अचल सम्पत्तियों के विवाद सिविल प्रकृति है, घरेलू हिंसा कानून के तहत नहीं दी जा सकती है राहत: हाईकोर्ट
बनारस के राजा विभूति नारायण सिंह की बेटी-बेटे के बीच सम्पत्ति विवाद का मामला
प्रयागराज, 21 मई । हाईकोर्ट ने कहा कि पारिवारिक सम्पत्तियों को लेकर उपजे विवाद में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कोई राहत नहीं दी जा सकती है। ऐसे विवाद को सिविल न्यायालय द्वारा ही निस्तारित किया जा सकता है। आपराधिक न्यायालयों द्वारा इसका निस्तारण नहीं किया जा सकता है। क्योंकि, सम्पत्तियों का विवाद सिविल न्यायालय द्वारा ही तय किया जा सकता है।
कोर्ट ने अपनी इस टिप्पणी के साथ ही बनारस के राजा विभूति नारायण सिंह की बेटी और बेटे के बीच सम्पत्ति विवाद को लेकर दाखिल याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। बनारस के राजा की बेटी महराज कुमारी विष्णु प्रिया की ओर से दाखिल याचिका पर न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की पीठ सुनवाई कर रही थी।
कोर्ट ने कहा कि दाखिल याचिका में घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 26 के तहत अंतरिम राहत की मांग की गई है। जिसमें एक सिविल मामला ट्रायल कोर्ट के समक्ष लम्बित है। इसलिए वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के तहत याची को यह स्वतंत्रता दी जाती है कि वह सिविल न्यायालय में अंतरिम राहत के लिए एक अर्जी दाखिल करेगी। सिविल न्यायालय उस अर्जी पर चार महीने में निर्णय लेगी। हालांकि, कोर्ट ने अपने इस आदेश के साथ ही सम्पत्ति के किसी भी स्थानांतरण पर रोक लगा दी है।
मामले में याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर घरेलू हिंसा अधिनियमों के तहत अंतरिम राहत दिए जाने की मांग की थी, जिसे आपराधिक न्यायालय ने खारिज कर दिया था। याची को सत्र न्यायालय से भी इस पर राहत नहीं मिली तो उसने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याची का कहना था कि प्रतिवादी जो कि रिश्ते में उसका छोटा भाई है, वह विवादित सम्पत्ति बेच रहा है। इस पर रोक लगाई जाए। क्योंकि, इससे उसका हित प्रभावित हो रहा है।
जवाब में प्रतिवादी की ओर से कहा गया कि सक्षम न्यायालय द्वारा घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पहले ही अंतरिम आदेश पारित किया जा चुका है। क्योंकि, सम्पत्ति राजस्व रिकॉर्ड में उसके नाम है। लिहाजा, याची की ओर से उसे किसी भी तरीके से रोका नहीं जा सकता है। वादी और प्रतिवादी के बीच सम्पत्तियों का स्पष्ट विभाजन है।
कोर्ट ने यह कहा कि सम्पत्ति से सम्बंधित विवाद को सिविल न्यायालय द्वारा ही तय किया जा सकता है। उसे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत निस्तारित नहीं किया जा सकता है। याची को पहले से ही अंतरिम राहत प्राप्त है लेकिन वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत सम्पत्ति विवाद को सुलझाना चाहती है। जो कि सही नहीं है। सिविल मामले सिविल न्यायालय द्वारा ही तय किए जा सकते हैं। इसलिए घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत याची को राहत नहीं दी जा सकती। लिहाजा, याची को किसी भी तरह की अंतरिम राहत की जरूरत है तो वह सिविल न्यायालय में अर्जी दाखिल कर सकता है और अर्जी दाखिल होने के बाद सिविल न्यायालय नियमों के मुताबिक आदेश पारित करेगा।