महाकुम्भ के 45 दिनों में सबसे ज्यादा बार पूछा गया 'संगम कहां हैं
महाकुम्भ के 45 दिनों में सबसे ज्यादा बार पूछा गया 'संगम कहां हैं
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...महाकुम्भ नगर, 27 फरवरी 66 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने विश्व के सबसे बड़े मेले महाकुम्भ में शामिल होकर एक नया इतिहास रच दिया। तीन अमृत और तीन विशेष पर्व स्नान के दिन तो श्रद्धालुओं की संख्या ने पुराने रिकॉर्ड तोड़े। वहीं सामान्य दिनों में भी प्रयागराज की सड़कें श्रद्धालुओं से खचाखच भरी रही। हवाई जहाज, रेलगाड़ी, बस या किसी अन्य साधन से प्रयागराज की धरती पर कदम रखने के बाद श्रद्धालु बस ही एक बात पूछता था, 'संगम कहां हैं...'। हालांकि श्रद्धालुओं की संख्या की तरह इस वाक्य के उच्चारण की गिनती तो मेला प्रशासन या किसी संस्था ने नहीं करवाई। बावजूद इसके यह कहा जा सकता है कि 'संगम कहां है...' सबसे ज्यादा बार प्रयागराज में उच्चारित हुआ।
संगम कहां है पूछकर बढ़े आगे : प्रयागराज पहुंचने वाले श्रद्धालुओं का ही एक ही मकसद था, संगम में आस्था की डुबकी लगाना। संगम कहां... यही पूछते पूछते श्रद्धालु संगम की ओर अपने कदम बढ़ाते थे। थकने पर एक किनारे बैठ जाते। थोड़ा आराम के बाद आगे बढ़ते और सड़क के दायें—बायें सामान बेचने वाले दुकानदारों, पुलिस वालों और स्नान करके वापिस आने वालों से ही एक ही बात पूछते...संगम कहां है? बताने वाला भी इशारा करके बता देता कि... बस थोड़ी दूर है...।
संगम कहां है? : गंगा-यमुना और अंत:सलिला सरस्वती का जिस स्थान पर संगम होता है, वहीं पर बना है संगम घाट। तीन नदियों का संगम स्थल होने के कारण इसे त्रिवेणी घाट भी कहते हैं। हालांकि इस स्थान पर सिर्फ गंगा-यमुना का ही संगम होता दिखता है, सरस्वती अंत:सलिला हैं, लेकिन माना जाता है कि इस स्थान पर अदृश्य रूप से सरस्वती गंगा और यमुना के साथ मिलती हैं। धार्मिक महत्व होने के कारण पूरे साल यहां स्नान-दान आदि के लिए लोगों की भीड़ जुटती है।
संगम नोज क्या है? : संगम कहां है... इस वाक्य के अलावा 'संगम नोज' शब्द का जिक्र भी महाकुम्भ के दौरान खूब हुआ। खासकर 29 जनवरी को मौनी अमावस्या को हुए दुखद हादसे के बाद 'संगम नोज' शब्द टीवी, रेडियो, अखबारों, डिजिटल और सोशल मीडिया में पूरी तरह छा गया। मेले में पहुंचने वाले अधिकतर श्रद्धालु 'संगम नोज' के बारे में पूछते दिखे।
क्या है संगम नोज?: संगम नोज वह जगह है, जहां गंगा और यमुना नदी का मिलन होता है। यही वजह है कि यहां श्रद्धालुओं की सबसे अधिक भीड़ होती है। यहां दोनों नदियों का पानी अलग-अलग रंग में दिखाई देता है। यमुना का पानी जहा। हल्का नीला होता है, वहीं गंगा का पानी हल्का मटमैला दिखाई देता है। यहां आकर यमुना नदी समाप्त हो जाती है और गंगा में मिल जाती है। कुंभ में इस क्षेत्र को संगम घाट के तौर पर चिह्नित किया गया है।
हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में प्रयागराज के तीर्थ पुरोहित अमित पाण्डेय बताते हैं, "प्रयागराज में जब गंगा और यमुना जी का संगम होता है, तो त्रिकोण बनता है। ये नोक यानी नाक की तरह दिखाई देता है। यही वजह है कि अंग्रेजी में इसके लिए नोज शब्द का इस्तेमाल किया गया है।" वे कहते हैं, "दोनों नदियों के मिलने से एक कोण बनाता है। एक कोण से गंगा जी आती हैं, एक कोण से यमुना जी आती हैं। जब दोनों मिलती हैं तो एक नोक की तरह दिखने वाला कोण बनता है। इसके बाद यमुना जी गंगा में मिलकर बनारस की तरफ प्रस्थान कर जाती हैं।"
प्रयागराज के पुरोहित सुरेन्द्र गौड़ कहते हैं, "कुम्भ मेले में संगम में न सिर्फ मनुष्य स्नान करते हैं, बल्कि मान्यता है कि देवता और दानव भी यहां स्नान करने के लिए आते हैं। खुद वेणी माधव संगम में विराजमान होते हैं, इसलिए संगम का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। यहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।" बता दें, साल 2019 में संगम नोज पर एक घंटे में 50 हजार श्रद्धालु स्नान कर सकते थे, लेकिन अब हर घंटे दो लाख से ज्यादा श्रद्धालु स्नान कर सकते हैं।
प्रयागराज संगम स्टेशन के पास फल विक्रेता सुभाष कहते हैं, महाकुम्भ खत्म हो गया है। शहर धीरे धीरे अपने रंगत में लौटेगा। पिछले एक डेढ महीने में श्रद्धालु बस एक बात पूछते थे कि भैया संगम किधर है...। संगम क्षेत्र में चाय की दुकान चलाने वाले शशिकांति विश्वकर्मा कहते हैं, 'जो भी श्रद्धालु चाय पीने के लिये आता था, वो स्टूल पर बैठने से पहले एक ही बात पूछता था, भैयाजी, संगम किधर है। थोड़ी मायूसी के साथ शशिकांत कहते हैं, मेला खत्म... अब कौन पूछेगा संगम किधर है...।
45 दिन में 66 करोड़ से ज्यादा ने लगायी डुबकी : 13 जनवरी से 26 फरवरी के बीच यानी 45 दिनों में 66 करोड़ से ज्यादा भक्तों ने महाकुंभनगरी पहुंचकर संगम में डुबकी लगाई है। अगर संख्या के लिहाज से बात करें तो यह भारत की कुल आबादी का 50 फीसदी से ज्यादा है। यानी आधे से ज्यादा भारत ने इस बार महाकुम्भ में डुबकी लगायी।