वीर विनायक दामोदर सावरकर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

वीर सावरकर शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत : डॉ उदय प्रताप सिंह

वीर विनायक दामोदर सावरकर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

प्रयागराज, 28 मई । आजादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत महान क्रान्तिकारी, चिंतक, लेखक सावरकर की जयंती पर हिन्दुस्तानी एकेडेमी के अध्यक्ष डॉ. उदय प्रताप सिंह ने कहा कि वीर सावरकर पर 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में उनकी क्या भूमिका है, इस पर एक किताब आनी चाहिए। वीर सावरकर शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत थे। उनकी लेखनी बहुत ही विचारोत्तेजक थी। स्वाधीनता के प्रथम संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में शनिवार को एकेडेमी परिसर में ‘स्वाधीनता का प्रथम संग्राम और वीर विनायक दामोदर सावरकर’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में उन्होंने आगे कहा कि सावरकर जो किसी से नहीं डरते थे, आजादी के बाद उन्हें मुक्त कर देना चाहिए पर उन्हें मुक्त नहीं किया गया। जो राष्ट्र के प्रति सच्ची भक्ति रखता है चाहे वह किसी भी धर्म का हो वह राष्ट्रवादी है। वीर सावरकर ऐसा मानते थे। उन्हें प्राथमिक रूप से शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि उन्हें सभी जान सके।

प्रो.सर्वेश पाण्डेय ने कहा यदि सावरकर ने 1857 की क्रांति के गाथागान से 1909 से 1943 के बीच हस्तक्षेप नहीं किया होता तो बाद के स्वतंत्रता आंदोलन इतिहास में मामूली विद्रोही के रूप में दर्ज होते। सावरकर कहते हैं कि हमारे देश में समाज के माथे पर एक कलंक है अस्पृश्यता। हिंदू समाज के करोड़ों हिंदू बंधु इससे अभिशप्त हैं जब तक हम ऐसे बनाए हुए हैं तब तक हमारे शत्रु हमें परस्पर लड़वाकर विभाजित करके सफल होते रहेंगे। इस घातक बुराई को हमें त्यागना ही होगा।

डॉ.मुरार त्रिपाठी ने कहा कि वीर सावरकर ने स्वयं घोर यातनाएं सहकर स्वतंत्रता संघर्ष की लौ को मशाल बना दिया। सावरकर ने चार खंडों में पुस्तक लिखकर उसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सिद्ध किया। पूरी दुनिया उनके इस तर्क को मानने के लिए आज मजबूर है। उनके संघर्ष उनकी राष्ट्रीय सोच तथा हिंदुत्व को शीर्ष स्थान पर प्रतिष्ठित करने के लिए देश उन्हें हमेशा याद करेगा। उनकी वीरता से आने वाली पीढ़ियां अवश्य प्रेरणा ग्रहण करती रहेगी।

अखिलेश मिश्र ने कहा कि वीर सावरकर को एक स्वतंत्रता सेनानी की जगह नकारात्मक घोषित कर दिया गया। आज वह समय है जब हम उनका मूल्यांकन कर रहे हैं। हम इतने विखंडित हैं कि हम भारतवर्ष के न होकर प्रदेश विशेष के हो जाते हैं। बंगाली अपने को बंगाल का कहता है, मराठी महाराष्ट्र का, वह भारतवर्ष का क्यों नहीं कहता। वीर सावरकर हिंदुत्व की परिभाषा देते हैं कि हम जिस राष्ट्र में पैदा हुए हैं, वहीं के हैं। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. विनम्र सेन सिंह ने कहा कि वीर सावरकर स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित ऐसे एक मात्र क्रांतिवीर हैं जिन्होंने ग़ुलाम भारत में भी जेल की यातनाएं सहीं और आजाद भारत में भी उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल में डाल दिया गया। दशकों तक जिसने काला पानी की सजा झेली हम उनके साथ क्या व्यवहार कर रहे हैं, यह चिंतनीय है।







इस अवसर पर हिन्दुस्तानी त्रैमासिक पत्रिका के नवीनतम अंक का विमोचन मंचस्थ अतिथियों द्वारा किया गया। अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित विद्धानों में प्रो. राम किशोर शर्मा, डॉ. सभापति मिश्र, डॉ. मानेन्द्र सिंह, डॉ. संजय कुमार सिंह, प्रदीप तिवारी, डॉ. शान्ति चौधरी, मुकुल मतवाला, डॉ. वीरेन्द्र कुमार तिवारी, रणंजय सिंह सहित शोधार्थी एवं शहर के विद्वान आदि उपस्थित रहे।