अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मुंशी प्रेमचन्द्र ने लेखनी को दी थी धार
अंग्रेजों के खिलाफ छपवाई थी सोजे वतन की पुस्तकें, कलेक्टर की धमकी पर फिर दे दिया था नौकरी से इस्तीफा
बुंदेलखण्ड के हमीरपुर जिले में कथा शिल्पी मुंशी प्रेमचन्द्र ब्रिटिश हुकूमत की सेवा में रहते हुये भी साहित्य और कहानियां लिखकर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की थी। जिस पर अंग्रेज कलेक्टर ने उनकी पांच सौ पुस्तकों को फुंकवा दिया था। उत्पीड़न से परेशान होकर मुंशी प्रेमचन्द्र ने नौकरी से इस्तीफा भी दे दिया था।
महान कथा शिल्पी मुंशी प्रेमचन्द्र का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस जिले के लमही गांव में मुंशी अजायब लाल के घर हुआ था। उनके पिता मुंशी अजायब लाल थे, जिन्होंने मुंशी जी का बचपन में धनपतराय नाम रखा था। इन्हें लोग प्यार से नवाब राय कहते थे। इन्होंने गोरखपुर व बनारस में प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण की थी। वर्ष 1902 में इलाहाबाद ट्रेनिंग कालेज में ये भर्ती हुये थे। 1904 में प्रथम श्रेणी में जे.टी.सी.की परीक्षा भी इन्होंने पास की थी। अपनी प्रतिभा के कारण ही ये माडल स्कूल में हेडमास्टर के पद पर नियुक्त हुये थे। 1905 में स्थानांतरण पर ये कानपुर आये थे तब उनका सम्पर्क मुंशी दयानारायण निगम से हुआ था।
लेखक व कवि डा. राकेश ऋषभ ने बताया कि सोजे वतन की पुस्तकों की होली जलाने की घटना ने दुनिया को कहानी सम्राट और विश्व कथा शिल्पी प्रेमचन्द्र के रूप मेें नयी पहचान मिली। उन्हाेंने बताया कि मुंशी जी की साहित्य में आदर्श यथार्थवादी साहित्यिक यात्रा की शुरूआत भी यहीं हमीरपुर से हुयी थी जो जीवन के आखिरी समय तक जारी रही। उन्होंने 1921 में नौकरी से इस्तीफा देने के बाद बनारस मेें सरस्वती प्रेस की स्थापना कर लेखन और प्रकाशन कार्य शुरू किया था। इस महान कथा शिल्पी का 8 अक्टूबर 1936 को निधन भी हो गया था।
अंग्रेजों के शासनकाल में मुंशी बने थे डिप्टी इंस्पेक्टर
वर्ष 1908 में डिप्टी इंस्पेक्टर के पद पर प्रमोशन के बाद मुंशी प्रेमचन्द्र को हमीरपुर जिले के प्राथमिक शिक्षा विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया था। यहां छह साल की नौकरी के दौरान मुंशी प्रेमचन्द्र ने साहित्य और लेखन के क्षेत्र में नये आयाम स्थापित किये थे। रानी सारन्धा, राजा हरदौल, विक्रमादित्य का तेग, जैसी कहानियां इन्होंने ही लिखी थी। उनकी अमर व यादगार कहानियों की श्रंृखला में आत्माराम, स्थानीय विकास खण्ड पनवाड़ी के बेदों गांव के महादेव सुनार से सम्बन्धित थी जिसमें ये कहानी भी एक तोते पर आधारित है।
सोजे वतन पुस्तक लिखकर मुंशी जी ने की थी बगावत
प्रवास के दौरान मुंशी प्रेमचन्द्र ने देशप्रेम, राष्ट्रीय भावनाओं और दासता के खिलाफ आन्दोलन करने के साथ ही परतंत्र भारत की वेदना को भी साहित्य और कहानियों में प्रमुखता से उजागर किया। अंग्रेज हुकूमत की सेवा में रहते हुये साम्राज्यवादी शासकों के खिलाफ इन्होंने अपनी लेखनी को तलवार का रूप देकर तीखे कटाक्ष किये थे। डिप्टी इंस्पेक्टर की नौकरी करते हुये सोजे वतन नामक कहानी का संग्रह प्रकाशित कराकर ये अंग्रेज सल्तनत के निशाने पर आ गये थे। सोजे वतन का अर्थ है देश का दर्द। इस संग्रह में पांच कहानियां थी।
आम जनता के सामने ही जलवाई गई थी पांच सौ पुस्तकेें
हमीरपुर के तत्कालीन कलेक्टर के फरमान पर मुंशी जी रातोंरात बैलगाड़ी पर सवार होकर कुलपहाड़ तहसील पर कलेक्टर के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गये थे। गुस्से से लाल कलेक्टर ने मुंशी जी को हाथ कटवाने की धमकी देकर कहा कि हुकूमत के खिलाफ बगावत बर्दाश्त नहीं होगी। जाने माने लेखक व कवि डा.राकेश ऋषभ ने बताया कि मुंशी जी इस देश के महान कथा शिल्पी थे। बताया कि कलेक्टर ने मुंशी जी के यहां से सोजे वतन की 500 पुस्तकें जब्त कराकर उन्हें आम जनता के सामने खुलेआम जलवा दिया था।