क्षीरसागर में सोए भगवान विष्णु, संस्कारों पर लगा ब्रेक
क्षीरसागर में सोए भगवान विष्णु, संस्कारों पर लगा ब्रेक
दस जुलाई को हरिशयनी एकादशी के साथ ही सभी देवता विश्राम में चले जाएंगे। इससे चतुर्मास दोष रहने के कारण शादी विवाह सहित तमाम शुभ कार्यों पर रोक लग जाएगा। चार नवंबर को हरिप्रबोधिनी (देवउठान एकादशी) तथा पांच नवंबर को तुलसी विवाह होने के साथ चतुर्मास समाप्त होगा।
ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र गढ़पुरा के संस्थापक पंडित आशुतोष झा ने बताया कि भगवान विष्णु के सोने के बाद पूरे चार महीने शादी, विवाह, मुंडन, जनेऊ जैसे सभी 16 संस्कार कार्य पर रोक लग जाएगा। भगवान विष्णु के देवोत्थान एकादशी पर जागने के बाद फिर से सभी कार्य शुरू होते हैं। आषाढ़ के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन से कार्तिक के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन तक इन चार महीनों को शास्त्रों में चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। नवंबर में देवोत्थान एकादशी के बाद पुनः सभी शुभ कार्य शुरू होंगे। इसके बाद नवंबर में 24, 25, 26, 27 एवं 28 तथा दिसंबर में दो, तीन, चार, सात, आठ, नौ, 13, 14, 15 एवं 16 तारीख को विवाह का शुभ मुहूर्त है।
उन्होंने बताया कि शास्त्र पुराणों के अनुसार माना गया है कि देवशयनी एकादशी के दिन सभी देवता और उनके अधिपति विष्णु सो जाते हैं। देवताओं का शयन काल मानकर इन चार महीनों में विवाह, नया निर्माण या कारोबार आदि बड़ा शुभ कार्य नहीं होता है। इसके बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को क्षीरसागर में सोए भगवान विष्णु जगते हैं। इस अवसर पर तुलसी और शालिग्राम का विवाह पूरे धूमधाम से मंत्रोच्चार के साथ किया जाता है।भगवान विष्णु के जगने के बाद सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं। विद्वतजन एवं वांग्मय के अनुसार इस चतुर्मास का प्रकृति सेे भी सीधा संबंध है। यह सूर्य की स्थिति और ऋतु प्रभाव से सामंजस्य बैठाने का भी संदेश देता है। जगत के आत्मा सूर्यदेव इस दिनों में बादलों में छिपे रहते हैं, इसलिए वर्षा के इस चार महीनों में भगवान विष्णु सो जाते हैं। जब वर्षा काल समाप्त हो जाता है तो जाग उठते हैं और सबको अपने भीतर जागने का संदेश देते हैं। इन महीनों मेंं एक जगह ठहरनेे की मान्यता है। भगवान को साक्षी मानकर धर्म और शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने वाले साधु-संत इन दिनों में एक जगह तुलसी का पौधा लगाकर निवास करते थे। शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज और अध्यात्म की चर्चा होती थी, देवताओं के उठने के बाद वहां से विदा होते समय साधु-संत लगाए गए तुलसी के पौधा का विवाह करवा देते थे।