अस्थमा फेफड़ों की बीमारी से श्वास लेने में कठिनाई : डॉ आशुतोष गुप्ता

एएमए में वैज्ञानिक संगोष्ठी का आयोजन

अस्थमा फेफड़ों की बीमारी से श्वास लेने में कठिनाई : डॉ आशुतोष गुप्ता

प्रयागराज, 15 जुलाई । अस्थमा (दमा) फेफड़ों की एक बीमारी है, जिसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है। अस्थमा होने पर श्वास नलियों में सूजन आ जाती है, जिस कारण श्वसन मार्ग सिकुड़ जाता है। श्वसन नली में सिकुड़न के चलते रोगी को सांस लेने में परेशानी, सांस लेते समय आवाज आना, सीने में जकड़न, खांसी आदि समस्याएं होने लगती है।


उक्त विचार शहर के वरिष्ठ छाती रोग विशेषज्ञ एवं एएमए सचिव डॉ आशुतोष गुप्ता ने इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन कन्वेंशन सेंटर में आयोजित वैज्ञानिक संगोष्ठी में व्यक्त किया। उन्होंने व्याख्यान में कहा कि अस्थमा के दो प्रकार होते हैं बाहरी और आंतरिक अस्थमा। बाहरी अस्थमा बाहरी एलर्जन के प्रति एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया है। जो पराग, जानवरों, धूल जैसे बाहरी एलर्जिक चीजों के कारण होता है। आंतरिक अस्थमा कुछ रासायनिक तत्वों को श्वसन द्वारा शरीर में प्रवेश होने से होता है। ठंडी हवा में सांस लेने से हालत गम्भीर हो जाती है।

डॉ गुप्ता ने बताया कि आज के समय में अस्थमा का सबसे बड़ा कारण है प्रदूषण। कल कारखानों, वाहनों से निकलने वाले धुएं अस्थमा का कारण बन रहे हैं। कुछ ऐसे एलर्जी वाले फूड्स हैं जिनकी वजह से सांस सम्बंधी बीमारियां होती हैं। पेट में अम्ल की मात्रा अधिक होने से भी अस्थमा हो सकता है। कुछ लोगों में यह समस्या आनुवांशिक होती है। अस्थमा का उपचार तभी सम्भव है जब आप समय रहते इसे समझ लें। इससे निपटने के लिए आमतौर पर इन्हेल्ड स्टेरॉयड (नाक के माध्यम से दी जाने वाली दवा) और अन्य एंटी इंफ्लामेटरी दवाएं अस्थमा के लिए जरूरी मानी जाती हैं। इसके अलावा अस्थमा इन्हेलर का भी इलाज के तौर पर प्रयोग किया जाता है। इसके माध्यम से फेफड़ों में दवाईयां पहुंचाने का काम किया जाता है। अस्थमा नेब्यूलाइजर का भी प्रयोग उपचार में किया जाता है।

एएमए वैज्ञानिक सचिव डॉ अनुभा श्रीवास्तव ने मधुमेह व खानपान पर बताया कि फॅमिली हिस्ट्री के अलावा मोटापा बढ़ना, तनाव, सही खानपान की कमी और व्यायाम न करना डायबिटीज की समस्या के बढ़ने के कुछ अहम कारण है। इसलिए जिन लोगों को डायबिटीज की समस्या है उनके लिए संतुलित और नियमित खान-पान बहुत जरूरी है। आपको यह समझने की ज़रूरत है कि आप का लक्ष्य ऐसे ख़ान पान को अपनाने का है जो डायबिटीज के अनुकूल हो, जिससे आप का ब्लड शुगर लेवल नियंत्रण में रहे। आपको हर दिन 1500 कैलोरी के लक्ष्य के आसपास रहना होगा। डायबिटीज सम्बंधी खान-पान, शुगर लेवल को नियंत्रित करने, वजन नियंत्रण और सम्पूर्ण स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट का संतुलित मिश्रण लेना शामिल है।

एएमए अध्यक्ष डॉ0 कमल सिंह ने वक्ता को स्मृति चिन्ह एवं चेयरपर्सन डॉ अतुल माथुर डॉ आशीष टंडन, डॉ0 गौरव अग्रवाल को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। वैज्ञानिक सचिव ने संगोष्ठी का संचालन तथा डॉ0 आशुतोष गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापन किया। संगोष्ठी में डॉ0 आरकेएस चौहान, डॉ0 सुजीत सिंह, डॉ0 सुबोध जैन, डॉ0 युगांतर पांडे, डॉ0 राजेश मौर्य, डॉ सुभाष वर्मा, डॉ0 अनूप चौहान, डॉक्टर अतुल दूबे, डॉ0 अग्रवाल आदि उपस्थित रहे।