प्रतिमा को सलामी दी। चकिया इंटर कॉलेज के एनसीसी के कैडेट ने बंदूकों के साथ सलामी देकर सुभाषवादियों में जोश भर दिया।
इस अवसर पर इंद्रेश कुमार ने कहा कि कटक में जन्मे सुभाष चंद्र बोस ने देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। तभी तो काशी में राष्ट्रदेवता के रूप में पूजे जा रहे हैं। दुनिया के किसी भी महापुरुष को यह रूहानी रुतबा हासिल नहीं है जो सुभाष को है। सुभाष की उपेक्षा सरकारों ने भले ही किया हो, लेकिन अखण्ड भारत में रहने वालों के दिलों में सुभाष हमेशा पूजनीय रहे हैं। अखंड भारत के निर्माण में सुभाष का व्यक्तित्व आदरयुक्त और विवाद रहित है। इनके विचारों और आदर्शों पर चलकर अखण्ड भारत का निर्माण होगा और भारत भूमि में सुख चैन की बरखा बरसेगी।
महंत बालक दास ने कहा कि जो देश अपने राष्ट्र नायकों के इतिहास को विस्मृत करता है, उसका सम्मान नहीं करता उस राष्ट्र को कोई सम्मान नहीं देता। अब सुभाष बाबू को सम्मान मिल रहा है तो दुश्मन भी पीछे हट रहे हैं और दुनियां भी भारत को पूछ रही है।
कार्यक्रम में संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं सुभाष मन्दिर के संस्थापक डॉ० राजीव श्रीवास्तव ने कहा कि दुनियां यह देखती है कि भारत किनके आदर्शों पर चल रहा है। नेताजी सुभाष का नाम ही देश के पराक्रम और एकता का पर्याय है। कार्यक्रम में नट, मुसहर, बाँसफोर बस्ती के साथ सभी को भोजन कराया गया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि अपर पुलिस महानिदेशक वाराणसी जोन राम कुमार रहे। इनके उत्कृष्ठ सेवाओं के लिए समारोह के इन्द्रेश कुमार ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा देकर सम्मानित किया।
काशी में है नेताजी सुभाष का इकलौता मंदिर, जहां राष्ट्रदेवता के रूप में पूजे जाते हैं
मंदिरों के शहर काशी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मंदिर लमही में है। विशाल भारत संस्थान द्वारा स्थापित मंदिर में प्रतिमा के समक्ष सुबह शाम आरती और पूजा होती है, सलामी दी जाती है और आजाद हिन्द सरकार का राष्ट्रगान गाया जाता है। आरती के बाद बाल आजाद हिन्द बटालियन सलामी देती है तब पट बन्द हो जाता है। सुभाष मन्दिर में किसी धर्म जाति के नाम पर कोई भेद नहीं है। मन्दिर की पुजारी दलित बेटी है जो आने वाले दर्शनार्थियों का पूजा पाठ कराती है और प्रसाद भी वितरित करती है।