मिशन शक्ति : उम्र का अंतिम पड़ाव फिर भी पढ़ने की हसरतें अपार

अन्तर्राष्ट्रीय मातृ दिवस (8 मई) पर विशेष ,भुल्लनपुर गांव में समाज सेविका बीना ने बृद्ध महिलाओं में पढ़ने—लिखने की जगाई ललक

मिशन शक्ति : उम्र का अंतिम पड़ाव फिर भी पढ़ने की हसरतें अपार

वाराणसी,07 मई  । रोहनियां भुल्लनपुर गांव की 95 वर्षीया शांति देवी अन्तर राष्ट्रीय मातृ दिवस की प्रतीक है। निरक्षर शान्ति देवी अब डाकघर से पैसा निकालते समय अंगूठा नहीं लगातीं बल्कि हस्ताक्षर करती हैं । दो वर्ष पूर्व बड़ी मेहनत के बाद उन्होंने ककहरा सीखा था। इसके बाद तो उन्हें ऐसी पढ़ने की लगन लगी कि रात-दिन एक कर उन्होंने शब्दों को लिखना और पढ़ना सीखा। कांपते हाथों से वह छोटे-छोटे वाक्य भी लिख लेती हैं। इसी गांव की 70 वर्ष की तपेसरा देवी को भी कभी अंगूठा छाप के रूप में जाना जाता था। लेकिन अब वह भी जरूरी कागजातों पर अपना हस्ताक्षर कर लेती हैं। घर में आई खाद्य सामग्रियों व अन्य सामानों के पैकेट पर छपे नाम को पढ़ लेती हैं। ऐसा संभव हुआ है गांव में बेसिक और प्रौढ़ शिक्षा साथ-साथ देने से। ये कठिन काम किया है इस गांव की रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता बीना सिंह ने।


बीना सिंह बताती हैं कि उनका मायका मिर्जापुर में है। बचपन से ही उनके मन में समाजसेवा की इच्छा थी। वह महिलाओं और बेटियों को पढ़ाना चाहती थीं। ससुराल आने पर ससुर और पति से मिले प्रोत्साहन से उनके सपनों को पंख लग गये। घर की जिम्मेदारियों को संभालने के साथ ही उन्होंने पास-पड़ोस की महिलाओं को घर बुलाकर पढ़ाना शुरू किया। खासकर उन्हें जो निरक्षर थीं। बीना सिंह बताती हैं कि दो वर्ष के भीतर अबतक सिर्फ भूल्लनपुर गांव समेत पड़ोसी गांवों की दो सौ से अधिक महिलाओं को वह साक्षर बना चुकी हैं। बीना बताती हैं कि भुल्लनपुर गांव की रहने वाली शांति देवी, तपेसरा,ललदेई (67), जड़ावती (66), सुगुना (64), लालती देवी (60) जैसे दर्जनों नाम हैं जो अब जरूरी कागजातों पर अपने अंगूठे का निशान नहीं लगातीं बल्कि हस्ताक्षर करती हैं । उन्होंने इस उम्र में कड़ी मेहनत कर अक्षर ज्ञान हासिल कर हस्ताक्षर करना तो सीखा ही थोड़ा-बहुत लिखना पढ़ना भी शुरू कर दिया है। उम्र के आखिरी पड़ाव में भी इन बुजुर्ग महिलाओं में शिक्षा हासिल करने की हसरतें अपार हैं। बीना बताती है कि बुजुर्ग महिलाएं घरेलू काम-काज से फुर्सत मिलते ही लिखने-पढ़ने के अभ्यास में जुट जाती हैं। गांव की जड़ावती देवी बताती हैं कि गांव के अधिकतर पुरुष मेहनत-मजदूरी करते हैं । महिलाओं की शिक्षा पर कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया था। पर अब ऐसा नहीं है। गांव की जड़ावती बताती हैं कि हर शाम वह खुद तो यहां लिखना-पढना सीखती ही हैं ,बहू अनिता को को भी साथ लाती हैं। ताकि वह भी पढ़ना सीख ले। जड़ावती की ही तरह सुगुना भी अपनी बहू फूला देवी के साथ पढ़ाई करती हैं।



-सभी का सपना - हर घर हो साक्षर अपना



भूल्लनपुर गांव में शिक्षा की जो अलख जगी है उससे यहां की सभी महिलाएं काफी उत्साहित हैं। सभी का बस यहीं सपना है कि गांव की हर महिला साक्षर हो जाए ताकि कोई उन्हें अंगूठा छाप न कह सके। इतना ही नहीं, अपने बच्चों की शिक्षा पर भी सभी का पूरा ध्यान है। शिक्षित कर वे उन्हे अपने पर खड़ा कराना चाहती हैं।



बताते चलें कि मई महीने के दूसरे रविवार को भारत में मदर्स डे मनाया जाता है। इस साल मातृ दिवस रविवार 8 मई को मनाया जाएगा। मदर्स डे पहली बार साल 1908 में एना जार्विस द्वारा मनाया गया था, जो वेस्ट वर्जीनिया में अपनी मां के स्मारक पर थीं, जहां अब अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस श्राइन है। इसलिए मदर्स डे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में माताओं के प्रति सम्मान, सत्कार और प्यार व्यक्त करने के लिए मनाया जाने वाला एक अवसर है।